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(Special Story) इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। जिसके मुताबकि SBI को कल तक इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा देने को कहा गया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने करीब 40 मिनट में फैसला सुना दिया। SBI ने कोर्ट से कहा- बॉन्ड से जुड़ी जानकारी देने में हमें कोई दिक्कत नहीं है लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए। इस पर कोर्ट ने समय देने से इनकार कर दिया। आखिर SBI को डेटा देने में दिक्कत क्या है और क्या है ये पूरा मामला आइए विस्तार से जानते हैं...
सुप्रीम कोर्ट की SBI को फटकार!
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने SBI से पूछा- पिछली सुनवाई यानि (15 फरवरी) से अब तक 26 दिनों में आपने क्या किया। करीब 40 मिनट की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा- SBI 12 मार्च तक सारी जानकारी का खुलासा करे। इलेक्शन कमीशन सारी जानकारी को इकट्ठा कर 15 मार्च शाम 5 बजे तक इसे वेबसाइट पर पब्लिश करे। कोर्ट ने यह भी कहा- SBI अपने चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर का एफिडेविट फाइल करे कि दिए गए आदेशों को पालन करेंगे। कोर्ट ने कहा हम अभी कोई कंटेम्प्ट नहीं लगा रहे हैं, लेकिन SBI को नोटिस देते हैं कि अगर आज के आदेश का वक्त रहते पालन नहीं किया गया तो हम उसके खिलाफ लीगल एक्शन लेंगे। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही SBI को 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी 6 मार्च तक इलेक्शन कमीशन को देने के निर्देश दिए थे।
SBI ने याचिका दायर कर की थी मांग-
4 मार्च को SBI ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर इसकी जानकारी देने के लिए 30 जून तक का समय मांगा था। इसके अलावा कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की उस याचिका पर भी सुनवाई की, जिसमें 6 मार्च तक जानकारी नहीं देने पर SBI के खिलाफ अवमानना का केस चलाने की मांग की गई थी।
क्या है पूरा मामला-
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को कल, यानि 12 मार्च तक चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बॉन्ड का पूरा डेटा देना होगा। SBI ने इसके लिए 4 महीने का समय मांगा था लेकिन आज हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने और समय देने से साफ इनकार कर दिया। इससे पहले कोर्ट ने 15 फरवरी, 2024 को इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताकर इन पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही SBI को इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित डेटा देने का आदेश दिया था।
आखिर SBI को डेटा देने में क्या है दिक्कत-
आइए अब जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर SBI को इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा देने में क्या दिक्कत है और उसे इसके लिए इतना समय क्यों चाहिए। बैंकिंग से जुड़े जानकारों के मुताबकि इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा देने में SBI को इतना समय तो कतई नहीं लगना चाहिए जितना वो मांग रहे हैं। बताया जा रहा है कि SBI ने बॉन्ड के नंबर जैसी जानकारियां डिजिटली स्टोर करके रखी हैं, जबकि बॉन्ड खरीदने वालों के नाम, KYC जैसी जानकारियां फिजिकली रखी हैं। सारी जानकारियां डिजिटली नहीं रखी गईं हैं ताकि इन्हें आसानी से हासिल न किया जा सके। इतना ही नहीं, बॉन्ड खरीदने और उसे इनकैश करने वालों की जानकारियां भी अलग-अलग रखी हुई हैं।
नहीं बनाया गया सेंट्रल डेटाबेस-
बताया जा रहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा अलग-अलग ब्रांच से मुंबई मेन ब्रांच भेजा गया था। इसमें डोनर्स और पार्टियों की जानकारियां अलग-अलग हैं, ताकि डोनर्स की गोपनीयता बनी रहे। डोनर्स की डिटेल्स देने के लिए हर बॉन्ड के जारी होने की तारीख को डोनर की तरफ से खरीदे गए बॉन्ड की तारीख से मैच करना होगा। फिर इसको पार्टियों की तरफ से कैश कराए गए बॉन्ड्स की डिटेल से मैच करना होगा। SBI के मुताबिक, दोनों जानकारियों का मिलान करना जटिल प्रक्रिया है इसलिए समय लगेगा।
इलेक्टोरल बॉन्ड का मामला कैसे पहुंचा कोर्ट?
इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ ADR ने 2018 में जनहित याचिका दायर की थी। ADR का कहना है कि चंदे का सिस्टम ट्रांसपैरेंट होना चाहिए कि किसने किसे कितना पैसा दिया। अगर ऐसा नहीं होगा तो सरकारें या पार्टियां चंदा देने वाली कंपनी के फायदे के मुताबिक स्कीम, पॉलिसी या कानून ला सकती हैं।
आइए अब आसान शब्दों मे जानते हैं कि आखिर ये इलेक्टोरल बॉन्ड क्या होता है और इसको क्यों लाया गया था।
इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?
केंद्र सरकार ने चुनावी फंडिंग को साफ-सुथरा बनाने के लिए 2 जनवरी, 2018 को चुनावी बॉन्ड स्कीम का ऐलान किया था। सरकार द्वारा फाइनेंस एक्ट-2017 के जरिये पांच बड़े कानूनों में बदलाव करके इस स्कीम को लाया गया था। जिसमें RBI एक्ट 1934 की धारा-31, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा- 29C, आयकर अधिनियम 1961 की धारा-31A, कंपनी एक्ट 2013 की धारा 182 और विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम 2010 की धारा 2(1) शामिल हैं।
कौन खरीद सकता है बॉन्ड-
बॉन्ड खरीदने वाला 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता है। खरीदने वाले को बैंक को अपनी पूरी KYC डीटेल में देनी होती है। खरीदने वाला जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट करना चाहता है, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिला होना चाहिए। डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर इसे उस पार्टी के चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है।
किस पार्टी को बॉन्ड के जरिए कितना मिला चंदा-
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक आइए जानने की कोशिश करते हैं किस पार्टी को कितना चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिला है।
बॉन्ड पर क्यों हुआ विवाद-
आपको बता दें कि 2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते हुए जहां दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। वहीं ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। हालांकि इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिए बन सकते हैं। साथ ही कुछ लोग इसको बड़े कॉर्पोरेट घरानों को ध्यान में रखकर लायी गई स्कीम बता रहे थे।
सीनियर प्रोड्यूसर
Published : 11 March, 2024, 1:27 pm
Author Info : राष्ट्रीय पत्रकारिता या मेनस्ट्रीम मीडिया में 15 साल से अधिक वर्षों का अनुभव। साइंस से ग्रेजुएशन के बाद पत्रकारिता की ओर रुख किया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया...