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साल 1919 का वो काला दिन जो सदियों का जख्म दे गया, जानिए इसका BHU से क्या था संबंध?

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(Special Story) काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी की BHU हमेशा से अपनी शिक्षा व इससे जुड़े विद्वानों की वजह से इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। इस विश्विद्यालय का कुछ इतिहास जलियांवाला बाग नरसंहार से भी जुड़ा हुआ है। जलियांवाला बाग नरसंहार की आज 105वीं बरसी है। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में निर्मम नरसंहार किया गया था। जिसके बारे में सुन कर आज भी लोगो की रूह काँप जाती है।  

हर साल जब भी 13 अप्रैल की तारीख आती है, तो अंग्रेजों की निर्दयता की कहानी फिर से ताजा हो उठती है। आज उस घटना को पूरे 105 साल बीत चुके हैं। लेकिन जख्म आज भी हरे हैं। जलियाँ वाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को जो कुछ भी हुआ था वो भारत की आजादी की लड़ाई की सबसे दुखद और क्रूर घटनाओं में से एक है। वैसे तो जलियांवाला बाग नरसंहार की चर्चा पूरे देश में थी। लेकिन कुछ किस्सा बीएचयू से भी जुड़ा हुआ है। आज हम आपको विस्तार से बताएंगे कि वह किस्सा क्या है?

मदन मोहन मालवीय जांच में थे शामिल-

13 अप्रैल 1919 को जिस दिन ये घटना घटी थी उस वक्त बीएचयू में कुलपति का पद खाली हुआ था जिसमें मदन मोहन मालवीय को कुलपति बनना था लेकिन इस घटना के कारण उन्होंने  कुलपति का पद छोड़ कर इस हत्याकांड की जांच के लिए अमृतसर जाना ज्यादा जरूरी समझा था। उन्होंने इस घटना की  सात महीने तक जांच की और फिर वापस आकर कुलपति का पद संभाला।

मदन मोहन मालवीय की रिपोर्ट-

मालवीय जी की रिपोर्ट के अनुसार जलियांवाला बाग नरसंहार में  लगभग 1300 लोग मारे गए थे और दो हजार से अधिक लोग घायल हुए थे।  मगर ब्रिटिश सरकार ने  इन आकड़ों को छुपाते हुए हंटर कमीशन के तहत 379 मौतों और एक हजार लोगो के घायल होने की रिपोर्ट दी थी।  ऐसे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति जैसे  पद को छोड़कर मालवीय जी अमृतसर में सिख लोगों से पूछताछ करते रहे., ब्रिटिश रिपोर्ट के अनुसार, इस  मैदान में 15 हजार लोग अंग्रेजी सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ने के लिए आए थे तो वहीं मालवीय जी की रिपोर्ट के मुताबिक उस दिन वैशाखी का पर्व था और लोग वैसाखी मनाने के लिए जुटे थे और इसी रिपोर्ट के आधार पर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा की थी। ऐसे में यदि 13 अप्रैल 1919 को हुए इस कांड की जांच अगर पंडित मदन मोहन मालवीय ने शुरू न की होती, तो ब्रिटिश हुकूमत इस नरसंहार में मरने वालों का आंकड़ा कभी सामने नहीं आने देती।

डायर को सरकार ने किया था सम्मानित-

जलियांवाला बाग हत्याकांड इतना खौफनाक था कि यहां बड़े स्तर पर भारतीयों को एक मैदान में घेर कर उनपर गोलियां बरसाई गईं थी। और ऐसा करने वाले सेनापति जनरल डायर को ब्रिटिश सरकार ने  स क्रूर घटना के लिए सम्मानित भी किया था। मालवीय जी की इसी रपोर्ट के कारण ही इस घटना के समय रहे जनरल डायर को इस्तीफा देना पड़ा। मालवीय जी की  इस रिपोर्ट में करीब 5 लाख रुपए से शहीद स्मारक बनाने की सलाह दी गयी थी, जिसे आजादी के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने अग्नि की लौ नाम से देश को समर्पित किया। 

मदन मोहन मालवीय को किया गया सम्मानित-

जलियांवाला बाग हत्याकांड का विरोध और जांच करने पर काशी में मदन मोहन मालवीय की बहू उषा मालवीय को इस वजह से गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया था। महामना मालवीय जी ने साल 1919 के कांग्रेस अधिवेशन को अमृतसर में रखवाया। इसके बाद पंडित मालवीय ने बीएचयू में नवंबर में कुलपति का पद ग्रहण किया। मालवीय जी ने जांच के दौरान करीब 6 महीने में रिपोर्ट तैयार की मालवीय जी ने अमृतसर में जो किया, उस के लिए उन्हें सम्मानित किया गया

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