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अब यूपी में भी पैदा होगा मखाना, देवरिया में पहली बार शुरू हुई मखाने की खेती

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(Special Story) देश के साथ ही विदेशों से भी मखाने की मांग बढ़ रही है। ऐसे में इसकी खेती कर किसान लाभ कमा सकते हैं।  देशभर में सबसे ज्यादा मखाने की खेती बिहार में होती है। देश की करीब 80 फीसदी मखाने की खेती अकेले बिहार में की जाती है, इसके साथ ही असम, मेघालय और उड़ीसा में भी इसकी खेती की जाती है। अब उत्तर प्रदेश में भी मखाने की खेती शुरू हो गई है। आइए विस्तार से जानते हैं इसकी खेती कैसी की जाती और क्या सावधानियां रखनी पड़ती हैं।

देवरिया में शुरू हुई मखाने की खेती- 

देवरिया के DM अखंड प्रताप सिंह जिले में लगातार किसानों की आय को बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहते हैं। जिससे जिले के तमाम कर्मठ युवा और किसान खेती, किसानी, पशुपालन, मत्स्य पालन जैसी योजनाओं को अपना कर आर्थिक उन्नति कर रहे हैं। देवरिया के डीएम ने किसानों को नई पहल के लिए प्रेरित किया है। जहां एक गांव में मत्स्य पालक केंद्र में मखाना के पौधे की रोपाई हुई जो इस जनपद के लिए ऐतिहासिक है क्योंकि यह पहली बार है जब यूपी में मखाने की खेती शुरू की गई है। डीएम ने बताया कि जनपद में किसानों के लिए जिले में पहली बार एक अभिनव प्रयोग किया है जो जिले के किसानों के लिए वरदान साबित होगा। इससे कम लागत में किसान अच्छा मुनाफा कमाएगा। यह जनपद की आर्थिक तरक्की का आधार बनेगा जिले के भौगोलिक प्रोफइल में लगभग 30 हजार हेक्टेयर भूमि लो-लैंड एवं जलमग्न क्षेत्र चिन्हित है। इन क्षेत्रों के लिए मखाना की खेती वरदान साबित होगी। मखाने के जिस पौध की रोपाई हुई है वह स्वर्ण वैदेही प्रजाति की है, जिसे काला हीरा नाम से भी जाना जाता है उन्होंने किसानों से व्यापक पैमाने पर मखाना की खेती प्रारंभ करने का अनुरोध किया है।

सबसे ज्यादा कहां होती है मखाने की खेती-

आपको बता दें कि बिहार के मिथिलांचल की धरती पर उपजने वाला मखाना न्यूट्रीशन व प्रोटीन से भरपूर होता है। देश सहित विश्व में बड़े पैमाने पर इसकी मांग है। मखाना अपनी गुणवत्ता की वजह से किचन में पैठ बना चुका है। ये जितना स्वास्थ्यवर्धक है। वहीं इसकी खेती उतनी ही कठिन है। नर्सरी से लेकर हार्वेस्टिंग तक इसकी खेती में किसानों को काफी मेहनत करनी पड़ती है। 
देश में मखाने की 80 फीसदी खेती अकेले बिहार में की जाती है, क्योंकि यहां की जलवायु इसके लिए सबसे उपयुक्त है। इसके साथ ही असम, मेघालय और उड़ीसा में भी इसकी खेती की जाती है। वहीं केंद्र सरकार के द्वारा मिथिला के मखाना को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग मिल चुका है। आइए जानते हैं कैसी की जाती है इसकी खेती...

कैसे तैयार होती है नर्सरी?

मखाना की खेती करने से पहले इसकी नर्सरी तैयार की जाती है। ये नर्सरी खेत में मखाना की खेती करने के लिए तैयार की जाती है। इसकी खेती के लिए चिकनी एवं चिकनी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसकी नर्सरी नवंबर से दिसंबर तक डाली जाती है। वहीं कुछ किसान मई महीने में खेती करने के लिए जनवरी से फरवरी में भी नर्सरी डालते हैं। खेत में नर्सरी डालने से पहले खेत की 2 से 3 बार गहरी जुताई की जाती है और करीब डेढ़ से दो फीट तक पानी भरा जाता है। वहीं एक एकड़ में खेती करने के लिए करीब 12 से 13 किलो बीज डाला जाता है। दिसंबर महीने में नर्सरी डालने के बाद अप्रैल तक पौधों की रोपाई हो जानी चाहिए। 

खेत में मखाने की रोपाई-

जब मखाना का नवजात पौधे का पत्ता प्लेट के जैसा हो जाता है तो वह उस साइज में रोपाई के लिए उपयुक्त रहता है। मखाने के स्वस्थ और नवजात पौधे की जड़ को मिट्टी के अंदर दबाना चाहिए और उसकी कली को पानी के अंदर रखना चाहिए साथ ही पत्ता डूबना नहीं चाहिए। नवजात पौधा लगाते समय पंक्ति से पंक्ति और पौधों से पौधों की दूरी 1.20 मीटर X 1.25 मीटर तक होनी चाहिए। वहीं बुवाई के 2 महीने बाद बैंगनी रंग के फूल पौधों पर दिखने लगते हैं। उसके करीब 40 दिन बाद फल पक कर फूट जाता है और गुरिया नीचे बैठने लगते हैं। इसके बाद बीज की कटाई होती है और उसके गुरिया (मखाना का बीज) को गर्म करने के बाद एक से दो दिन तक ठंडा किया जाता है और फिर गर्म करके गुरिया से मखाना प्राप्त किया जाता है।

खेत में मखाना की खेती के लिए एक से दो फीट पानी होना जरूरी है. वहीं एक एकड़ खेत से करीब 12 क्विंटल तक गुरिया (मखाना का बीज) निकलता है. इस दौरान खेती करने में कुल 70 से 75 हजार रुपए तक खर्च आ जाता है.

मछली पालन के साथ मखाना की खेती-

तालाब में मखाना की खेती पारंपरिक तकनीक है। इसमें सीधे तालाब में ही बीज का छिड़काव होता है। वहीं बीज डालने के करीब डेढ़ महीने बाद पानी में बीज उगने लगता है। वहीं 60 से 65 दिन बाद पौदे जल की सहत पर दिखने लगते हैं। उस समय पौधों से पौधों और पंक्ति से पंक्ति के बीच करीब एक मीटर की दूरी रखनी चाहिए। इसके अन्य अतिरिक्त पौधे निकाल देने चाहिए। इस तकनीक के साथ विशेष रूप से मछुआ समुदाय खेती करता था, लेकिन आज के समय में सभी लोग तालाब में मखाने की खेती कर रहें हैं। वहीं मखाना की खेती के साथ मछली पालन भी किया जा रहा है। इसमें तालाब का दसवां हिस्सा खाली रखते हैं, जिससे की मछली सांस ले सके।

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