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मिल्कीपुर उपचुनाव बीजेपी के लिए सिर्फ एक सीट का संघर्ष नहीं, बल्कि अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने का अहम मोर्चा बन गया है। इस चुनाव की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इसकी अगुवाई कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद से ही मुख्यमंत्री ने अयोध्या और मिल्कीपुर का दौरा तेज कर दिया है, हर जातिगत समीकरण को साधने की कोशिशें जोर-शोर से जारी हैं। बीजेपी के साथ संजय निषाद और ओमप्रकाश राजभर जैसे सहयोगी नेता भी मैदान में डटे हैं, ताकि मिल्कीपुर में बीजेपी की जीत सुनिश्चित की जा सके।
बीजेपी की रणनीति और चुनौती: राम मंदिर के बाद की चुनौती-
अयोध्या में भव्य राम मंदिर के उद्घाटन के बाद भी बीजेपी को लोकसभा चुनाव में फैजाबाद (अयोध्या) सीट पर हार का सामना करना पड़ा, जिससे पार्टी को गहरी चोट पहुंची। इस हार ने विपक्ष को व्यंग्य और आलोचना का अवसर दिया, जिससे बीजेपी की साख पर सवाल खड़े हुए।
मिल्कीपुर में जीत का महत्व-
मिल्कीपुर उपचुनाव में बीजेपी किसी भी तरह की कसर नहीं छोड़ना चाहती। पार्टी ने प्रदेश सरकार के कई बड़े नेताओं, जैसे उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक, केशव प्रसाद मौर्य, और कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह को जिम्मेदारी सौंपी है। जातिगत समीकरण से लेकर बूथ स्तर पर जीत सुनिश्चित करने तक, हर पहलू पर ध्यान दिया जा रहा है।
समाजवादी पार्टी का दांव: जातिगत समीकरण पर पकड़-
समाजवादी पार्टी ने मिल्कीपुर सीट पर अजीत प्रसाद को उतारा है, जो सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे हैं। पार्टी इस सीट को जीतकर बीजेपी से 'भगवान राम की नाराजगी' की भावना को और मजबूत करना चाहती है।
पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक फॉर्मूला
सपा ने अयोध्या लोकसभा चुनाव में जिस फॉर्मूले से जीत हासिल की थी, वही रणनीति मिल्कीपुर में भी अपनाई जा रही है। पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने के लिए हर सेक्टर और बूथ पर पार्टी कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी गई है।
प्रत्याशियों की दौड़:गोरखनाथ बाबा और नए चेहरे
बीजेपी की ओर से गोरखनाथ बाबा को प्रबल दावेदार माना जा रहा है, जो 2017 में मिल्कीपुर से विधायक रह चुके हैं। हालांकि, पार्टी नए चेहरे को भी मौका दे सकती है। सुरेंद्र रावत, चंद्रकेश रावत और रामू प्रियदर्शी जैसे नाम भी चर्चा में हैं।
चुनावी गणित और वोट बैंक:कांग्रेस-बसपा के बाहर होने का प्रभाव
साल 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बसपा को कुल 17.5 हजार वोट मिले थे, जो इस बार के उपचुनाव में निर्णायक साबित हो सकते हैं। दोनों ही पार्टियां इस बार चुनाव से बाहर हैं, जिससे बीजेपी और सपा के लिए नए वोट बैंक पर कब्जा करने का मौका है।
सपा-भाजपा की जीत का महत्व:बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर
मिल्कीपुर उपचुनाव बीजेपी के लिए सिर्फ एक सीट जीतने का लक्ष्य नहीं, बल्कि अपनी राजनीतिक ताकत को साबित करने का मंच बन गया है। इस चुनाव की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसकी कमान अपने हाथों में ले रखी है। लोकसभा चुनाव के बाद से ही मुख्यमंत्री ने अयोध्या और मिल्कीपुर के दौरे तेज कर दिए हैं, ताकि हर जातिगत समीकरण को साधा जा सके। उनके साथ संजय निषाद और ओमप्रकाश राजभर जैसे सहयोगी दलों के नेता भी पूरे जोर-शोर से जुटे हैं, ताकि मिल्कीपुर में बीजेपी का परचम लहराया जा सके।
सपा की उम्मीदें और माहौल
समाजवादी पार्टी के लिए यह चुनाव अयोध्या की जीत के बाद देशभर में माहौल बनाने और बीजेपी पर दबाव बढ़ाने का अवसर है। सांसद अवधेश प्रसाद के लिए यह चुनाव उनके बेटे की राजनीतिक विरासत को मजबूत करने का भी मौका है।
अवधेश प्रसाद की राजनीतिक विरासत की परीक्षा
Baten UP Ki Desk
Published : 10 January, 2025, 2:40 pm
Author Info : Baten UP Ki