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हाल ही में दुबई में तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी और भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री के बीच मुलाकात हुई। यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब अफगानिस्तान और इसके आसपास का क्षेत्र भू-राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है। भले ही भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन यह कदम भारत के राष्ट्रीय और सुरक्षा हितों को सुरक्षित रखने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है।
तालिबान के साथ जुड़ाव के पीछे भारत के कारण-
तालिबान का पुराना सहयोगी पाकिस्तान अब खुद तालिबान के साथ तनावपूर्ण रिश्तों में है।
पहले तालिबान पर दबाव बनाने वाला ईरान अब अपनी अंदरूनी समस्याओं में उलझा हुआ है।
रूस, जो अपनी यूक्रेन युद्ध में व्यस्त है, तालिबान को आतंकवाद विरोधी सहयोगी के रूप में देख रहा है।
चीन ने तालिबान के साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए हैं और अफगानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर नजर गड़ाई है।
अमेरिका में ट्रंप प्रशासन की वापसी के संकेत और अफगानिस्तान में अमेरिकी नीतियों के बदलाव ने भारत को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया।
भारत और तालिबान के बीच बढ़ता संवाद-
भारत ने तालिबान के साथ अपने संवाद की शुरुआत 2021 में की थी, जब भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के दोहा कार्यालय के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। इसके बाद, भारतीय अधिकारियों ने कई बार तालिबान नेताओं से बातचीत की। दुबई में हुई हालिया बैठक तक, भारत ने तालिबान के साथ अपने संबंधों को धीरे-धीरे मजबूत किया है। इस दौरान, भारत ने अफगानिस्तान में अपने 3 बिलियन डॉलर के विकास प्रोजेक्ट्स को सुरक्षित रखने की कोशिश जारी रखी।
क्षेत्रीय घटनाओं का प्रभाव-
2024 के अंत में ईरान को इजरायल के हमलों से बड़ा झटका लगा, वहीं रूस और तालिबान के बीच संबंध मजबूत हो रहे हैं। चीन ने अफगानिस्तान में निवेश बढ़ा दिया है और पाकिस्तान के तालिबान के साथ रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं। इन सबके बीच, भारत ने तालिबान के साथ जुड़ाव बढ़ाने का सही समय समझा। भारत की मुख्य चिंता यह है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत विरोधी आतंकवाद के लिए न हो।
तालिबान का भारत से सहयोग-
तालिबान ने भारत से मानवीय सहायता और विकास परियोजनाओं में मदद की उम्मीद जताई है। 2021 में ही उन्होंने कहा था कि भारत के प्रोजेक्ट्स अफगानिस्तान के लिए बेहद लाभकारी रहे हैं। आज, तालिबान ने भारत को सुरक्षा की गारंटी दी है और इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) जैसे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ लड़ाई में सहयोग का भरोसा दिया है।
बदलते भू-राजनीतिक समीकरण-
यह कहानी सिर्फ भारत और तालिबान के बीच बातचीत की नहीं है, बल्कि बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों की है। भारत का यह कदम उसकी सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। तालिबान के साथ भारत का जुड़ाव इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
Baten UP Ki Desk
Published : 9 January, 2025, 6:45 pm
Author Info : Baten UP Ki