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साल 2024 के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार जापान के संगठन निहोन हिदांक्यो को दिया गया है। यह संगठन उन लोगों के अनुभवों और पीड़ाओं को साझा करता है, जो हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों में जीवित बचे थे। ये बचे हुए लोग जापानी भाषा में "हिबाकुशा" कहलाते हैं, और इनकी मुहिम परमाणु हथियारों के विरोध में एक सशक्त संदेश है। निहोन हिदांक्यो का मानना है कि दुनिया में परमाणु हथियारों का फिर कभी इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
परमाणु हमले का दंश और नई पीढ़ी की जिम्मेदारी-
नोबेल शांति पुरस्कार की नॉर्वेजियन कमेटी ने कहा कि एक दिन हिरोशिमा और नागासाकी की त्रासदी को झेलने वाले ये बचे हुए लोग हमारे बीच नहीं होंगे। लेकिन जापान की नई पीढ़ी उनकी पीड़ा और विभत्स यादों को साझा करती रहेगी और दुनिया को याद दिलाती रहेगी कि परमाणु हथियारों का खतरा कितना बड़ा है। यह संगठन इस बात पर जोर देता है कि भविष्य में किसी भी परिस्थिति में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
हिरोशिमा और नागासाकी का विनाशकारी इतिहास-
6 अगस्त 1945 को सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया था। इस बम का नाम 'लिटिल बॉय' था और यह 43 सेकेंड बाद हवा में फटा था। इस विस्फोट से 3000 से 4000 डिग्री सेल्सियस तापमान उत्पन्न हुआ, जिससे 70,000 लोगों की जान चली गई। इसके ठीक 3 दिन बाद, 9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर दूसरा बम गिराया गया, जिसे 'फैट मैन' नाम दिया गया था। इस हमले में 40,000 से अधिक लोग मारे गए। इन बम हमलों के बाद जापान ने समर्पण किया और दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हुआ।
ईरानी महिला कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को मिला सम्मान-
पिछले साल, 2023 में, ईरान की महिला पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें यह पुरस्कार ईरान में महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए दिया गया। नरगिस मोहम्मदी वर्तमान में ईरान की एवान जेल में कैद हैं, जहां उन्हें 13 बार गिरफ्तार किया जा चुका है और 31 साल की जेल और 154 कोड़ों की सजा सुनाई गई है। नरगिस ने महिलाओं के नारे 'जन-जिंदगी-आजादी' के साथ अपने संघर्ष को जारी रखा।
112 लोगों और 30 संगठनों को मिल चुका है यह सम्मान-
नोबेल शांति पुरस्कार की शुरुआत 1901 में हुई थी, और तब से अब तक 112 व्यक्ति और 30 संगठन इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजे जा चुके हैं। महात्मा गांधी को 5 बार इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया, लेकिन उन्हें यह पुरस्कार कभी नहीं मिला। नोबेल कमेटी के सदस्यों ने महात्मा गांधी को एक स्वतंत्रता सेनानी और आदर्शवादी के रूप में देखा, लेकिन विभाजन और हिंसा के कारण उनके नाम को अंतिम सूची से हटा दिया गया।
शांति का मसीहा लेकिन नोबेल से वंचित-
महात्मा गांधी को 1947 में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, लेकिन विभाजन और दंगों के कारण यह पुरस्कार उन्हें नहीं दिया गया। 1947 में यह पुरस्कार क्वेकर संस्था को दिया गया, जो युद्ध और विभाजन के समय में मानवीय सहायता के लिए काम कर रही थी।
महात्मा गांधी की अहिंसा से प्रेरित मार्टिन लूथर किंग और दलाई लामा-
1964 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने नागरिक अधिकारों के लिए अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया था। मार्टिन ने भारत यात्रा के दौरान महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरणा ली थी और अहिंसा को अपनी लड़ाई का प्रमुख हथियार बनाया। 1989 में दलाई लामा को भी नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने तिब्बत के लिए शांतिपूर्ण समाधान खोजने के लिए संघर्ष किया था। दलाई लामा ने अपना पुरस्कार महात्मा गांधी को समर्पित करते हुए कहा था कि गांधी जी की अहिंसा की विचारधारा आज भी पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है।
निहोन हिदांक्यो का संदेश और परमाणु हथियारों का खात्मा-
निहोन हिदांक्यो के सम्मान के साथ, 2024 का नोबेल शांति पुरस्कार विश्व को एक स्पष्ट संदेश देता है - परमाणु हथियारों का खतरा दुनिया के लिए विनाशकारी हो सकता है और हमें इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। हिबाकुशा की पीड़ा और उनके अनुभव नई पीढ़ियों के लिए चेतावनी के रूप में काम करेंगे, ताकि भविष्य में कभी भी इस तरह की त्रासदी न दोहराई जाए।
Baten UP Ki Desk
Published : 11 October, 2024, 3:36 pm
Author Info : Baten UP Ki