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क्या आज भी देश झेल रहा है विभाजन का दंश, चुकानी पड़ी आजादी की कीमत!

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(Special Story)

इतिहास केवल अध्ययन का विषय नहीं होता, बल्कि यह हमें अपनी गलतियों से सीखने और गौरवशाली क्षणों से प्रेरणा लेने का अवसर प्रदान करता है। यह विचारणीय है कि आखिर वह क्या कारण थे, जिनकी वजह से हजारों वर्षों से स्वतंत्रता का प्रतीक रहा भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा गया। विदेशी आक्रांताओं ने भारत की परंपराओं और संस्कृति को कुचलते हुए इस देश को गुलाम बना लिया। लेकिन क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने इन अत्याचारों के खिलाफ आवाज बुलंद की और देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। अंग्रेजों ने भारत को विभाजन का वह नासूर दिया, जिसका दंश आज भी आतंकवाद, उग्रवाद, और अलगाववाद के रूप में महसूस किया जा रहा है। विभाजन की वह दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदी आज भी हमें हमारी पुरानी गलतियों की याद दिलाती है और उन्हें सुधारने की प्रेरणा देती है।

विभाजन का दर्द और हिंसा के गहरे घाव

भारत के लिए आजादी की वर्षगांठ हमेशा से गर्व और उल्लास का प्रतीक रही है। 15 अगस्त 1947 को हमें स्वतंत्रता मिली, लेकिन इस स्वतंत्रता के साथ ही विभाजन की विभीषिका भी हमारे हिस्से आई। स्वतंत्र भारतीय राष्ट्र का जन्म जहां एक ओर स्वतंत्रता के आनंद के साथ हुआ, वहीं दूसरी ओर विभाजन के दर्द और हिंसा ने लाखों भारतीयों की जिंदगी पर गहरे घाव छोड़ दिए। 1947 का विभाजन मानव इतिहास के सबसे बड़े और विनाशकारी विस्थापनों में से एक के रूप में याद किया जाता है। 15 अगस्त 1947 की सुबह, लाखों लोग अपनी मातृभूमि से बिछड़कर, ट्रेनों, घोड़ों, खच्चरों और पैदल चलकर नए बने देशों की ओर पलायन कर रहे थे। इस दौरान, विभाजन के कारण फैले दंगों और हिंसा में लाखों लोगों की जान चली गई। यह त्रासदी इतनी भयानक थी कि लगभग बीस लाख लोग मारे गए और करीब डेढ़ करोड़ लोग बेघर हो गए। यह विभाजन मानव इतिहास में सबसे बड़े विस्थापनों में से एक था, जिसने लाखों परिवारों को अपने पैतृक गांवों और शहरों को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया और उन्हें शरणार्थी के रूप में नए जीवन की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

पंजाब ने सहा विभाजन का सबसे बड़ा दर्द-

पंजाब, जो कभी विभिन्न समुदायों जैसे हिंदू, मुस्लिम और सिखों का जीवंत केंद्र हुआ करता था, विभाजन के दर्दनाक अध्याय का सबसे बड़ा गवाह बना। यह विभाजन, जिसने पंजाब की समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक एकता को खंडित कर दिया, इस प्रांत को दो हिस्सों में बांट गया। भारत में रहने वाले हिस्से को पूर्वी पंजाब या भारतीय पंजाब के नाम से जाना जाने लगा, जबकि पाकिस्तान में शामिल हिस्से को पश्चिमी पंजाब या पाकिस्तानी पंजाब कहा गया। पंजाब, जिसे 'पांच नदियों की भूमि' कहा जाता है, ने भी अपनी जल संपदा का बंटवारा देखा। पांच में से तीन नदियां-सतलुज, रावी और ब्यास -भारतीय पंजाब में रह गईं, जबकि चिनाब और झेलम पाकिस्तानी पंजाब का हिस्सा बन गईं। विभाजन का यह दर्द कई कलाकारों और रचनाकारों ने अपने अपने अंदाज में बयां किया है। इनमें से एक प्रसिद्ध पंजाबी गायक गुरदास मान का गीत 'की बनू दुनिया दा' भी है, जिसमें वह कहते हैं, 'रवि तो चिनाब पूछदा, की हाल ऐ सतलुज दा', यानी चिनाब अक्सर रवि से सतलुज के हालचाल पूछती है। विभाजन ने पंजाब को न केवल भौगोलिक रूप से बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से भी गहरे जख्म दिए, जिनकी छाप आज भी इस क्षेत्र पर देखी जा सकती है।

विभाजन की विभीषिका: एक दर्दनाक इतिहास

विभाजन का दंश आज भी भारत के इतिहास में एक गहरे घाव की तरह मौजूद है। अंग्रेजों की नीति थी कि भारत को विभाजित कर दिया जाए, और वे अपनी इस योजना में सफल भी रहे। परिणामस्वरूप, भारत का बंटवारा हुआ और एक नए देश, पाकिस्तान का जन्म हुआ।

