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कोई 15 गोलियां खाकर भी जिंदा रहा, तो किसी ने की मौत को भी मार डालने की कोशिश, कुछ ऐसी है जाबाजों की वीरता की कहानी...

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"ज़िंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा, जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते।।" मशहूर शायर मेराज फैज़ाबादी का ये शेऱ हमारे जांबाज सिपाहियों ने बखूबी मुकम्मल किया। अपनी जान की परवाह किए बगैर वो इस तरह लड़े कि जीत को भी गुमान हो जाए। एक ऐसा युद्ध जहां दुश्मन चोटियों पर बैठकर हमले कर रहा था लेकिन हिंदुस्तानी वीर जवान बिना डिगे और अपने अदम्य साहस उनको मुंहतोड़ जबाव दिया। यह वीर गाथा है कारगिल युद्ध की जहां पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों ने कश्मीर और लद्दाख के बीच संबंध को तोड़ने और अशांति पैदा करने के लिए, जम्मू और कश्मीर के उत्तरी कारगिल जिले में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की थी,जिसके बाद भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय के तहत पाक सेना को धुल चटाते हुए इस क्षेत्र पर फिर से अपना कब्जा वापस हासिल किया।

  

इस लेख में आज हम वीर जवानों के परिचय और उनके बलिदान की शौर्यगाथा बताएगें। इस साल देश इस विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है, जिसके उपलक्ष्य में देश में कई तरह के आयोजन किये जा रहे हैं। साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर जवानों की याद में हर साल कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई को मनाया जाता है।

कैसे हुई  करगिल युद्द की शुरूआत?

साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक बड़ा युद्ध हुआ था, जिसमें भारत ने पाकिस्तान को कड़ी शिकस्त दी थी। जिसके बाद एक नए देश, बांग्लादेश का निर्माण हुआ था। दोनों देशों ने साल 1998 में अपने परमाणु हथियारों का परीक्षण भी किया, जिसके परिणामस्वरूप दोनों के बीच तनाव और बढ़ गया, जिसके बाद शांति और स्थिरता बनाए रखने और तनाव को कम करने के लिए फरवरी 1999 में लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किया गया लेकिन पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों ने कश्मीर और लद्दाख के बीच संबंध को तोड़ने और अशांति पैदा करने के लिए, जम्मू और कश्मीर के उत्तरी कारगिल जिले में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की, जिसके बाद भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय के तहत पाक सेना को मात देते हुए इस क्षेत्र पर फिर से अपना कब्जा वापस ले लिया।

भारत के वीर जवानों ने एक नहीं कई बार पाकिस्तानी सेना को मिट्टी में मिलाया है। आज हम बात कर रहे हैं कारगिल युद्ध (Kargil War 1999) में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देकर शहीद होने वीर जवानों की। जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। इनमें उत्तर प्रदेश के मनोज पांडे का नाम भी शामिल है। वह 3 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे। शहीद होने से पहले उन्होंने पाकिस्तान के तीन बंकरों को ध्वस्त कर दिया था। 

यूपी के सीतापुर में जन्में थे कैप्टन मनोज

गोरखा राइफल  के कैप्टन मनोज पांडे का जन्म आज के ही दिन यानी 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रुधा गांव में हुआ था। बचपन के कुछ साल मनोज पांडे ने अपने गांव में ही बिताए थे। इसके कुछ समय बाद उनका परिवार लखनऊ में शिफ्ट हो गया था। यहां उनका दाखिला सैनिक स्कूल में कराया गया था। स्‍कूल के बाद उनके पास अपना करियर बनाने के लिए कई ऑप्‍शन थे, लेकिन उन्होंने सेना को चुना। उन्‍होंने ठान लिया था कि वे सेना में ही जाएंगे। इसलिए वे सुबह जल्दी जागते, व्‍यायाम करते इसके बाद बाकी के काम करते थे। उन्‍होंने एनडीए में हिस्‍सा लिया और सफलता हासिल की। एनडीए के इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि सेना में क्‍यों आना चाहते हो, तो उनका जवाब था मैं परमवीर चक्र जीतना चाहता हूं।

