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एक ऐसी चिकित्सा प्रणाली जो मानती है कि शरीर स्वयं को ठीक कर सकता है..

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(Special story) किसी भी बीमारी को ठीक करने के लिए किसी न किसी चिकित्सा प्रणाली की आवश्यकता होती है। लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है कि इलाज कराने वाले लोग किस पर भरोसा करते हैं। वैसे तो देशभर में इलाज के तीन एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद ही प्रमुख तरीके अपनाए जाते हैं। लेकिन सभी को अलग-अलग तरीके से अपनाया जाता है। इन तीनों के प्रति लोगों में जागरूकता आई है और इन पर भरोसा करते हुए इलाज भी करा रहे हैं। हालांकि वर्तमान में एलोपैथी के बाद होम्योपैथी की चर्चा ज्यादा होती है। होम्योपैथी एक ऐसी चिकित्सा प्रणाली है जो मानती है कि शरीर स्वयं को ठीक कर सकता है। इसपर लोगों का भरोसा इसलिए भी है क्योंकि इसके साइड इफेक्ट की संभावना कम और ठीक होने की संभावना ज्यादा देखी गई है। 

होम्योपैथी की दवाएं 'लाइक क्योर लाइक' के सिद्धांत पर आधारित है। इसका अर्थ है कि जिस पदार्थ को कम मात्रा में लिया जाता है, वही लक्षण बड़ी मात्रा में लेने पर ठीक हो जाते हैं। होम्योपैथी ग्रीक शब्द होमियो से लिया गया है, जिसका अर्थ है समान, और पाथोस, जिसका अर्थ है पीड़ा या बीमारी। होम्योपैथी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया जाता है। साथ ही ये दिन होम्योपैथी के संस्थापक सैमुअल हैनीमैन के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। आइए जानते हैं, विश्व होम्योपैथी दिवस का इतिहास क्या है? क्यों मनाया जाता है? इसका क्या महत्व है? जैसी तमाम बातों के बारे में..

विश्व होम्योपैथी दिवस क्यों मनाया जाता है?

विश्व होम्योपैथी दिवस हर साल 10 अप्रैल को मनाया जाता है। यह दिन जर्मन चिकित्सक डॉ. सैमुएल हैनीमैन की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिन्हें होम्योपैथी नामक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का जनक माना जाता है। इस दिन होम्योपैथी के बारे में जागरूकता फैलाने और इसके फायदों को लोगों तक पहुंचाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। होम्योपैथी एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है जो इस सिद्धांत पर आधारित है कि "समान दवा समान रोग को ठीक करती है" (like cures like) इसका मतलब है कि बीमारी पैदा करने वाले पदार्थ को कमजोर और पतला करके दवा के रूप में दिया जाता है, जिससे शरीर खुद को ठीक कर सके। 

क्या है विश्व होम्योपैथी दिवस का इतिहास ?

होम्योपैथी में सर्जरी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि शरीर में बीमारियों को ठीक करने की क्षमता होती है और होम्योपैथी दवाएं इस क्षमता को उत्तेजित करने में मदद करती हैं। इसके अलावा होम्योपैथी में प्रत्येक रोगी को उसके व्यक्तिगत लक्षणों के आधार पर इलाज किया जाता है। होम्योपैथी का जन्म जर्मनी में हुआ था। 18वीं शताब्दी में डॉ. सैमुअल हैनीमैन ने इस चिकित्सा पद्धति को विकसित किया था। डॉ. सैमुअल हैनीमैन का जन्म 10 अप्रैल 1755 को जर्मनी में हुआ था। उन्होंने 1796 में होम्योपैथी की खोज की थी। साल 1833 में, डॉ. सैमुअल ने जर्मनी में पहला होम्योपैथिक अस्पताल स्थापित किया था। इसके बाद साल 1948 में डॉ. एम.एल. भंडारी ने डॉ. हैनिमैन के जन्मदिन को विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाने की पहल की। होम्योपैथी दुनिया भर में लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि यह एक सुरक्षित और प्रभावी चिकित्सकीय पद्धति है। इससे कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है, जिनमें एलर्जी, अस्थमा, गठिया, त्वचा रोग और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं शामिल हैं।

