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वैश्विक गरीबी उन्मूलन में भारत का योगदान!

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हर साल 17 अक्टूबर को "अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस" उन लोगों की आवाज़ बुलंद करने और जागरूकता बढ़ाने का दिन है, जो गरीबी के चक्र में फंसे हुए हैं। यह दिवस हमें गरीबी के विनाशकारी प्रभावों को समझने और उससे निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की प्रेरणा देता है। गरीबी सिर्फ आय की कमी नहीं है, यह उन असंख्य संघर्षों का प्रतीक है, जिनमें लोग एक बेहतर जीवन के लिए आवश्यक बुनियादी संसाधनों - जैसे उचित आवास, स्वास्थ्य सेवाएं, न्याय और पौष्टिक भोजन - से वंचित रहते हैं। इसे मिटाने के लिए केवल आर्थिक सुधार काफी नहीं हैं, बल्कि हमें एक व्यापक और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जो गरीबी के जटिल और बहुआयामी पहलुओं को ध्यान में रखे।

अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस 2024 की थीम "सामाजिक और संस्थागत दुर्व्यवहारों को समाप्त करना, न्यायपूर्ण, शांतिपूर्ण और समावेशी समाज के लिए मिलकर कार्य करना" है। यह थीम गरीबी और अन्याय को बनाए रखने वाले संरचनात्मक और संस्थागत समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करती है।

क्या है ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

इस दिवस की शुरुआत 1987 में हुई, जब पेरिस के ट्रोकाडेरो में 100,000 से अधिक लोग गरीबी, भूख, और भय से पीड़ित लोगों के समर्थन में एकत्रित हुए। इस सभा में गरीबी को मानवाधिकार का उल्लंघन माना गया और इसके निवारण के लिए एकजुटता का आह्वान किया गया। 1992 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे औपचारिक रूप से मान्यता दी और 17 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस घोषित किया।

वैश्विक गरीबी की चुनौती:

वर्तमान में वैश्विक स्तर पर गरीबी से निपटना एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है। इसके कुछ प्रमुख आँकड़े इस समस्या की गहराई को दर्शाते हैं:

  • विश्व बैंक के अनुसार, 712 मिलियन से अधिक लोग अत्यधिक गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं, जो वैश्विक जनसंख्या का लगभग 9% है। ये लोग प्रतिदिन $2.15 से कम पर गुजारा करते हैं।
  • बोर्गन प्रोजेक्ट की रिपोर्ट के अनुसार, गरीबी के कारण प्रतिदिन लगभग 22,000 बच्चे अपनी जान गंवाते हैं।
  • कोविड-19 महामारी ने स्थिति और गंभीर बना दी है, जिससे 2019 की तुलना में 23 मिलियन लोग और गरीब हो गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र की 2022-23 रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ती जीवन-यापन लागत के संकट से निपटने के लिए 105 देशों ने लगभग 350 सामाजिक सुरक्षा उपायों की घोषणा की है।

भारत में गरीबी की स्थिति:

भारत, जहाँ एक बड़ी जनसंख्या गरीबी से प्रभावित है, ने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।

बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) 2023 की रिपोर्ट के अनुसार:

  • 2015-16 से 2019-21 के बीच भारत में लगभग 135.5 मिलियन लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं।
  • गरीबी दर 24.85% से घटकर 14.96% पर आ गई है।
  • हालाँकि, नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 25.01% जनसंख्या अभी भी बहुआयामी गरीबी में जीवनयापन कर रही है।

गरीबी रेखा और मापदंड:

भारत में गरीबी रेखा को न्यूनतम आय और व्यय के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जरूरी खर्च पर आधारित होती है।

गरीबी आकलन की ऐतिहासिक प्रक्रियाएँ:

  1. अलघ समिति (1979) ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग गरीबी रेखाएँ स्थापित कीं।
  2. लकड़वाला समिति (1993) ने उपभोग व्यय के आधार पर गरीबी का आकलन करने का सुझाव दिया।
  3. तेंदुलकर समिति (2005) ने गरीबी मापने के तरीकों का पुनर्मूल्यांकन किया। इसके अनुसार 2004-05 में भारत की गरीबी दर 37.2% थी।
  4. रंगराजन समिति (2012) ने नए मापदंड दिए, जिसमें गरीबी का आकलन प्रतिदिन के उपभोग व्यय के आधार पर किया गया।

अद्यतन गरीबी रेखा की आवश्यकता:

वर्तमान समय में गरीबी के आकलन के लिए नई आधिकारिक गरीबी रेखा निर्धारित करना आवश्यक हो गया है। इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं:

  1. पुराने आंकड़े: तेंदुलकर समिति द्वारा प्रस्तुत आंकड़े लगभग दो दशक पुराने हैं और वर्तमान संदर्भ में उपयुक्त नहीं हैं।
  2. असंगत वैश्विक डेटा: विश्व बैंक और अन्य संगठनों के अनुसार, कोविड-19 महामारी के बाद भारत में गरीबी बढ़ी है, लेकिन सरकारी आँकड़ों में इसका सही माप नहीं दिखाया गया।
  3. सटीकता की कमी: उपभोग और मुद्रास्फीति के व्यापक डेटा की अनुपस्थिति के कारण सटीक गरीबी आकलन में कठिनाइयाँ हैं।
  4. क्षेत्रीय असमानताएँ: वर्तमान आंकड़े अखिल भारतीय स्तर पर आधारित हैं, जो विभिन्न राज्यों की विशिष्ट आर्थिक स्थितियों को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।

समावेशी विकास की दिशा में भारत:

भारत ने गरीबी उन्मूलन के लिए कई प्रमुख योजनाएँ लागू की हैं। इन योजनाओं में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA), प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY), प्रधानमंत्री आवास योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाएँ शामिल हैं, जिनका उद्देश्य गरीबी उन्मूलन और सामाजिक सुरक्षा में सुधार करना है। इसके अलावा, भारत सरकार स्मार्ट सिटी मिशन, डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं के माध्यम से समावेशी विकास को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। इन योजनाओं का उद्देश्य न केवल गरीबी कम करना है, बल्कि रोजगार के अवसर पैदा करना और लोगों की जीवन गुणवत्ता में सुधार करना भी है।

गरीबी के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण प्रगति-

अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस 2024 का विषय एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज के निर्माण की दिशा में सामूहिक प्रयासों की अपील करता है। भारत, गरीबी के खिलाफ अपनी लड़ाई में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है, लेकिन अभी भी आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को दूर करने के लिए और प्रयासों की आवश्यकता है। गरीबी उन्मूलन के लिए न केवल अद्यतन नीतियाँ और मापदंड आवश्यक हैं, बल्कि समग्र दृष्टिकोण भी जरूरी है ताकि हर व्यक्ति को एक बेहतर जीवन जीने का अधिकार मिल सके।

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