दुश्मन के सैनिकों पर चीते की तरह टूट पड़े-

तीन जुलाई 1999, कैप्टन मनोज पांडे की जिंदगी का सबसे ऐतिहासिक दिन था। उन्हें खालूबार चोटी को दुश्मनों से आजाद करवाने का जिम्मा दिया गया। उन्हें दुश्मनों को दायीं तरफ से घेरना था। जबकि बाकी टुकड़ी बायीं तरफ से दुश्मन को घेरने वाली थी। वह दुश्मन के सैनिकों पर चीते की तरह टूट पड़े और उन्हें अपनी खुखुरी से फाड़कर रख दिया। उनकी खुखुरी ने चार सैनिकों की जान ली।

शौर्य साबित होने से पहले मौत को ही मार डालूंगा

कारगिल युद्ध भारत के लिए बेहद तनाव भरी स्थिति थी। सभी सैनिकों की आधिकारिक छुट्टियां रद कर दी गईं ​थीं। महज 24 साल के कैप्टन मनोज पांडेय को ऑपरेशन विजय के दौरान जौबार टॉप पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई थी। भंयकर ठंड और थका देने वाले युद्ध के बावजूद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की हिम्मत ने जवाब नहीं दिया। युद्ध के बीच भी वह अपने विचार अपनी डायरी में लिखा करते थे। उनके विचारों में अपने देश के लिए प्यार साफ दिखता था। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था, ‘अगर मौत मेरा शौर्य साबित होने से पहले मुझ पर हमला ​करती है तो मैं अपनी मौत को ही मार डालूंगा।’

करगिल युद्ध में देश के वीर जवानों ने उस शौर्य का परिचय दिया जिसका लोहा पूरी दुनिया मानती है। कोई 15 गोलियां खाकर भी जिंदा रहा, तो किसी ने की मौत को भी मार डालने की कोशिश की। इस युद्ध में  कुछ ऐसी है जाबाजों की वीरता की कहानी रही है। अब बात करते हैं उस जवान की जिसने 15 गोलियां खाईं और जिंदा रहा।

 19 साल के परमवीर चक्र सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव-

15 गोलियां लगने के बावजूद वह अपने दल के साथ आगे बढ़ें और टाइगर हिल पर कब्जा जमाया। उनकी अद्वितीय वीरता के लिए देश के सर्वोच्च युद्धकालीन वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपने अदम्य साहस से 18 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट को टाइगर हिल के महत्वपूर्ण हिस्सों पर कब्ज़ा दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह इस सम्मान को प्राप्त करने वाले सबसे कम उम्र के वीर हैं। सूबेदार मेजर (मानद लेफ्टिनेंट) योगेंद्र सिंह यादव को, जिनकी उम्र केवल 19 साल थी। उनकी वीरता का विशिष्ट कार्य 04 जुलाई 1999 को हुआ जब उन्होंने 18 ग्रेनेडियर्स के घातक कमांडो प्लाटून का स्वेच्छा से नेतृत्व किया, उन्हें टाइगर हिल पर तीन रणनीतिक बंकरों पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था।

कारगिल युद्ध के जाबांजो की फेहरिस्त-

कारगिल युद्ध के जाबांजो की फेहरिस्त बहुत लंबी है जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी असाधारण वीरता का परिचय देते हुए देश के लिए शहीद हो गए।

कैप्टन विक्रम बत्रा-

कारगिल युद्ध की जब भी चर्चा होगी तब कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम बहुत ही गर्व के साथ लिया जायेगा जिन्होंने चोटिल होने के बावजूद अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए पॉइंट 4875 कब्जा किया। इस दौरान उनका नारा 'ये दिल मांगे मोर!' खूब चर्चा में रहा था। उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सम्मान परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।   

