बड़ी खबरें

161 पर भारत को तीसरा झटका, यशस्वी 87 रन बनाकर आउट 15 घंटे पहले

World Wildlife Day 2024: जरूरी है बेजुबानों को बचाना....

Blog Image

(Special Story) बेजुबान जानवर प्रकृति का एक खूबसूरत हिस्सा हैं और जंगल इन का खूबसूरत आशियाना है। प्रकृति ने इन वन्यजीवों और मनुष्यों के बीच एक ईको सिस्टम भी विकसित किया है। जिसका संतुलन बना रहना वन्यजीवों और इंसानों दोनों के लिए अनिवार्य है। यदि संतुलन बिगड़ा और इनका संरक्षण नहीं किया गया तो यह पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो जाएगा और इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव इंसानों पर भी पड़ेगा। दुनियाभर से लुप्त हो रहे वन्य जीव-जंतुओं की प्रजातियों के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए हर साल 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस (world wildlife day) मनाया जाता है।

 

वनों में शेर, मगरमच्छ, हाथी जैसे सैकड़ों वन्यजीव मौजूद हैं लेकिन खाल, नाखून, सींग और मांस के लिए इन जीवों का अवैध शिकार किया जाता है। यह प्राकृतिक संतुलन के कदाचित अनुकूल नहीं है। इंसान इनके अंगों का उपयोग फैशन, सौन्दर्य उत्पादन और कई विशिष्ट प्रकार की दवाओं के लिए करते हैं जिससे इन वन्यजीवों का जीवन संकट में आ गया है। हालांकि, इनकी आपूर्ति अन्य विकल्पों से भी पूरी की जा सकती हैं। इसलिए वन्यजीव प्रजातियों का शिकार रोकना वन्यजीव संरक्षण के तहत आता है। भारत में इस समय कई प्रजातियां खतरे में हैं। समय रहते इस ओर ध्यान न दिया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व वन्यजीव दिवस पर सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा कि, "आज का दिन अपनी धरती पर जीवों की अविश्वसनीय विविधता का उत्सव मनाने और इनकी रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने का अवसर है।”

वन्य जीव दिवस के उद्देश्य

प्रतिवर्ष 03 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस मनाए जाने का उद्देश्य, प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को समझकर और वन्य जीव संरक्षण के लिए समर्पित होना है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ डे हमें संगठन के रूप में मिलकर काम करने की प्रेरणा देता है। जिससे हम सभी साझा उत्तरदायित्व के रूप में पृथ्वी और वन्य जीव संरक्षण में योगदान कर सकें।

विश्व वन्यजीव दिवस 2024 की थीम

विश्व वन्यजीव दिवस 2024 की थीम है ''लोगों और ग्रह को जोड़ना: वन्यजीव संरक्षण में डिजिटल नवाचार की खोज' । इस थीम के मुताबिक नवीनतम डिजिटल तकनीकों और नवाचारों के इस्तेमाल से जंगली जीवों को संरक्षित करने के साथ ही उनमें वृद्धि करने की दिशा में भी ध्यान दिया जाएगा।

वन्य जीव संरक्षण के लिए सरकार के कदम-

सरकार के प्रयासों से भी पिछले कुछ सालों बाघों की संख्‍या में काफी बढ़ोतरी हुई है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में बताया कि किस तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से मनुष्य और बाघों के बीच संघर्ष कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

वन्यजीव संरक्षण के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। इनका उचित प्रयोग करके वन्यजीवों को सुरक्षित किया जा सकता है।

AI की मदद से वन्य जीव संरक्षण

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्‍स पर आधारित गरुड़ ऐप को किसी भी सीसीटीवी से जोड़ने पर वास्तविक समय अलर्ट मिलने लगता है। (AI) के माध्यम से स्थानीय लोगों को उनके मोबाइल पर बाघों के आने के बारे में सतर्क कर दिया जाता है। गांव और वन की सीमा पर कैमरे लगाए गए हैं। नए उद्यमी भी वन्य जीव संरक्षण और इको पर्यटन में काम कर रहे हैं।

ड्रोन के माध्यम से वन्य जीव संरक्षण

उत्तराखंड के रुड़की में रोटर प्रिसेशन ग्रुप ने भारतीय वन्यजीव संस्थान के साथ मिलकर एक ऐसा ड्रोन विकसित किया है जिससे केन नदी में घड़ियालों पर नज़र रखने में मदद मिल रही है।

ऐप के माध्यम से वन्य जीव संरक्षण

बेंगलुरु की एक कम्पनी ने हाल ही में बघीरा और गरुड़ नाम के एक ऐप को तैयार किया है। बघीरा ऐप से जंगल सफारी के दौरान वाहन की गति और अन्य गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है। देश के अनेक बाघ अभ्‍यारण्‍यों में इसका उपयोग हो रहा है।

वन्य जीव संरक्षण के लिए रेडियो कॉलर का प्रयोग

एशियाई हाथी पहला जानवर था जिसे 1985 में भारत में मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य में रिसर्च के लिए रेडियो कॉलर लगाया गया था। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी की ओर से ऑपरेशन मासिनागुडी नामक एक परियोजना में दो हाथियों को रेडियो कॉलर लगाए गए और फिर इन्हें ट्रैक किया गया। इसके बाद 90 के दशक की शुरुआत में संरक्षणवादी और बाघ विशेषज्ञ उल्लास कारंत ने भारत में सबसे बेशकीमती माने जाने वाले बाघों पर रेडियो कॉलर का इस्तेमाल करते हुए पहला अध्ययन किया। 

विश्व वन्यजीव दिवस का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर 2013 को, अपने 68वें अधिवेशन में वन्यजीवों की सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने एवं वनस्पति के लुप्तप्राय प्रजाति के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए 3 मार्च को हर साल विश्व वन्यजीव दिवस मनाने की घोषणा की थी। वन्य जीवों को विलुप्त होने से रोकने के लिए सबसे पहले साल 1872 में वाइल्ड एलीफेंट प्रिजर्वेशन एक्ट पारित हुआ था।  

 विलुप्त होने के कगार पर प्रजातियां-

भारत में 12 फीसदी से अधिक जंगली स्तनधारी प्रजातियां विलुप्त होने का सामना कर रही हैं। पिछले 25 वर्षों में 40 फीसदी से ज्यादा मधुमक्खियां गायब हो गई हैं। 867 पक्षी प्रजातियों में से 50 फीसदी से अधिक की जनसंख्या में दीर्घावधि में गिरावट देखी जाएगी, जबकि 146 अल्पावधि में भी बड़े खतरे में हैं। उभयचरों की लगभग 150 प्रजातियां खतरे में हैं।

- Ankit Verma

अन्य ख़बरें