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उत्तर प्रदेश सरकार विभाजन के दौरान पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को जमीन पर पूर्ण अधिकार देने के लिए एक नया कानून लाने की तैयारी कर रही है। मौजूदा नियमों के तहत उन्हें यह अधिकार देना संभव नहीं है, क्योंकि सरकारी अनुदान अधिनियम, 1895 के समाप्त होने के बाद कानूनी जटिलताएं बढ़ गई हैं। शासन स्तर पर इस मुद्दे पर गंभीर विचार-विमर्श जारी है।
चार जिलों में बसे थे 10 हजार शरणार्थी परिवार
1947 में भारत-पाक विभाजन के दौरान करीब 10,000 शरणार्थी परिवार उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी, रामपुर, बिजनौर और पीलीभीत में बसाए गए थे। इन परिवारों में ज्यादातर हिंदू और सिख समुदाय से थे। उन्हें सरकार द्वारा जमीन तो आवंटित की गई, लेकिन उन्हें संक्रमणीय भूमिधर अधिकार (Transferable Land Rights) नहीं मिले।
क्या है संक्रमणीय भूमिधर अधिकार की समस्या?
संक्रमणीय भूमिधर अधिकार न होने के कारण:
✅ शरणार्थी अपने नाम पर जमीन की पूर्ण मिल्कियत प्राप्त नहीं कर सकते।
✅ वे बैंक से सिर्फ फसली ऋण ही ले सकते हैं, अन्य प्रकार के ऋण नहीं।
✅ वे अपनी जमीन बेचने या किसी और को हस्तांतरित करने के अधिकार से वंचित हैं।
शरणार्थियों की मांग और शासन की कार्रवाई
लंबे समय से शरणार्थी परिवार संक्रमणीय भूमिधर अधिकारों की मांग कर रहे हैं। सरकार ने इस विषय पर विचार करने के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया है। इसमें:
इस कमेटी के सदस्य सचिव लखीमपुर खीरी के एडीएम हैं। जिलों से आई प्राथमिक सर्वे रिपोर्ट का शासन स्तर पर परीक्षण हो चुका है।
क्यों जरूरी है नया कानून?
पहले सरकारी अनुदान अधिनियम, 1895 के तहत शरणार्थियों को जमीन दी जा सकती थी। लेकिन 2018 में केंद्र सरकार ने इस अधिनियम को समाप्त कर दिया। अब संक्रमणीय भूमिधर अधिकार देने के लिए नया कानून बनाना अनिवार्य हो गया है।
क्या होगा आगे?
✅ जिलों से अंतिम सर्वे रिपोर्ट आने के बाद शासन इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाएगा।
✅ नया कानून आने के बाद शरणार्थियों को जमीन पर पूर्ण अधिकार मिल सकेगा।
✅ इससे वे अपनी जमीन का व्यावसायिक रूप से भी उपयोग कर पाएंगे।
सरकार का यह कदम शरणार्थी परिवारों के लिए एक बड़ा राहत भरा निर्णय साबित हो सकता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 7 February, 2025, 8:35 pm
Author Info : Baten UP Ki