राइफलमैन संजय कुमार

संजय कुमार ने पॉइंट 4875 पर कब्जा करने में अहम रोल अदा किया था, घायल होने के बावजूद भी वह वीरता से लड़ते रहे। उनके अदम्य साहस का सम्मान करते हुए परम वीर चक्र से नवाजा गया है।

कारगिल युद्ध पूरी टाइमलाइन-

तारीख 

घटनाक्रम 

मई 1999

 

3 मई

चरवाहों ने बंजू मुख्यालय पर घुसपैठियों की सूचना दी, 70 इन्फैंट्री ब्रिगेड पहुंची।

5 मई

कप्तान सौरभ कालिया गश्ती दल भेजा गया; युद्ध शुरू हुआ।

6 मई

एनएच 1ए ट्रैफिक के लिए खोला गया।

16 मई

56 माउंटेन ब्रिगेड ने द्रास-मुष्कोह सेक्टर का अधिग्रहण किया।

18 मई

पॉइंट 4295 और 4460 पर कब्जा।

21 मई

8 सिख ने टाइगर हिल की घेराबंदी शुरू की।

23 मई

थल सेनाध्यक्ष (COAS) ने कारगिल सेक्टर का दौरा किया; ऑपरेशन की प्राथमिकताएँ तय कीं।

24 मई

79 माउंटेन ब्रिगेड ने मुष्कोह सब-सेक्टर का अधिग्रहण किया।

26 मई

15 कोर की सहायता में भारतीय वायुसेना ने हवाई संचालन शुरू किया।

जून 1999

1 जून

मुख्यालय 8 माउंटेन डिवीजन ने अधिग्रहण पूरा किया; सैन्य निर्माण शुरू हुआ।

3 जून

8 डिवीजन ने थासगाम के पश्चिम में जिम्मेदारी संभाली।

12 जून

50 (I) पैराशूट ब्रिगेड पहुँची; वार्ता में गतिरोध; गुमरी में तैनाती।

13 जून

56 ब्रिगेड ने तोलोलिंग और पॉइंट 4590 पर कब्जा किया।

14 जून

भारतीय सेना ने 'हंप' पर कब्जा किया।

15 जून

अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पीएम नवाज शरीफ से वापसी का आग्रह किया।

20 जून

56 ब्रिगेड ने पॉइंट 5140 पर कब्जा किया।

23 जून

जनरल जिनी ने पाकिस्तान का दौरा किया; जी-8 ने वापसी का आह्वान किया।

26 जून

192 माउंटेन ब्रिगेड द्रास में पहुंची।

28 जून

56 ब्रिगेड ने पॉइंट 4700 पर कब्जा किया।

29 जून

56 ब्रिगेड ने 'ब्लैक रॉक', 'थ्री पिंपल', और 'नोल' पर कब्जा किया।

जुलाई 1999

1 जुलाई

70 ब्रिगेड ने पॉइंट 5000 पर कब्जा किया।

3 जुलाई

70 ब्रिगेड ने पॉइंट 5287 पर कब्जा किया; 8 सिख ने टाइगर हिल की घेराबंदी समाप्त की।

4 जुलाई

192 ब्रिगेड ने टाइगर हिल पर कब्जा किया; क्लिंटन ने शरीफ से भारत से बात करने का आग्रह किया।

5 जुलाई

79 ब्रिगेड ने पॉइंट 4875 कॉम्प्लेक्स पर कब्जा किया; मुष्कोह और द्रास दुश्मन से मुक्त।

12-18 जुलाई

पाकिस्तानी सैनिकों की सुरक्षित वापसी के लिए युद्धविराम (बाद में युद्ध फिर शुरू हुआ)।

24 जुलाई

192 ब्रिगेड ने ज़ूलू स्पर कॉम्प्लेक्स पर कब्जा किया।

26 जुलाई

कारगिल युद्ध का आधिकारिक अंत।

By Ankit Verma 

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