मुरादाबाद मंडल में स्थित कुंदरकी विधानसभा सीट को तुर्क बहुल क्षेत्र के रूप में देखा जाता है। पिछले 13 विधानसभा चुनावों में से नौ बार यहां तुर्क समुदाय के नेता विधायक बन चुके हैं। सहसपुर राज परिवार का भी इस क्षेत्र पर खासा प्रभाव रहा है। इस क्षेत्र में चार बार सहसपुर राज परिवार के सदस्य विधायक बने, जबकि अन्य समाज का कोई भी नेता इस सीट से जीत नहीं सका है। यही कारण है कि भाजपा के लिए इस सीट पर जीत हासिल करना आसान नहीं है।
परिसीमन के बाद बदल गया कुंदरकी का राजनीतिक गणित-
2009 में विधानसभा क्षेत्र के परिसीमन के बाद कुंदरकी का नक्शा बदल गया। बिलारी नगर और उसके आसपास का इलाका अलग कर दिया गया और इसे नई बनी बिलारी विधानसभा में जोड़ा गया। वहीं, चंदौसी विधानसभा का एक हिस्सा लेकर बिलारी विधानसभा बनाई गई। इस परिसीमन में सहसपुर राज परिवार का परंपरागत इलाका भी बिलारी में चला गया।
हाजी अकबर हुसैन: कुंदरकी के निर्विवाद तुर्क नेता-
जलालपुर खास गांव के निवासी हाजी अकबर हुसैन ने कुंदरकी में सर्वाधिक पांच बार जीत दर्ज की है। वह 1977 में जनता पार्टी, 1980 में जनता एस राजनारायण पार्टी, 1991 में जनता दल, और 1996 व 2007 में बसपा के टिकट पर विधायक बने। हाजी अकबर हुसैन के करिश्मे और तुर्क समाज में उनके प्रभाव ने उन्हें कुंदरकी की राजनीति में एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया।
हाजी मोहम्मद रिजवान: तुर्क नेताओं की नई पीढ़ी-
डोमघर गांव के तुर्क नेता हाजी मोहम्मद रिजवान ने तीन बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर कुंदरकी से जीत दर्ज की। 2002, 2012, और 2017 में उनकी जीत ने क्षेत्र में तुर्क समाज की बढ़ती सियासी पकड़ को दिखाया। हाल ही में 2022 के विधानसभा चुनाव में भी कुंदरकी में तुर्क जाति के नेता जियाउर्रहमान बर्क ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की।
सहसपुर राज परिवार: चार बार तुर्क नेताओं को दी चुनौती-
सहसपुर राज परिवार ने तुर्क नेताओं को कुंदरकी में चार बार मात दी है। 1974 में कांग्रेस के टिकट पर रानी इंद्रमोहिनी और 1985 में उनकी बेटी रानी रीना कुमारी कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनीं। 1989 में जनता दल के टिकट पर और 1993 में भाजपा के टिकट पर इंद्रमोहिनी के बेटे राजा चंद्रविजय सिंह विधायक बने। राजा चंद्रविजय सिंह एक बार मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी बने।
वर्तमान चुनाव: तुर्क समाज का वर्चस्व टूटेगा या बरकरार रहेगा?
वर्तमान विधानसभा चुनाव में हाजी मोहम्मद रिजवान सपा से प्रत्याशी हैं, जबकि जियाउर्रहमान बर्क संभल लोकसभा से सांसद हैं और हाजी अकबर हुसैन इस चुनाव में नहीं उतर रहे हैं। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि भाजपा इस बार कुंदरकी में तुर्क समाज का वर्चस्व तोड़ पाती है या नहीं। कुंदरकी विधानसभा सीट पर इस बार का चुनाव केवल जीत-हार से बढ़कर है; यह परंपरा और प्रतिष्ठा की लड़ाई है। कुंदरकी के मतदाता इस चुनाव में राज परिवार और तुर्क नेताओं के बीच लंबे समय से चले आ रहे वर्चस्व को किस दिशा में मोड़ते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।