बड़ी खबरें

15 राज्यों की 46 विधानसभा, 2 लोकसभा के नतीजे: वायनाड में प्रियंका को 3.5 लाख+ वोट की बढ़त; यूपी की 9 सीटों में भाजपा 7, सपा 2 पर आगे 3 घंटे पहले झारखंड के रुझानों में झामुमो गठबंधन बहुमत पार:41 का बहुमत और 51 सीटों पर बढ़त; पार्टी महासचिव बोले- लोग बांटने आए थे, कट गए 3 घंटे पहले पर्थ टेस्ट दूसरा दिन- भारत को 142 रन की बढ़त:जायसवाल-राहुल ने 96 रन जोड़े, ऑस्ट्रेलिया पहली पारी में 104 रन पर ऑलआउट 3 घंटे पहले पंजाब उपचुनाव में AAP 3, कांग्रेस एक सीट जीती:बरनाला में बागी की वजह से आप जीत से चूकी, 2 कांग्रेसी सांसदों की पत्नियां हारीं 3 घंटे पहले भाजपा ने कोंकण-विदर्भ में ताकत बढ़ाई, शरद पवार के गढ़ में भी लगाई सेंध 2 घंटे पहले

अब मृतक कर्मचारी की विधवा पुत्री भी पाएगी अनुकंपा नियुक्ति! हाइकोर्ट का आया ये फैसला...

Blog Image

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सेवा मामलों में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पुत्री भी अनुकंपा नियुक्ति (compassionate appointment) का अधिकार रखती है। यह फैसला न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने सुनाया। कोर्ट ने कहा कि विवाहित या विधवा होना अनुकंपा नियुक्ति के दावे को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।

पुनीता भट्ट का संघर्ष और कोर्ट का हस्तक्षेप-

यह फैसला पुनीता भट्ट उर्फ पुनीता धवन की याचिका पर सुनाया गया, जिन्होंने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट), लखनऊ के आदेश को चुनौती दी थी। कैट ने उनकी अनुकंपा नियुक्ति की अर्जी को खारिज कर दिया था, यह कहते हुए कि विधवा पुत्री को इस श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता। याची ने भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के उस निर्देश के खिलाफ भी कोर्ट में अपील की, जिसमें कहा गया था कि विधवा पुत्री अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकती।

अनुकंपा नियुक्ति पर कोर्ट की स्पष्टता-

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विधवा पुत्री को भी पुत्री की श्रेणी में माना जाएगा। कानूनी दृष्टि से यह महत्वपूर्ण है कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य परिवार को वित्तीय सहायता प्रदान करना है, न कि किसी सदस्य के वैवाहिक या वैधव्य की स्थिति पर ध्यान देना।

बीएसएनएल को निर्देश: याचिका पर पुनर्विचार करें-

खंडपीठ ने बीएसएनएल को निर्देश दिया कि वे दो महीने के भीतर याची की अर्जी पर नए सिरे से विचार करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि अर्जी को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि याची विधवा पुत्री है। यह फैसला सेवा क्षेत्र में एक नई कानूनी नजीर स्थापित करता है।

कानूनी व्यवस्था में बदलाव का संकेत-

यह निर्णय परिवार के प्रति संवेदनशीलता और कानून की परिभाषा में व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत पर जोर देता है। यह न केवल विधवा पुत्रियों के लिए एक उम्मीद की किरण है, बल्कि सेवा मामलों में महिलाओं के अधिकारों को भी मजबूत करता है। हाईकोर्ट का यह फैसला उन परिवारों के लिए राहतभरा है, जो अपने प्रियजनों की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति के जरिए आर्थिक सुरक्षा की उम्मीद करते हैं। यह निर्णय कानूनी दृष्टिकोण और मानवीयता के बीच संतुलन स्थापित करता है।

अन्य ख़बरें

संबंधित खबरें