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बिजली के निजीकरण का रास्ता साफ,UP पावर कॉरपोरेशन बोर्ड और ETF ने दी मंजूरी...

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उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) ने राज्य के बिजली वितरण क्षेत्र में बड़े बदलाव की दिशा में एक अहम कदम बढ़ाया है। पावर कॉरपोरेशन ने दक्षिणांचल और पूर्वांचल डिस्कॉम को निजी हाथों में सौंपने के लिए प्रस्ताव (RFP) को मंजूरी दी है, जो राज्य में बिजली वितरण प्रणाली के निजीकरण की ओर एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह कदम पावर कॉरपोरेशन की खराब वित्तीय स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से उठाया गया है। अब, यह प्रस्ताव कैबिनेट और उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (UPERC) से स्वीकृति मिलने के बाद निविदा प्रक्रिया के लिए तैयार होगा। इस फैसले से जहां एक ओर बिजली वितरण में सुधार की उम्मीद जताई जा रही है, वहीं दूसरी ओर इसके कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं।

निजीकरण की दिशा में पहला कदम: पीपीपी मॉडल की मंजूरी

उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) ने राज्य के दक्षिणांचल और पूर्वांचल डिस्कॉम को निजी कंपनियों के हवाले करने के लिए प्रस्ताव (RFP) को मंजूरी दे दी है। पावर कॉरपोरेशन के बोर्ड और एनर्जी टास्कफोर्स ने इस फैसले को मंजूरी दी, और अब यह प्रक्रिया कैबिनेट और उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (UPERC) से स्वीकृति प्राप्त करने की दिशा में बढ़ रही है। यदि यह मंजूरी मिलती है, तो निविदा प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इस कदम को पावर कॉरपोरेशन की खराब वित्तीय स्थिति को सुधारने और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक अहम प्रयास माना जा रहा है।

आर्थिक संकट से निपटने के लिए निजीकरण का रास्ता

पावर कॉरपोरेशन ने इस फैसले पर विचार करने के लिए 25 नवंबर को अधिकारियों और अभियंताओं की बैठक आयोजित की थी। खासकर दक्षिणांचल और पूर्वांचल डिस्कॉम की अत्यधिक खराब वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए, इस निर्णय को आवश्यक समझा गया। पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल के तहत निजी कंपनियों को बिजली वितरण में शामिल करने के विचार को बोर्ड ने समर्थन दिया, जिससे इस क्षेत्र में सुधार की उम्मीद जताई जा रही है।

मुख्य सचिव और एनर्जी टास्कफोर्स की स्वीकृति: अगला कदम कैबिनेट में

बोर्ड से मंजूरी मिलने के बाद, एनर्जी टास्कफोर्स ने भी मसौदे को कुछ संशोधनों के साथ स्वीकृति दी है। अब, इस प्रस्ताव को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में कैबिनेट से मंजूरी मिलने का इंतजार है। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कर्मचारियों के हितों की सुरक्षा हो और निविदा प्रक्रिया पारदर्शी रहे, जिससे इस बदलाव को लेकर कोई भी असमंजस न रहे।

कानूनी चुनौतियां: उपभोक्ता परिषद की आपत्ति

इस प्रस्ताव को लेकर उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने गंभीर आपत्ति उठाई है। उनका कहना है कि पावर कॉरपोरेशन के पास विद्युत वितरण का लाइसेंस नहीं है, ऐसे में इसे नियमों के खिलाफ माना जा सकता है। उन्होंने मुख्यमंत्री से उच्च स्तरीय जांच की मांग की है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस निर्णय में किसी प्रकार की अनियमितता न हो।

आगे की राह: सुधार की उम्मीदें या नई चुनौतियाँ?

यदि कैबिनेट और नियामक आयोग से हरी झंडी मिल जाती है, तो पावर डिस्कॉम के निजीकरण की प्रक्रिया को अमलीजामा पहनाने में कोई रुकावट नहीं आएगी। यह कदम पावर कॉरपोरेशन की वित्तीय स्थिति में सुधार ला सकता है, लेकिन साथ ही इससे जुड़ी चुनौतियाँ भी कम नहीं होंगी। खासतौर पर बिजली उपभोक्ताओं और कर्मचारियों के हितों का संतुलन बनाए रखना एक कठिन कार्य होगा, और राजनीतिक दबाव भी इस प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।

निविदा प्रक्रिया के बाद क्या बदल सकता है?

निविदा प्रक्रिया शुरू होने के बाद, निजी कंपनियों के लिए इन डिस्कॉम को संचालित करने की जिम्मेदारी होगी। इससे वितरण व्यवस्था में बदलाव आ सकता है, लेकिन कर्मचारियों की नौकरी की सुरक्षा, सेवा की गुणवत्ता और बिजली बिलों में बदलाव के सवाल भी उठ सकते हैं। यह कदम राज्य के बिजली संकट को हल करने में मददगार हो सकता है, या फिर नई समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है।

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