संविधान के अनुच्छेद 124 (2) के अंतर्गत, राष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री संजीव खन्ना को 11 नवंबर, 2024 से भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया है। लेकिन यह सवाल भी उठता है कि भारतीय न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर अब तक कोई महिला क्यों नहीं पहुंच सकी है?
महिलाओं का प्रतिनिधित्व सीमित क्यों?
भारत की 50% आबादी महिलाओं की है, लेकिन इस समुदाय का उच्च न्यायपालिका में मात्र 6% ही प्रतिनिधित्व है। 1989 में फातिमा बीवी सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज बनी थीं, और आज तक केवल 11 महिलाएं सुप्रीम कोर्ट की जज बनी हैं। वर्तमान में 34 न्यायाधीशों में केवल दो महिला न्यायाधीश हैं।
उच्च न्यायालयों में महिलाओं की स्थिति-
उच्च न्यायालयों में भी महिलाओं की भागीदारी संतोषजनक नहीं है। कुल 788 जजों में से केवल 107 महिलाएं हैं, यानी केवल 13.6%। मणिपुर, मेघालय, पटना, त्रिपुरा और उत्तराखंड में तो एक भी महिला जज नहीं है। निचली अदालतों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 11.6% है।
न्यायपालिका में लैंगिक असमानता के कारण
- पारंपरिक सोच: समाज में महिलाओं की भूमिका सीमित मानने की परंपरा है, जिससे वे घरेलू कार्यों तक सीमित रह जाती हैं।
- लैंगिक पूर्वाग्रह: अभी भी यह विचार बना हुआ है कि महिलाएं उच्च पदों के लिए सक्षम नहीं हैं।
- अवसरों और संसाधनों की कमी: महिलाओं के लिए न्यायपालिका में संसाधनों की कमी और अवसरों की सीमितता भी बड़ा कारण है।
- कोलेजियम प्रणाली की भूमिका: कोलेजियम प्रणाली में मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों के निर्णय से न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है। इस प्रणाली को लेकर चर्चा है कि इसमें सुधार की आवश्यकता है।
महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के सुझाव
- आरक्षण नीति: महिलाओं के लिए न्यायपालिका में आरक्षण निर्धारित किया जाए।
- मेंटरशिप प्रोग्राम: युवा महिला न्यायिक अधिकारियों को मार्गदर्शन देने के लिए मेंटरशिप कार्यक्रम की शुरुआत होनी चाहिए।
- जेंडर सेंसिटिविटी ट्रेनिंग: महिलाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए जेंडर सेंसिटिविटी प्रशिक्षण आवश्यक है।
- सहायता ढांचा: करियर में प्रगति के लिए महिलाओं को वर्क-लाइफ बैलेंस, सुरक्षा और प्रोफेशनल विकास के अवसर दिए जाने चाहिए।
भारत की न्यायपालिका को इन सुधारों को अपनाकर समानता और भागीदारी के सिद्धांत को साकार करना चाहिए।