2012 में भारत सरकार ने बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण कानून बनाया, जिसे 'पॉक्सो एक्ट' (Protection of Children from Sexual Offences Act) कहा जाता है। इस कानून का उद्देश्य सिर्फ बच्चों को यौन शोषण से बचाना नहीं है, बल्कि अपराधियों को सख्त सजा दिलाना भी है। अगर किसी 18 साल से कम उम्र के बच्चे का यौन उत्पीड़न होता है, तो पॉक्सो एक्ट के तहत कड़ी कार्रवाई की जाती है।
2019 का संशोधन: सख्त सजा का प्रावधान
2019 में इस कानून में संशोधन किया गया, जिसके तहत 16 साल से कम उम्र की बच्ची से बलात्कार के दोषियों के लिए उम्रकैद या मौत की सजा का प्रावधान जोड़ा गया। यह कानून पूरे देश में लागू है और इसके तहत मामलों की सुनवाई स्पेशल कोर्ट में होती है, जहां मीडिया या पब्लिक का प्रवेश निषिद्ध होता है।
उम्र निर्धारण: केस को प्रभावित करने वाला मुद्दा
हालांकि, पॉक्सो एक्ट में स्पष्ट प्रावधान होने के बावजूद कई बार मामलों में उम्र विवाद का एक अहम मुद्दा बन जाता है। जैसे, क्या पीड़ित वाकई 18 साल से कम उम्र का है? अगर ऐसा है, तो कानून का शिकंजा कठोर हो जाता है, लेकिन यदि नहीं, तो मामला अधिक जटिल हो जाता है।
एटा केस: उम्र निर्धारण में विरोधाभास
7 दिसंबर 2023 को एटा के कोतवाली देहात में एक व्यक्ति पर नाबालिग लड़की के यौन शोषण का मुकदमा दर्ज किया गया। मामला कोर्ट में गया, जहां आरोपी को जेल भेज दिया गया। सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने लड़की की उम्र को लेकर सवाल उठाए। FIR में लड़की की उम्र 15 साल बताई गई थी, जबकि स्कूल रिकॉर्ड और मेडिकल रिपोर्ट में उम्र भिन्न थी। मेडिकल रिपोर्ट में उसकी उम्र 13 साल दर्ज की गई थी।
मेडिकल प्रोसेस से उम्र निर्धारण
उम्र निर्धारण एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें डॉक्टर कई तरह की मेडिकल जांच करते हैं। इसमें प्रमुख रूप से तीन प्रकार की जांचें की जाती हैं:
-
दांतों की जांच: डॉक्टर दांतों की संख्या और उनकी स्थिति देखकर उम्र का अनुमान लगाते हैं। यदि मुंह में दूध के दांत हैं, तो व्यक्ति की उम्र 14 साल तक हो सकती है, जबकि स्थायी दाढ़ के आने पर उम्र 18 साल के करीब मानी जाती है।
-
हड्डियों की जांच: एक्स-रे या सीटी स्कैन के माध्यम से हड्डियों की लंबाई और चौड़ाई मापकर उम्र का अनुमान लगाया जाता है।
-
DNA टेस्ट: DNA मिथाइलेशन तकनीक के जरिए भी उम्र का पता लगाया जा सकता है, क्योंकि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, DNA में मिथाइल समूह का जुड़ना शुरू हो जाता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का हस्तक्षेप: सही उम्र निर्धारण की जरूरत
एटा मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया कि मेडिकल रिपोर्ट में उम्र को लेकर गंभीर विरोधाभास थे। रिपोर्ट स्पष्ट नहीं थी, और यह निर्णय नहीं कर पा रही थी कि पीड़िता की सही उम्र क्या है। कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि डॉक्टरों को ट्रेनिंग दी जाए, ताकि वे वैज्ञानिक और मेडिकल मानदंडों के आधार पर सही उम्र निर्धारण कर सकें।
मेडिकल रिपोर्ट की अहमियत
पॉक्सो एक्ट के तहत अगर पीड़िता 18 साल से कम है, तो आरोपी को जमानत मिलना लगभग असंभव होता है। लेकिन यदि किसी दस्तावेज़ या मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता की उम्र 18 साल से अधिक होती है, तो आरोपी सजा से बच सकता है। यही कारण है कि उम्र निर्धारण में सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है।
न्याय तंत्र में उम्र निर्धारण की भूमिका
एटा मामले में, मेडिकल रिपोर्ट की चूक ने आरोपी को जमानत दिला दी। इस केस ने यह साबित कर दिया कि उम्र निर्धारण की प्रक्रिया में छोटी सी गलती भी पूरे न्यायिक तंत्र को प्रभावित कर सकती है। मेडिकल रिपोर्ट्स और अन्य दस्तावेजों की सटीकता ही न्याय के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है।
पॉक्सो एक्ट बच्चों की सुरक्षा के लिए बेहद सख्त और जरूरी कानून है, लेकिन सही उम्र निर्धारण इस कानून को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए आवश्यक है। मेडिकल रिपोर्ट्स की त्रुटियां न केवल केस को कमजोर बना सकती हैं, बल्कि इससे न्याय की प्रक्रिया भी प्रभावित हो सकती है। डॉक्टरों को प्रशिक्षण देकर और वैज्ञानिक तरीकों का सही उपयोग कर इस प्रकार की त्रुटियों से बचा जा सकता है।