ऑस्ट्रेलिया ने बच्चों और किशोरों में बढ़ते सोशल मीडिया उपयोग के प्रभाव को देखते हुए एक अहम कदम उठाया है। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पेश किया है। यह प्रस्तावित कानून अगले सप्ताह संसद में प्रस्तुत होगा, और पारित होने पर इसका प्रभावी क्रियान्वयन एक वर्ष में सुनिश्चित किया जाएगा। कानून लागू होने के बाद, सोशल मीडिया कंपनियों पर नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी होगी और उल्लंघन की स्थिति में उन पर कड़ी सजा और जुर्माना लगाया जाएगा।
सोशल मीडिया का प्रभाव: आंकड़ों से समझें समस्या की गहराई-
प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, अमेरिका में लगभग 81% किशोर और 69% वयस्क सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, जबकि विश्व स्तर पर 4.9 अरब लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। वर्ष 2023 के आंकड़े बताते हैं कि औसत व्यक्ति प्रतिदिन 145 मिनट सोशल मीडिया पर बिताता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह अत्यधिक समय बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल रहा है।
किशोरों में "फियर ऑफ मिसिंग आउट"-
सोशल मीडिया के प्रभावों पर किए गए अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि किशोरों में "फियर ऑफ मिसिंग आउट" (FOMO) अर्थात् अपने साथियों से छूट जाने का डर, तनाव, और अवसाद जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में कमी, नींद की कमी, और सामाजिक संपर्क से दूरी जैसी समस्याएं भी सामने आ रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय तक सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हो सकता है।
क्या है मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय?
ऑस्ट्रेलियाई सरकार के इस फैसले का कई मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने स्वागत किया है। भोपाल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक का कहना है कि यह कदम बच्चों को मानसिक तनाव और सामाजिक दबाव से बचाने के लिए बेहद जरूरी है। उनका मानना है कि बच्चों पर नियंत्रण रखने का सबसे महत्वपूर्ण प्रयास पहले माता-पिता की ओर से होना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है"सोशल मीडिया के अत्यधिक इस्तेमाल से किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जैसे अवसाद, चिंता, अकेलापन, और FOMO की भावना बढ़ जाती है। माता-पिता को इस खतरे को समझते हुए बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।"
क्या कहता है शोध?
अनेकों शोध इस ओर इशारा करते हैं कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग मस्तिष्क के "रिवार्ड सेंटर" को सक्रिय कर उसे उत्तेजित करता है, जिससे बच्चों में डोपामाइन का स्तर बढ़ता है। यह वही रसायन है जो हमें खुशी का अहसास कराता है। यही कारण है कि जब बच्चे पोस्ट पर लाइक्स और कमेंट्स नहीं प्राप्त करते हैं, तो उनमें तनाव और असुरक्षा की भावना पैदा होती है, जिससे दीर्घकालिक रूप से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
सोशल मीडिया पर बढ़ता निर्भरता: भारत के लिए एक सबक-
भारत में भी तेजी से बढ़ते सोशल मीडिया उपयोग ने मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चिंताएं बढ़ा दी हैं। बच्चों और किशोरों में मोबाइल और सोशल मीडिया का बढ़ता समय एक नई चुनौती के रूप में उभर रहा है। भारतीय विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस विषय में तुरंत कार्रवाई नहीं की गई, तो आने वाले समय में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं सामने आ सकती हैं।
क्या भारत को भी इस दिशा में कदम उठाना चाहिए?
भारत में हाल के वर्षों में मोबाइल और सोशल मीडिया का इस्तेमाल किशोरों में काफी बढ़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को भी इस मामले में कड़े कदम उठाने की जरूरत है। हालाँकि, यह आवश्यक है कि माता-पिता, शिक्षक और सरकार मिलकर एक जागरूकता अभियान शुरू करें ताकि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बचाया जा सके। मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों पर सामाजिक दबाव और प्रतिस्पर्धा की भावना को कम करना महत्वपूर्ण है, ताकि उन्हें इस डिजिटल युग में सुरक्षित और सकारात्मक जीवन जीने का अवसर मिल सके। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए भारत में भी सोशल मीडिया के प्रति सख्त कदम उठाए जा सकते हैं, ताकि किशोरों की मानसिक सेहत पर इसके प्रभाव को कम किया जा सके।
सोशल मीडिया का बढ़ता उपयोग-
ऑस्ट्रेलिया सरकार द्वारा लिया गया यह फैसला मानसिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। यह अन्य देशों के लिए भी एक प्रेरणा हो सकती है। सोशल मीडिया का बढ़ता उपयोग बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।