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मोदी सरकार के फैसले पर 'सुप्रीम' मुहर, जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने का केंद्र का फैसला बरकरार, अब आगे क्या ?

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(Special Story) आज सोमवार के दिन मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के फैसले पर मुहर लगाते हुए, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के उसके फैसले को बरकरार रखा है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि आर्टिकल 370 अस्थायी प्रावधान था। संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 से स्पष्ट है कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। भारतीय संविधान के सभी प्रावधान वहां लागू हो सकते हैं। कोर्ट के फैसले के बाद से ही राजनीतिर हलकों में हलचल मच गई है। कोर्ट के फैसले पर विभिन्न पार्टियों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं। अब जम्मू-कश्मीर में आगे क्या होगा, कब चुनाव होगा इन सभी मुद्दों पर विस्तार से जानते हैं। 

4 साल, 4 महीने और 6 दिन बाद आया केंद्र को राहत देने वाला फैसला-

आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटा दिया था। इसके 4 साल, 4 महीने और 6 दिन बाद आए फैसले में कोर्ट ने कहा, 'हम आर्टिकल 370  को निरस्त करने के लिए जारी राष्ट्रपति के आदेश को वैध मानते हैं। हम लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले की वैधता को भी बरकरार रखते हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में 30 सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने के भी आदेश दिए हैं।

केंद्र के फैसले के खिलाफ 23 याचिकाएं दायर-

बीजेपी जो काफी समय से कहती आई थी कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाया जाना चाहिए। बीजेपी के चुनावी घोषणा पत्र में ये मुद्दा प्रमुखता से रहता था। मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 खत्म कर इतिहास रच दिया था। इतना ही नहीं इसके साथ ही राज्य को 2 हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था। मोदी सरकार के इस फैसलने के खिलाफ एक दो नहीं बल्कि 23 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थीं। 5 जजों की बेंच ने सभी याचिकाओं की एक साथ सुनवाई की थी। 

केंद्र के हर फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकते-

संविधान पीठ में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस कौल और जस्टिस खन्ना शामिल थे। बेंच के सामने लगातार 16 दिनों तक चली सुनवाई 5 सितंबर को खत्म हुई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। यानी सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के 96 दिन बाद केस पर फैसला सुनाया। CJI ने कहा कि केंद्र की तरफ से लिए गए हर फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। ऐसा करने से अराजकता फैल जाएगी। अगर केंद्र के फैसले से किसी तरह की मुश्किल खड़ी हो रही हो तभी इसे चुनौती दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की यह दलील खारिज कर दी कि राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र ऐसा कोई फैसला नहीं ले सकता, जिसमें  बदलाव न किया जा सके। इसके साथ ही चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि आर्टिकल 356 के  बाद केंद्र केवल संसद के द्वारा ही बना सकता है, ऐसा कहना सही नहीं होगा।  CJI ने बताया कि फैसले में 3 जजों के जजमेंट हैं। एक फैसला चीफ जस्टिस, जस्टिस गवई और जस्टिस सूर्यकांत का है। दूसरा फैसला जस्टिस कौल का है। जस्टिस खन्ना दोनों फैसलों से सहमत हैं। 

फैसले की प्रमुख बड़ी बातें-

  • फैसला सुनाते वक्त सीजेआई ने कहा, जम्मू-कश्मीर के संविधान में संप्रभुता का कोई जिक्र नहीं था। हालांकि, भारत के संविधान की प्रस्तावना में इसका उल्लेख मिलता है।
  • भारतीय संविधान आने पर आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर पर लागू हुआ। सीजेआई ने कहा, आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर के संघ के साथ संवैधानिक एकीकरण के लिए था और यह विघटन के लिए नहीं था, और राष्ट्रपति घोषणा कर सकते हैं कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया है। अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त होने की अधिसूचना जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती है।
  • सीजेआई ने कहा, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की अधिसूचना देने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती है। अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने का अधिकार जम्मू-कश्मीर के एकीकरण के लिए है।राष्ट्रपति द्वारा 370 निरस्त करने का आदेश संविधानिक तौर पर वैध है।
  • सीजेआई का मानना है ​​अब प्रासंगिक नहीं है कि Article370 को निरस्त करने की घोषणा वैध थी या नहीं। CJI ने दिसंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर फैसला देने से इनकार किया, क्योंकि इसे याचिकाकर्ताओं ने विशेष रूप से चुनौती नहीं दी थी।
  • सीजेआई ने कहा, जब राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो राज्यों में संघ की शक्तियों पर सीमाएं होती हैं। इसकी उद्घोषणा के तहत राज्य की ओर से केंद्र द्वारा लिया गया हर निर्णय कानूनी चुनौती के अधीन नहीं हो सकता। इससे अराजकता फैल सकती है।
  • सभी 5 जज बैठ गए हैं।  सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि जजों ने इस मामले में तीन फैसले लिखे हैं। जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस गवाई और जस्टिस सूर्यकांत ने इस मामले में अपना फैसला लिखा है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कही ये बात-

जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि सरकार ने इतिहास में की गई संवैधानिक भूल को आखिरकार सुधार लिया है। सॉलिसिटर जनरल ने इसके लिए पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को श्रेय दिया और कहा कि देश हमेशा इनका ऋणी रहेगा।

जम्मू-कश्मीर के फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं-

जम्मू-कश्मीर के फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं-जम्मू-कश्मीर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद रानीतिक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। आइए आपको बतातें हैं कि विभिन्न पार्टियों के नेताओं ने फैसले पर क्या कहा...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "यह जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में हमारी बहनों और भाइयों के लिए आशा, प्रगति और एकता की एक शानदार घोषणा है। न्यायालय ने, अपने गहन ज्ञान से, एकता के मूल सार को मजबूत किया है जिसे हम, भारतीय होने के नाते, बाकी सब से ऊपर प्रिय मानते हैं और संजोते हैं।"

महबूबा मुफ्ती, PDP प्रमुख- 

जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को निरस्त करने को सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैध ठहराए जाने पर PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा, "हिम्मत नहीं हारे, उम्मीद न छोड़े, जम्मू-कश्मीर ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला यह एक मुश्किल पड़ाव है, यह मंजिल नहीं है... हमारे विरोधी चाहते हैं कि हम उम्मीद छोड़कर इस शिकस्त को स्वीकार करें... यह हमारी हार नहीं यह देश के धैर्य की हार है..."

उमर अब्दुल्ला, नेता, नेशनल कॉन्फ्रेंस-

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैध ठहराए जाने पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा, "निराश हूं लेकिन हताश नहीं हूं। संघर्ष जारी रहेगा।"

कर्ण सिंह, कांग्रेस नेता- 

सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने वाले राष्ट्रपति के आदेश की वैधता को बरकरार रखने पर कांग्रेस नेता कर्ण सिंह ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने बहुत बारीकी से हर एक चीज को देखा है। सभी परिस्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट उस नतीजे पर पहुंची है। मैं फैसले का स्वागत करता हूं...मेरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रार्थना है कि जल्द से जल्द हमें राज्य का दर्जा दे दें। जरूरी नहीं है कि पहले चुनाव हो फिर राज्य का दर्जा मिले। चुनाव हो तो राज्य के लिए हो, केंद्र शासित प्रदेश के लिए क्यों हों। चुनाव सिंतबर तक कराने की बात कही गई है ये अच्छी बात है।

गुलाम नबी आज़ाद,अध्यक्ष  DPAP-

इसपर डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी(DPAP) के अध्यक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने कहा, "एक उम्मीद थी क्योंकि कई चीज़ों में हमने कहा था कि जो कोर्ट कहेगा वह आखिरी फैसला होगा... मैं बुनियादी तौर पर कहता हूं कि इसे खत्म करना ग़लत था। इसे करते वक्त जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों से पूछा नहीं गया... हम अदालत के खिलाफ नहीं जा सकते लेकिन इस फैसले से हम, जम्मू-कश्मीर के लोगों को अफसोस है..."

असदुद्दीन ओवैसी, AIMIM प्रमुख-

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, "हम इस फैसले से संतुष्ट नहीं है... कश्मीर हमेशा से भारत का एक अटूट हिस्सा रहा है... अब आने वाले दिनों में भाजपा को कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और मुंबई के केंद्र शाषित प्रदेश बनाने से कोई नहीं रोक सकेगा। इसका नुकसान सबसे ज़्यादा डोगरा और लद्दाख के बुद्धिस्ट को होगा..."

