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इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक, पार्टियों पर क्या होगा इसका असर?

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(Special Story) लोकसभा चुनावों से पहले पार्टियों को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अवैध करार दे दिया है। इसके साथ ही इस बॉन्ड के जरिए चंदा लेने पर तत्काल रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि इसकी गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। आइए आपको विस्तार से बताते हैं कि इस बॉन्ड के शुरू होने के बाद से यह विवादों में क्यों घिरा। इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?, इसको क्यों लाया गया.. 

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक-

5 जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अवैध करार दिया है। चीफ जस्टिस ने कहा,'पॉलिटिकल प्रॉसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं। पॉलिटिकल फंडिंग की जानकारी, वह प्रक्रिया है जिससे मतदाता को वोट डालने के लिए सही विकल्प मिलता है। वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वो इलेक्टोरल बॉन्ड इश्यू करना बंद कर दें। कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देने का आदेश दिया है।

आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें-

  •  SBI राजनीतिक दलों का ब्योरा दे, जिन्होंने 2019 से अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा हासिल किया है।
  • SBI राजनीतिक दल की ओर से कैश किए गए हर इलेक्टोरल बॉन्ड की डिटेल दे, कैश करने की तारीख का भी ब्योरा दे।
  • SBI सारी जानकारी 6 मार्च 2024 तक इलेक्शन कमीशन को दे और इलेक्शन कमीशन 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर इसे पब्लिश करे।
  • राजनीतिक चंदे की गोपनीयता के पीछे ब्लैक मनी पर नकेल कसने का तर्क सही नहीं। यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।
  • कंपनी एक्ट में संशोधन मनमाना और असंवैधानिक कदम है। इसके जरिए कंपनियों की ओर से राजनीतिक दलों को असीमित फंडिंग का रास्ता खुला।
  • निजता के मौलिक अधिकार में नागरिकों के राजनीतिक जुड़ाव को भी गोपनीय रखना शामिल है।

2 नवंबर को SC ने फैसला रखा था सुरक्षित -

आपको बता दें कि CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने तीन दिन की सुनवाई के बाद 2 नवंबर 2023 को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसको लेकर चार याचिकाएं दाखिल की गई थीं। याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कांग्रेस नेता जया ठाकुर और CPM शामिल है।  केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी। 

केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखते हुए कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता आई है। पहले नकद में चंदा दिया जाता था लेकिन अब चंदे की गोपनीयता दानदाताओं के हित में रखी गई है। उन्होंने कहा था कि चंदा देने वाले नहीं चाहते कि उनके दान देने के बारे में दूसरी पार्टी को पता चले। इससे उनके प्रति दूसरी पार्टी की नाराजगी नहीं बढ़ेगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर ऐसी बात है तो फिर सत्ताधारी दल विपक्षियों के चंदे की जानकारी क्यों लेता है। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे जबकि सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और विजय हंसारिया ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी। 

आइए अब आसान शब्दों मे जानते हैं कि आखिर ये इलेक्टोरल बॉन्ड क्या होता है और इसको क्यों लाया गया था। 

इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?

केंद्र सरकार ने चुनावी फंडिंग को साफ-सुथरा बनाने के लिए 2 जनवरी, 2018 को चुनावी बॉन्ड स्कीम का ऐलान किया था। सरकार द्वारा फाइनेंस एक्ट-2017 के जरिये पांच बड़े कानूनों में बदलाव करके इस स्कीम को लाया गया था। जिसमें RBI एक्ट 1934 की धारा-31, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा- 29C, आयकर अधिनियम 1961 की धारा-31A, कंपनी एक्ट 2013 की धारा 182 और विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम 2010 की धारा 2(1) शामिल हैं।

कौन खरीद सकता है बॉन्ड-

बॉन्ड खरीदने वाला 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता है। खरीदने वाले को बैंक को अपनी पूरी KYC डीटेल में देनी होती है। खरीदने वाला जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट करना चाहता है, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिला होना चाहिए। डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर इसे उस पार्टी के चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है। 

किस पार्टी को बॉन्ड के जरिए कितना मिला चंदा-

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक आइए जानने की कोशिश करते हैं किस पार्टी को कितना चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिला है।

बॉन्ड पर क्यों हुआ विवाद- 

आपको बता दें कि 2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते हुए जहां दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। वहीं ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। हालांकि इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं  की जाती है इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिए बन सकते हैं। साथ ही कुछ लोग इसको बड़े कॉर्पोरेट घरानों को ध्यान में रखकर लायी गई स्कीम बता रहे थे। बहरहाल लोकसभा चुनावों से ठीक पहले इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगने से पार्टियों की मुश्किलें तो जरूर ही बढ़ने वाली हैं।

 

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