विश्व होम्योपैथी दिवस मनाने का उद्देश्य-

होम्योपैथी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और होम्योपैथी तक पहुंच में सुधार करने के लिए होम्योपैथी दिवस मनाया जाता है।इसे मनाने का उद्देश्य होम्योपैथिक उपचार के बारे में जागरूकता फैलाना है। होम्योपैथी को बड़े पैमाने पर विकसित करने के लिए आवश्यक भविष्य की रणनीतियों और इसकी चुनौतियों को समझना भी महत्वपूर्ण है। विश्व होम्योपैथी दिवस का लक्ष्य दुनिया भर के चिकित्सकों, उत्साही और समर्थकों को एक साथ लाकर होम्योपैथी के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना है।

कैसे बनती हैं होम्योपैथिक दवाएं?

होम्योपैथी दवाएं प्राकृतिक पदार्थों से बनाई जाती हैं। जैसे पौधों, जानवरों और खनिजों। इन दवाओं को पतला और पोटीनाइज्ड करके दवाएं तैयार की जाती है। ये पदार्थ शरीर को स्वस्थ रखने की क्षमता को उत्तेजित करते हैं।

क्यों होती हैं होम्योपैथी की दवाएं मीठी?

दरअसल, होम्योपैथिक दवाएं अल्कोहल माध्यम में तैयार की जाती हैं। इसका स्वाद काफी कसैला होता है। कई बार अल्कोहल की अधिक मात्रा के कारण मुंह में छाले पड़ने का भी खतरा रहता है, इसलिए इन्हें मीठी गोलियों के साथ मिलाकर मरीज को दिया जाता है। ये गोलियां दूध की शर्करा या गन्ने की शर्करा से तैयार की जाती है ताकि बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक इसे आसानी से खा सकें।

विश्व होम्योपैथी दिवस 2024 थीम

भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा हर साल विश्व होम्योपैथी दिवस के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है। इस वर्ष विश्व होम्योपैथी दिवस 2024 'होम्यो परिवार: एक स्वास्थ्य, एक परिवार' थीम पर मनाया जा रहा है।

होम्योपैथी उपचार की ऐसी विधा है जिसमें बिना किसी दर्द के परेशानी दूर की जाती है। साथ ही होम्योपैथी को लेकर एक बात अक्सर कही जाती है कि अगर बीमारी को जड़ से खत्म करना है तो होम्योपैथी का दामन थाम लो, तो आज हम जानेंगे कि किन-किन बीमारियों में यह उपचार असरदार साबित हो सकता है। 

होम्योपैथी के संभावित लाभ

कम साइड इफेक्ट्स-

होम्योपैथिक दवाओं को आमतौर पर हल्का माना जाता है क्योंकि वे अत्यधिक पतलीकृत होती हैं। हालांकि, कुछ मामलों में एलर्जिक रिएक्शन हो सकते हैं।

दीर्घकालिक बीमारियों में लाभ-

कुछ अध्ययनों से संकेत मिलता है कि होम्योपैथी कुछ दीर्घकालिक स्थितियों, जैसे कि गठिया और एग्जिमा के लक्षणों को कम करने में मददगार हो सकती है।

शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देना-

होम्योपैथी के सिद्धांतों के अनुसार, यह माना जाता है कि होम्योपैथिक दवाएं शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाकर रोगों से लड़ने में मदद करती हैं।

हल्की और तीव्र बीमारियों का इलाज-

ऐसा दावा किया जाता है कि होम्योपैथी सर्दी, जुकाम, बुखार और यहां तक ​​कि चोटों जैसे तीव्र रोगों के साथ-साथ चिंता और अवसाद जैसी मानसिक एवं भावनात्मक समस्याओं के इलाज में भी कारगर हो सकती है।

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