आजादी की कीमत

14 अगस्त 1947... यह वह तारीख है, जिसे भारत कभी नहीं भूल सकता। एक तरफ देश गुलामी की जंजीरों से आजाद हो रहा था, तो दूसरी तरफ इसका मोल विभाजन के रूप में चुकाना पड़ा। इस विभाजन ने लाखों लोगों को बेघर कर दिया। उन्हें रातोंरात अपने घरों से पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। कई लोगों को तो इस आजादी की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस

भारत के लिए विभाजन किसी विभीषिका से कम नहीं था। इस त्रासदी की स्मृति को जीवित रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अगस्त 2021 को घोषणा की कि हर साल 14 अगस्त को "विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस" के रूप में मनाया जाएगा।

पलायन की दर्दनाक कहानी

भारत का विभाजन एक अभूतपूर्व मानव विस्थापन और मजबूरी में पलायन की दर्दनाक कहानी है। लाखों लोग अजनबियों के बीच, विपरीत परिस्थितियों में नया आशियाना ढूंढने को मजबूर हुए। विभाजन के बाद लगभग 60 लाख गैर-मुसलमान पश्चिमी पाकिस्तान से भारत आ गए, जबकि 65 लाख मुसलमान भारत के पंजाब और दिल्ली जैसे क्षेत्रों से पश्चिमी पाकिस्तान चले गए। पूर्वी बंगाल (जो बाद में पूर्वी पाकिस्तान बना) से 20 लाख गैर-मुसलमान पश्चिम बंगाल आ गए। विभाजन की इस विभीषिका में मारे गए लोगों की संख्या का अनुमान पांच से दस लाख के बीच है।

नए सिरे से शुरू हुई जिंदगी

विभाजन के बाद लाखों शरणार्थियों को उन प्रांतों और शहरों में जाना पड़ा, जहां से उनका पहले से कोई संबंध नहीं था। वहां की भाषा, संस्कृति सब अलग थी। ऐसे में शरणार्थियों को अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करनी पड़ी।

सिंध के अल्पसंख्यकों की त्रासदी

विभाजन के दौरान सिंध के अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदू और सिख समुदाय को विकराल त्रासदी का सामना करना पड़ा। 1947 के अंत तक लाखों अल्पसंख्यकों को सिंध छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। 1948 के मध्य तक, सिंध से 10 लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके थे।

ट्रेन में आती लाशें

विभाजन के समय लोगों ने रेलगाड़ियों का भी बड़े पैमाने पर उपयोग किया। कई बार, जब ट्रेन अपने गंतव्य तक पहुंचती थी, तो उसमें सिर्फ लाशें और घायल लोग ही मिलते थे। भारत और पाकिस्तान के बीच सहमति से रेल सेवा जारी रही, लेकिन इन सेवाओं ने भी विभाजन की भयावहता को उजागर किया।

महिलाओं की दुर्दशा

विभाजन के दौरान महिलाओं को सबसे अधिक पीड़ा सहनी पड़ी। उनके साथ दुष्कर्म किया गया, उनका अपहरण हुआ, और उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया। सबसे दर्दनाक बात यह थी कि कई परिवार अपने सम्मान की रक्षा के लिए अपनी ही बेटियों को मार डालते थे। भारत और पाकिस्तान दोनों सरकारों ने हजारों महिलाओं के अपहरण की जानकारी दी।

पलायन की कठिनाइयाँ

पलायन कर रहे लोगों को न केवल भीषण गर्मी का सामना करना पड़ा, बल्कि मूसलाधार बारिश में भी मीलों पैदल चलना पड़ा। भोजन, पानी और आश्रय के बिना चलते-चलते कई लोगों ने थकावट, भुखमरी और बीमारी के चलते दम तोड़ दिया।

देश का बंटवारा

देश के बंटवारे की नींव 20 फरवरी 1947 को ही रख दी गई थी, जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने घोषणा की थी कि 30 जून 1948 से पहले भारत की सत्ता भारतीयों को सौंप दी जाएगी। हालांकि, लॉर्ड माउंटबेटन ने इस प्रक्रिया को एक साल पहले ही पूरा कर दिया।

हिंसा और दंगों की शुरुआत

चार मार्च 1947 को लाहौर में डीएवी कॉलेज के छात्रों पर पुलिस ने हमला कर दिया, जिससे कई छात्रों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए। इसके बाद, पंजाब के कई शहरों में दंगे भड़क उठे।

सीमा की रेखाएँ

भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का निर्धारण सर सिरिल रैडक्लिफ ने किया, जिन्हें माउंटबेटन ने इस काम के लिए बुलाया था। रैडक्लिफ ने अपनी रिपोर्ट 12 अगस्त 1947 को पूरी कर ली, जिसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखाएं खींची गईं। भारत का विभाजन इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। इस विभीषिका ने लाखों लोगों की जिंदगी को तहस-नहस कर दिया। 14 अगस्त का दिन हमें उस त्रासदी की याद दिलाता है, जिसने हमारे देश को हमेशा के लिए बदल दिया।

By Ankit Verma 

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