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भारत में यहां बनेगा दुनिया का सबसे बड़ा एनर्जी पार्क

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गुजरात के कच्छ के रण में अडानी ग्रुप दुनिया का सबसे बड़ा ग्रीन एनर्जी पार्क बना रहा है. इस पार्क से करीब 2 करोड़ से ज्यादा घरों को बिजली देने के लिए 30 गीगावॉट बिजली पैदा करेगा। ये है गुजरात का कच्छ का रण वाला इलाक़ा। ये काफी बड़ा क्षेत्र है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कोई वन्यजीव नहीं है, कोई वनस्पति नहीं है, कोई आवास नहीं है। तो फिर यहां के ज़मीन का बेहतर उपयोग क्या हो सकता है।

दुनिया का सबसे बड़ा एनर्जी पार्क होगा। और ये साइज में पेरिस से पांच गुना बड़ा होगा। यह इतना बड़ा होगा कि स्पेस से भी दिखाई देगा। इस प्लांट से इतनी बिजनी निकलेगी कि वह पूरे स्विट्जरलैंड को चला सकती है।

कई लाख लोगों को रोजगार मिलने की संभावना-

आपको बता दें कि अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड एक कंपनी है जो अदानी ग्रुप की है। यही कंपनी यहां पर दुनिया का सबसे बड़ा क्लीन एनर्जी पार्क का निर्माण करने जा रही है। 726 वर्ग किलोमीटर के विशाल एरिया में निर्मित होने वाला ये एनर्जी पार्क दो करोड़ से ज्यादा घरों के लिए करीब 30 गीगावॉट बिजली पैदा करेगा। इस पार्क को बनाने में तकरीबन 20 बिलियन डॉलर से लागत आ सकती है और यह लगभग 5 वर्ष में बनकर तैयार होगा। एक अनुमान के मुताबिक, यह हर साल 9 करोड़ पेड़ लगाने के बराबर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन को कम करेगा और इससे इस परियोजना से 1.5 लाख लोगों को रोजगार मिलाने की संभावना है। बता दें कि अडानी ग्रुप अगले 10 वर्षों में अपने पोर्ट, पॉवर और सीमेंट परिचालन में ग्रीन एनर्जी बदलाव के लिए 100 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की योजना बना रहा है। ग्रुप का लक्ष्य 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जक बनना है।

भारत में प्रदूषण के लेवल को कम करने में मदद-

इस पार्क के फायदे की बात करें तो दुनिया का यह सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा पार्क जब बनकर तैयार होगा तो इससे भारत में प्रदूषण के लेवल को कम करने और जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही ये दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश और सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण है। कोयला अभी भी भारत द्वारा उत्पादित बिजली का 70 फीसदी हिस्सा है।

इस परियोजना को लेकर कुछ चिंताएं भी हैं। जैसे इतने बड़े पैमाने पर निर्माण से समुद्री जीवन और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हो सकता है। पवन ऊर्जा संयंत्रों को पानी की आवश्यकता होती है, जो इस क्षेत्र में पहले से ही कम है। इसके अलावा, इतनी बड़ी परियोजना के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होगी और इसकी सफलता बिजली की कीमतों और सरकारी नीतियों पर निर्भर करेगी।

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