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देश में अब तक का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन बना सिलक्यारा टनल अभियान

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देश के कई घरों में दोबारा दीपावली मनाई गई। 17 दिनों बाद मजदूरों के घरवालों के चेहरों पर खुशी की चमक साफ दिखाई दी। अपनों को सही सलामत देख पाने से बड़ी भला कौन सी खुशी होगी। मजदूरों के परिजनों ने पटाखे फोड़े और खुशियां मनाकर मिठाई बांटी।   
12 नवंबर से सभी 41 मजदूरों को बाहर निकालने के लिए देश-विदेश की वैज्ञानिकों सहित इस कार्य में लगे सभी लोगों को दिन रात एक कर दिया। तब जाकर ये रेस्क्यू अभियान सफल हो पाया। इस सफलता के साथ ही ये देश में अब तक का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन बन गया। 17 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद 41 मजदूरों को सफलतापूर्वक बाहर निकालने वाला ऑपरेशन सिलक्यारा किसी सुरंग या खदान में फंसे मजदूरों को बाहर  निकालने वाला देश का सबसे लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन बन गया। इससे पहले वर्ष 1989 में पश्चिमी बंगाल की रानीगंज कोयला खदान से दो  दिन चले भियान के बाद 65 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला गया था।

देश और कहां हुआ ऐसा रेस्क्यू ऑपरेशन-

देश-दुनिया के विशेषज्ञों ने दिन-रात एक कर इस अभियान को मकाम तक पहुंचाने में सफलता हासिल की। आपको बता दें कि 13 नवंबर 1989 को पश्चिम बंगाल के महाबीर कोल्यारी रानीगंज कोयला खदान जलमग्न हो गई थी। इसमें 65 मजदूर फंस गए थे। इनको सुरक्षित बाहर निकालने के लिए  खनन इंजीनियर जसवंत गिल के नेतृत्व में टीम बनाई गईं। उन्होंने सात फीट ऊंचे और 22 इंच व्यास वाले स्टील कैप्सूल को पानी से भरी खदान में भेजने के लिए नया बोरहॉल बनाने का आइडिया दिया। दोन दिन के ऑपरेशन के बाद आखिरकार सभी मजदूरों को सुरक्षइत बाह निकाल लिया गया था। उस अभियान में गिल लोगों को बचाने के लिए खुद एक स्टील कैप्सूल के माध्यम से खदान के भीतर चले गए थे। 
1991 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने उन्हें सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक से नवाजा था। उस अभियान में मजदूरों की संख्या सिलक्यारा से ज्यादा थी, लेकिन उन्हें निकालने में समय कम लगा था। सिलक्यारा में 17वें दिन मजदूर बाहर निकाले जा सके।

हरियाणा में भी हुआ था ऐसा ही रेस्क्यू-

आपको बता दें कि कुछ ऐसा ही रेस्क्यू अभियान वर्ष 2006 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में हल्ढेरी गांव में हुआ था, जहां एक पांच साल का बच्चा प्रिंस बोरवेल में गिर गया था। करीब 50 घंटे की कड़ी जद्दोजहद के बाद बचाव दलों ने बच्चे को बाहर निकालने में कामयाबी पाई थी। इस अभियान में बराबर के ही अन्य बोरवेल को तीन फीट व्यास के लोहे के पाइप के माध्यम से जोड़कर बच्चे को बाहर निकाला गया था।

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