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विजय दिवस पर देश के सपूतों को नमन, पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि

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(Special Story) आज देशभर में विजय दिवस मनाया जा रहा है। हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनया जाता है। ये दिन भारतीय सेना के अदम्‍य साहस को याद करने का दिन है और 1971 में भारत-पाकिस्‍तान के बीच हुए युद्ध में शहीद हुए देश के जवानों को नमन करने का दिन है। विजय दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म X पर देश के वीर सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित की है। क्यों मनाया जाता है विजय दिवस आज के दिन का क्या महत्व है सब कुछ जानते हैं विस्तार से...

पीएम मोदी ने क्‍या लिखा?

पीएम नरेंद्र मोदी ने एक्‍स पर लिखा है कि 'आज, विजय दिवस पर, हम उन सभी बहादुर नायकों को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने 1971 में निर्णायक जीत सुनिश्चित करते हुए कर्तव्यनिष्ठा से भारत की सेवा की। उनकी वीरता और समर्पण राष्ट्र के लिए अत्यंत गौरव का स्रोत है। उनका बलिदान और अटूट  भावना हमेशा लोगों के दिलों और हमारे देश के इतिहास में अंकित रहेगी। भारत उनके साहस को सलाम करता है और उनकी अदम्य भावना को याद करता है। 

क्यों मनाया जात है विजय दिवस-

देश भर में 16 दिसम्बर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1971 के युद्ध में करीब 3,900 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे, जबकि 9,851 घायल हो गए थे। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी बलों के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारत के पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था, जिसके बाद 17 दिसंबर को 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया था।

क्यों खास है साल 1971-

साल 1971.. भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के इतिहास में काफी अहमयित रखता है। यह वही साल था जब भारत ने पाकिस्तान को ऐसा जख्म दिया, जिसकी टीस पाकिस्तान को हमेशा महसूस होती रहेगी। यह साल बांग्लादेश के लिए इसलिए ख़ास था क्योंकि इसी साल दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश के रूप में उभरा। 1971 के उस इतिहास को बदलने वाले युद्ध की शुरुआत 3 दिसंबर, 1971 को हुई थी, और यह युद्ध महज 13 दिन में समाप्त हो गया। 
साल 1970 में पाकिस्तान में हुए चुनाव बांग्लादेश के अस्तित्व के लिए काफी अहम साबित हुए। इस चुनाव में मुजीबुर रहमान की पार्टी पूर्वी पाकिस्तानी आवामी लीग ने ज़बरदस्त जीत हासिल कर ली। चुनाव में उनकी पार्टी को 169 में से 167 सीट मिली। हालांकि पाकिस्तान को कंट्रोल कर रहे पश्चिमी पाकिस्तान के लीडरों और सैन्य शासन को यह गवारा नहीं हुआ कि मुजीबुर पाकिस्तान पर शासन करें। इसके खिलाफ धोखाधड़ी और रंजिश का खेल शुरू हो गया। वहीं मुजीबुर रहमान के साथ इस धोखे से पूर्वी पाकिस्तान में बगावत की आग तेज हो गई। लोग सड़कों पर उतरकर आन्दोलन करने लगे, जिसके खिलाफ पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान ने पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह की चिंगारी को दबाने के लिए सेना को तैनात कर दिया। इसके बाद से आज़ादी का आंदोलन दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था। सेना ने भी आन्दोलन को दबाने के लिए अत्याचार शुरू कर दिया। मार्च 1971 में पाकिस्तान सेना का क्रूरतापूर्वक अभियान शुरू हुआ, ह्त्या और रेप की घटनाएं बढ़ने लगी, और-तो-और मुजीबुर रहमान को भी गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी और टॉर्चर से बचने के लिए बड़ी संख्या में आवामी लीग के सदस्य भागकर भारत आ गए। इसके बाद धीरे-धीरे भारत में शरणार्थी संकट बढ़ने लगे। एक साल से भी कम समय के अंदर बांग्लादेश से करीब 1 करोड़ शरणार्थियों ने भागकर भारत के पश्चिम बंगाल में शरण ली। इससे भारत के ऊपर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ने लगा।

इंदिरा गांधी ने किया था यूरोप और अमेरिका का दौरा-

31 मार्च, 1971 को इंदिरा गांधी ने भारतीय संसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों और मुक्तिवाहिनी की मदद करने का फैसला लिया। मुक्तिवाहिनी दरअसल, पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराने वाली पूर्वी पाकिस्तान की सेना थी। इसके बाद अक्टूबर-नवंबर  के महीने में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके सलाहकार का यूरोप और अमेरिका का दौरा, इंदिरा गांधी और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के बीच बातचीत का दौर, मुजीबुर रहमान की रिहाई की मांग भी जारी रही। इन सब के बीच पूर्वी पाकिस्तान संकट विस्फोटक स्थिति में पहुंच गया। 

