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रज़ा लाइब्रेरी की प्रसिद्धि को दर्शाने वाली पुस्तक का हुआ विमोचन, इण्डो- अरब संबंधों को मजबूत बनाने में होगी सहायक

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रामपुर रज़ा लाइब्रेरी जो भारत सहित दक्षिण एशिया में प्रसिद्ध है। विभिन्न धर्मों, परंपराओं से संबंधित कार्यों के अलावा, यह इंडो-इस्लामिक शिक्षा और कला का खजाना है। इसकी स्थापना 1774 में नवाब फैजुल्ला खान ने की थी। अब इसकी तारीख व तवारूफ पर अरबी में लिखी डा० मोहम्मद इरशाद नदवी की किताब लिखी है "नाफीजतुन अलल मकतबती रज़ा बल मतहक बी रामपुर" का विमोचन रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी में किया गया। इस अवसर पर मुरादाबाद के वर्तमान मंडलायुक्त आन्जनेय कुमार सिंह ने कहा कि पहली बार अरवी भाषा में रज़ा लाइब्रेरी की तारीख और दुर्लभ पाण्डुलिपियों के परिचय के हवाले से कोई किताब सामने आयी है। वरना इस शीर्षक पर अरबी भाषा में अरब स्कालर्स और अरब मेहमानों को देने के लिए कुछ नहीं था। मुझे खुशी है कि लाइब्रेरी के ही पुराने कर्मचारी डा० मोहम्मद इरशाद नदवी ने यह कारनामा अंजाम दिया। मैं उनको इस काम के लिए मुबारकबाद देता हूँ। उन्होंने कहा कि लेखक एक लम्बे समय से यहाँ की अरबी फारसी पाण्डुलिपियों पर काम कर रहे हैं और पुरानी अरबी लिपि पर उनकी अच्छी पकड़ है। मुझे खुशी है कि उन्होंने अरब मेहमानों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।

रज़ा लाइब्रेरी की महत्ता से रूबरू होंगे अरब के विश्वविद्यालय-

इस अवसर पर मुख्य अतिथि डा० कुमार विश्वास ने कहा कि इस पुस्तक की मदद से अरब देशों और अरब विश्वविद्यालयों में रजा लाइब्रेरी की महत्ता और विशेषता का परिचय हो सकेगा। डा० मोहम्मद इरशाद नदवी ने इस मौके पर कुमार विश्वास को अपना गजल संग्रह- "रुह के जख्म" की एक प्रति भी भेंट की पुस्तक विमोचन के मौके पर डा० तबस्सुम साबिर ने कहा कि - इस पुस्तक में लेखक ने महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ पाण्डुलिपियों की झलक दिखलायी है। इसमें बहुत कुछ वृद्धि की आवश्यकता है। पुस्तक के लेखक डा० मोहम्मद इरशाद नदवी ने बताया कि इसका नाम "नाफीजा" यानी खिड़की या रजा लाइब्रेरी का झरोखा रखा गया है जिससे एक अंजान अरब मेहमान के सामने इसका संक्षिप्त खाका आ जाये।
सैयद नवेद कैंसर ने कहा कि इस किताब में जिन दुर्लभ चीजों का जिक्र किया गया है उनमें वाल्मीकि रामायण, मकनपुर शाह मदार से सम्बन्धित दुर्लभ मुगलिया फरामीन, हजरत अली के असआर की खूबसूरत कलाकृतियों जिनका स्वयं उन्होंने "मधहे पयम्बर ब जुबाने हैदर" के नाम से अनुवाद भी किया जिसका प्रकाशन किया जाना है। 

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