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सूर्य ने किया श्री राम का अभिषेक, रामनवमी पर अद्भुत नजारा देख मंत्रमुग्ध हुआ अयोध्या धाम

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आज रामनवमी पर अयोध्या के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद विराजमान रामलला के सूर्यतिलक का अद्भुत नजारा देखने को मिला जहां दोपहर 12 बजकर 01 मिनट पर वैज्ञानिकों के द्वारा बनाई तकनीक से रामलला के मस्तक पर सूर्य तिलक हुआ। इस दौरान 5 मिनट तक रामलला के ललाट पर सूर्य की किरण दिखाई दीं। जैसे ही रामलला के मस्तक पर सूर्य की पहली किरण पहुंची मंदिर का वातावरण भक्ति भाव में डूब गया। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद रामलला की ये पहली रामनवमी है। इस मौके पर रामलला की विशेष पूजा-अर्चना की गई।

सूर्य तिलक के लिए साइंस की मदद-

रामनवमी के उत्सव पर इस बार राम मंदिर में रामलला के नूतन विग्रह पर सूर्य की किरणों से तिलक किया गया। ख़ास बात यह है कि सूर्य तिलक के लिए साइंस की मदद ली गई है। विज्ञानिकों ने एक ऐसी पद्धति विकसित की है जिसमें मिरर, लेंस व पीतल का प्रयोग किया गया है। इसके संचालन के लिए बिजली या बैटरी की भी ज़रुरत नहीं होगी। अब हर साल रामनवमी के अवसर पर रामलला का सूर्य तिलक किया जाएगा। 

महालक्ष्मी मंदिर में किरणोत्सव-

महाराष्ट्र के कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर के बारें में तो आप जानते ही होंगे, यह मंदिर किरणोत्सव के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। मंदिर में यह घटना तब घटती है जब सूर्य की किरणें सीधे देवी की मूर्ति को स्पर्श करती है। वैसे दुनियाभर में यह केवल ऐसा मंदिर नहीं है जहां यह नज़ारा देखने को मिलता है, और भी कई ऐसे मंदिर है जहां देवी-देवताओं की प्रतिमा का सूर्य से अभिषेक किया जाता है। 

ऐसे में जानते हैं विज्ञान की दृष्टि से यह अनुष्ठान क्यों ख़ास है, यह किस तकनीक पर आधारित होगा, और भगवान राम के सूर्य तिलक से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलू क्या हैं? 

सूर्य तिलक में धार्मिक महत्त्व-

भगवान श्री राम सूर्यवंशी हैं और उनके कुल देवता सूर्य देव हैं। सनातन धर्म में सूर्य को ऊर्जा का स्त्रोत और ग्रहों का राजा माना जाता है। ऐसे में कहा जाता है कि किसी शुभ घड़ी में जब देवता अपनी पहली किरण से भगवान का अभिषेक करते हैं, तो इससे देवत्व का भाव जागता है। इस परिकल्पना को सूर्य किरण अभिषेक या फिर सूर्य तिलक कहा जाता है। 

क्या है ऑप्टो मैकेनिकल सिस्टम?

राम लला का सूर्य तिलक, दर्पण और लेंस की एक अद्भुत तकनीक पर आधारित है। यह तकनीक, जिसे ऑप्टो मैकेनिकल सिस्टम भी कहा जाता है, सूर्य की किरणों को गर्भगृह में भगवान राम की मूर्ति तक पहुंचाने का काम करती है। यह तकनीक खास तौर पर अयोध्या के राम मंदिर में भगवान राम की मूर्ति पर सूर्य की किरणों को प्रतिबिंबित करने के लिए बनायी गयी है। इससे अब यह हर साल राम नवमी के दिन, दोपहर 12 बजे, सिर्फ 6 मिनट के लिए भगवान का सूर्य अभिषेक किया जाएगा। 

क्या है इसकी प्रक्रिया?

अब इसकी प्रक्रिया को समझने का प्रयास कर सबसे पहले, सूर्य की किरणें मंदिर के शिखर पर स्थित एक विशेष दर्पण पर पड़ती हैं। यह दर्पण किरणों को एक दूसरे दर्पण पर परावर्तित करता है, जो गर्भगृह में स्थित होता है। फिर, गर्भगृह में स्थित लेंस इन किरणों को और केंद्रित करते हैं, ताकि वे सीधे भगवान राम की मूर्ति के माथे पर पड़ सकें। इससे परावर्तित होने वाली किरणों से मस्तक पर तिलक बनेगा। यह तिलक के रूप में 75 मिमी. का गोलाकार होगा।

 भारतीय संस्कृति और विज्ञान की समृद्ध विरासत-

सूर्य तिलक प्रोजेक्ट में तिलक और पाइपिंग के डिज़ाइन पर सीबीआरआइ रूड़की के विज्ञानी डॉ. एसके पाणिग्रही और उनकी टीम ने काम किया है। उनके अलावा कंसल्टेशन, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ एस्ट्रोफिजिक्स बैंगलौर और फब्रिकेशन, ऑप्टिका बैंगलौर ने किया है। इस पूरी प्रणाली को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह हर साल रामनवमी के दिन, सूर्य की किरणों को मूर्ति पर केंद्रित कर सके। इसके लिए, एस्ट्रोनॉमी और इंजीनियरिंग का सटीक मिश्रण इस्तेमाल किया गया है। ऐसे में यह प्रक्रिया न केवल एक अद्भुत इंजीनियरिंग उपलब्धि है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और विज्ञान की समृद्ध विरासत का भी प्रतीक है।

कई मंदिरों में इस्तेमाल हो चुकी है ये मैकेनिज्म-

अन्य मंदिरों की बात करें तो यह मैकेनिज्म इससे पहले भी कई मंदिरों में इस्तेमाल की जा चुकी है, जिसमें जैन मंदिर और सूर्य मंदिर का नाम भी शामिल है। हालांकि, यहां अलग तरह की इंजीनियरिंग का प्रयोग किया गया है। राम मंदिर में मैकेनिज्म वही है लेकिन इंजीनियरिंग बिलकुल अलग है। इनके अलावा महाराष्ट्र का महालक्ष्मी मंदिर, दतिया का बालाजी सूर्य मंदिर, कोणार्क सूर्य मंदिर, राजस्थान का रणकपुर मंदिर आदि का नाम भी शामिल है।   

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