स्वतंत्रता संग्राम ने लिया भारत-पाक युद्ध का रूप- 

3 दिसंबर 1971 का दिन, जब पाकिस्तान ने 11 भारतीय वायु सेना स्टेशन पर हवाई हमले शुरू कर दिए। जिसके बाद भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में सीधे तौर पर शामिल हो गई। इससे बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम भारत-पाकिस्तान युद्ध में बदल गया। इंदिरा गांधी ने आधी रात को ऑल इंडिया रेडियो से इस युद्ध की घोषणा की। इसके बाद भारत द्वारा ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ को 4 दिसंबर 1971 को लांच किया गया।  बता दें कि ऑपरेशन ट्राइडेंट भारतीय नौसेना द्वारा 4-5 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी बंदरगाह शहर कराची के खिलाफ चलाया गया एक आक्रामक अभियान था। पाकिस्तानी नौवहन को विनाशकारी नुकसान पहुंचाया और इसकी सफलता को भारत में हर साल नौसेना दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारतीय जल सीमा घूम रही पाकिस्तानी पनडुब्बी को नष्ट करने का जिम्मा एंटी सबमरीन फ्रिगेट आईएनएस खुखरी और कृपाण को सौंपा गया। 25वीं स्क्वॉर्डन कमांडर बबरू भान यादव को इस टास्क की जिम्मेदारी दी गई थी। ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत 4 दिसंबर 1971 को भारतीय नौसेना ने कराची नौसैनिक अड्डे पर भी हमला बोल दिया था। एम्यूनिशन सप्लाई शिप समेत जहाज ध्वस्त कर दिए गए थे। इस दौरान पाकिस्तान के आयल टैंकर भी तबाह हो गए थे। कई दिनों तक कराची पोर्ट पर तेल के भंडार से आग की लपटें उठती रहीं, जिन्हें लगभग 60 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सका। 
पूर्वी पाकिस्तान में, मुक्ति वाहिनी के लड़कों ने पूर्व में पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ लड़ने के लिए भारतीय सेना के साथ हाथ मिला लिया। युद्ध के दौरान दक्षिणी कमान ने पाकिस्तान की किसी भी कार्रवाई के खिलाफ देश की सीमाओं की रक्षा की। दक्षिणी सेना के उत्तरदायित्व वाले क्षेत्र में लड़ी गई लड़ाईयों में लोंगेवाला और परबत अली की प्रसिद्द लड़ाइयां शामिल हैं। इधर, पाकिस्तान ने बख्तरबंद बलों को तबाह करने का काम दृढ़ भारतीय सैनिकों ने कर दिया। 

महज 13 दिन में पाकिस्तान ने कर दिया आत्मसमर्पण-

14 दिसंबर को जहां पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर के साथ एक घर में बैठक हो रही थी, इंडियन एयर फ़ोर्स ने उस घर पर हमला कर दिया। इस हमले में पकिस्तान दहल उठा। इसका नतीजा यह हुआ कि आत्मसमर्पण प्रक्रिया 16 दिसंबर 1971 को शुरू हो गई और उस समय लगभग 93 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस तरह 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश का जन्म एक नए राष्ट्र के रूप में हुआ और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) पाकिस्तान के कब्जे से आजाद हो गया। भारत के लिए यह युद्ध एक ऐतिहासिक युद्ध साबित हुआ, और तभी से पूरे देश में पाकिस्तान पर भारत की विजय 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हो गई। बताया जाता है कि 1971 के युद्ध में लगभग 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे और करीब 9,851 घायल हुए थे।

लखनऊ के वीरों का बलिदान-

1971 के इस युद्ध में बलिदान हुए बलिदानियों की याद में लखनऊ में एक कॉलोनी भी बसाई गई है। छावनी के मंगल पांडेय रोड पर स्थित इस शहीद कालोनी में अब भी बलिदानियों का परिवार रहता है। उस युद्ध में लखनऊ के गार्ड मैन मोहम्मदीन, नायक मोहन सिंह सेना मेडल, सीएफएन पीएन मिश्र, हवलदार गोपाल दत्त जोशी, पेटी आफिसर अमृत लाल, विंग कमांडर एचएस गिल (वीर चक्र), पैराट्रूपर आनंद सिंह बिष्ट (सेना मेडल) बलिदानी हो गए थे।

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