उद्धव ठाकरे, नेता, शिव सेना-

जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को निरस्त करने को सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैध ठहराए जाने पर शिव सेना नेता उद्धव ठाकरे ने कहा, "हम इस फैसले का स्वागत करते हैं। धारा 370 खत्म करने के समय हमने इसका समर्थन किया था। उम्मीद करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का जो दूसरा आदेश है कि अगले सितंबर तक वहां चुनाव होने चाहिए, वह जल्द से जल्द हो जाएगा। वहां की जनता है उनको खुली हवा में मतदान करने का अवसर मिलेगा। चुनाव के पहले अगर PoK भी आ जाता है तो पूरे कश्मीर में चुनाव हो जाएगा और देश का एक हिस्सा बरकरार रहेगा।"

अधीर रंजन चौधरी, सांसद कांग्रेस-

सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने वाले राष्ट्रपति के आदेश की वैधता को बरकरार रखने पर कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने, "केंद्र को जल्द से जल्द जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराना चाहिए और पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल करना चाहिए।"

जम्मू-कश्मीर में कब होंगे चुनाव-

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है क‍ि कश्मीर पर केंद्र का फैसला आखिरी माना जाएगा, जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले से बीजेपी में जश्न का माहौल साफ देखा जा सकता है। 

क्या है आर्टिकल 370 इसे हटाना क्यों था जरूरी-

आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में करीब सात दशक से चले आ रहे आर्टिकल 370 को केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को समाप्त कर दिया था। दरअसल, अक्तूबर 1947 में कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ एक विलय पत्र हस्ताक्षर किए थे। इसमें कहा  गया था कि तीन विषयों के आधार पर यानी विदेश मामले, रक्षा और संचार पर जम्मू और कश्मीर भारत सरकार को अपनी शक्ति हस्तांतरित करेगा। 

इतिहासकारों के मुताबिक  मार्च 1948 में, महाराजा ने शेख अब्दुल्ला के साथ प्रधानमंत्री के रूप में राज्य में एक अंतरिम सरकार नियुक्त की।  जुलाई 1949 में, शेख अब्दुल्ला और तीन अन्य सहयोगी भारतीय संविधान सभा में शामिल हुए और जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति पर बातचीत की, जिससे अनुच्छेद-370 को अपनाया गया। 

क्या थे अनुच्छेद-370 के प्रावधान-

  • अनुच्छेद 370  में प्रावधान किया गया कि रक्षा, विदेश, वित्त और संचार मामलों को छोड़कर भारतीय संसद को राज्य में किसी कानून के लागू करने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होगी। 
  • इसके चलते जम्मू और कश्मीर के निवासियों की नागरिकता, संपत्ति के स्वामित्व और मौलिक अधिकारों का कानून शेष भारत में रहने वाले निवासियों से अलग था।
  • अनुच्छेद-370 के तहत, अन्य राज्यों के नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते थे।
  • अनुच्छेद-370 के तहत, केंद्र को राज्य में वित्तीय आपातकाल घोषित करने की शक्ति नहीं थी।
  • अनुच्छेद-370 (1) (सी) में उल्लेख किया गया था कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 अनुच्छेद-370 के माध्यम से कश्मीर पर लागू होता है।
  • अनुच्छेद 1 संघ के राज्यों को सूचीबद्ध करता है। इसका मतलब है कि यह अनुच्छेद-370 है जो जम्मू-कश्मीर राज्य को भारतीय संघ से जोड़ता है। 
  • जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 3 में कहा गया था कि जम्मू और कश्मीर राज्य भारत संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा।
  • अनुच्छेद 5 में कहा गया कि राज्य की कार्यपालिका और विधायी शक्ति उन सभी मामलों तक फैली हुई है, जिनके संबंध में संसद को भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति है।
  • जम्मू-कश्मीर का संविधान 17 नवंबर 1956 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1957 को लागू हुआ था।
  • 5 अगस्त 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने एक आदेश जारी करके जम्मू और कश्मीर के संविधान को निष्प्रभावी बना दिया था।
  • इसे 'संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिए आवेदन) आदेश, 2019 (सीओ 272)' नाम दिया गया था।

370 हटने के बाद  बदली स्थिति- 

2019 में जब अनुच्छेद-370 खत्म किया गया था, तब से पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने घुसपैठ के जरिए हिंसा कराने की खूब कोशिश की लेकिन सुरक्षाबलों ने सभी को नाकाम कर दिया। केंद्र सरकार ने विशेष तौर पर जम्मू कश्मीर के विकास पर फोकस करना शुरू किया और बजट में भी जम्मू कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान किए गए। वहां के लोगों को मुख्य धारा से जोड़ा रोजगार दिलाने के लिए सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं जिसका लाभ जम्मू-कश्मीर के लोग उठा रहे हैं। 370 खत्म होने के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब जम्मू-कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र के दागी लिस्ट से बाहर किया गया है। इसके साथ ही घाटी के हालात में बड़ी तबदीली देखी जा सकती है। पिछले कुछ समय में राज्य में पर्यटन में भारी बढ़ोतरी देखी गई है। 

 

 

 

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