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मिल्कीपुर उपचुनाव में आया नया मोड़, हाईकोर्ट के इस फैसले से बढ़ेगा राजनीतिक तापमान

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है। इस सीट से जुड़ा मामला राजनीति, कानून और चुनावी संघर्ष के त्रिकोण में फंसा रहा। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने भाजपा के पूर्व विधायक बाबा गोरखनाथ की याचिका को वापस लेने की अनुमति दी, जिससे इस सीट पर उपचुनाव का रास्ता साफ हो गया। अब सभी की नजरें चुनाव आयोग पर टिकी हैं कि वह कब उपचुनाव की तारीखों की घोषणा करेगा।

क्या है राजनीतिक पृष्ठभूमि और विवाद की शुरूआत?

मिल्कीपुर सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता अवधेश प्रसाद 2022 के विधानसभा चुनाव में विजयी रहे थे। हालांकि, भाजपा प्रत्याशी बाबा गोरखनाथ ने अवधेश के नामांकन पत्रों में गड़बड़ियों का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उनका कहना था कि प्रसाद का चुनावी हलफनामा अवैध था क्योंकि इसकी नोटरी उस व्यक्ति से कराई गई थी जिसका लाइसेंस खत्म हो चुका था। इस याचिका के कारण उपचुनाव की प्रक्रिया रुक गई थी, लेकिन जब गोरखनाथ ने इसे वापस लेने की अर्जी दी, तो हाईकोर्ट ने इसे मंजूरी दे दी। अब, यह सीट खाली है और चुनाव आयोग के फैसले का इंतजार किया जा रहा है।

क्या है सत्ता का गणित और जनता की उम्मीदें?

मिल्कीपुर सीट पर सपा और भाजपा दोनों की साख दांव पर है। सपा नेता अवधेश प्रसाद ने इस सीट से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद का रास्ता तय किया, लेकिन विधानसभा सीट खाली कर दी। दूसरी तरफ, भाजपा की रणनीति इस सीट को अपने पक्ष में करने की है। हाल ही में हुए नौ सीटों के उपचुनाव में भाजपा ने सात सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि सपा केवल दो सीटों तक सिमट गई। इन नतीजों ने दोनों दलों के लिए कई सबक छोड़े हैं। भाजपा जहां अपने घटते वोट प्रतिशत से चिंतित है, वहीं सपा के लिए घटता जनाधार खतरे की घंटी है।

अखिलेश यादव के आरोप और चुनावी माहौल-

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उपचुनाव को लेकर भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि भाजपा चुनावी मशीनरी का दुरुपयोग कर रही है और लोकतंत्र को कमजोर कर रही है। उन्होंने ईवीएम की फोरेंसिक जांच की मांग करते हुए कहा कि कुंदरकी और अन्य क्षेत्रों में "बूथ कैप्चरिंग" जैसी घटनाएं हुई हैं। अखिलेश का दावा है कि भाजपा को मिल्कीपुर में हार का डर था, इसलिए चुनाव प्रक्रिया को लंबा खींचा गया। अब जबकि कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है, तो राजनीतिक तापमान बढ़ना तय है।

मिल्कीपुर: सिर्फ सीट नहीं, बल्कि सत्ता का संकेत-

मिल्कीपुर सीट का महत्व केवल एक उपचुनाव तक सीमित नहीं है। यह सीट अयोध्या जिले की राजनीति और क्षेत्रीय संतुलन का प्रतिनिधित्व करती है। अयोध्या, जो कि राम मंदिर निर्माण और भाजपा के एजेंडे का केंद्र रही है, वहां मिल्कीपुर का परिणाम भाजपा के लिए एक राजनीतिक संदेश बन सकता है। दूसरी ओर, सपा के लिए यह सीट अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने का मौका है। 2022 के चुनाव में जिस तरह से सपा ने भाजपा को चुनौती दी थी, वह अब इस उपचुनाव में दोहराया जा सकता है।

जनता की भूमिका और लोकतंत्र की परीक्षा-

मिल्कीपुर उपचुनाव न केवल राजनीतिक दलों बल्कि जनता के लिए भी एक परीक्षा है। क्या यहां के मतदाता अपनी समस्याओं, विकास और प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखकर फैसला करेंगे, या चुनावी प्रचार और ध्रुवीकरण उनके निर्णय को प्रभावित करेगा? राजनीतिक दलों के लिए यह समय है कि वे जनता को केवल वादों से नहीं, बल्कि ठोस योजनाओं और नीतियों से प्रभावित करें।

चुनाव आयोग और लोकतांत्रिक प्रक्रिया-

अब सबकी निगाहें चुनाव आयोग पर हैं। हाईकोर्ट के फैसले के बाद उपचुनाव का रास्ता साफ हो गया है, लेकिन सवाल है कि चुनाव प्रक्रिया कितनी निष्पक्ष और पारदर्शी होगी? विपक्ष पहले ही भाजपा पर चुनावी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगा चुका है। ऐसे में आयोग की भूमिका और जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

आगे की राह: संभावनाओं और संघर्ष का संगम-

मिल्कीपुर का उपचुनाव यूपी की राजनीति के लिए सिर्फ एक अध्याय नहीं, बल्कि एक ऐसा मोड़ हो सकता है जो आगामी लोकसभा चुनावों के लिए दिशा तय करेगा। यह सीट न केवल भाजपा और सपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति का पावर बैलेंस भी तय करेगी। चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही यहां एक बार फिर राजनीतिक सरगर्मी तेज होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सा दल अपनी रणनीति को सफल बनाता है और जनता के दिलों में जगह बनाता है।

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