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(Special Story) एक ऐसी जगह जो अनादि और अनंत है जहां हवा नहीं है। एक ऐसा निर्वात जहां आप सुन नहीं सकते, जिसमें सभी ग्रह, उपग्रह , नक्षत्र (तारे), उल्कापिंड, गैलेक्सी, मैग्नेटिक फील्ड और ब्लैक होल मौजूद हैं उसे अंतरिक्ष या व्योम कहा जाता है। अब जरा सोचिए कि यहां कोई इंसान जाए और सकुशल वापस लौट कर भी आ जाए तो ये उपलब्धि इतिहास के पन्नों में हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज करने योग्य है। साल 1961 के 12 अप्रेल की तारीख सोवियत संघ के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए ऐतिहासिक थी क्योंकि इसी दिन यूरी गगारिन अंतरिक्ष पर जाने वाले पहले इंसान बने थे। इतिहास में इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी इंसान ने अंतरिक्ष में कदम रखा हो। विश्व की पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान की इस ऐतिहासिक घटना की याद में साल 2011 से हर साल 12 अप्रैल को विश्व स्तर पर मानव अंतरिक्ष उड़ान का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है।
अंतरिक्ष में जाने वाला पहला इंसान-
आज से 6 दशक पहले 27 वर्षीय सोवियत अंतरिक्ष यात्री यूरी गगारिन ने 12 अप्रैल, 1961 को, वोस्तोक 1 अंतरिक्ष यान (Vostok 1 spaceflight) का संचालन किया, जो पहला मानव कक्षीय अंतरिक्ष यान था। वह Vostok 3KA अंतरिक्ष यान में अकेले बैठे थे, जिसे वोस्तोक-के रॉकेट पर लॉन्च किया गया था। सुबह करीब छह बजे अंतरिक्ष यान ने दक्षिणी कजाकिस्तान के बैकोनूर कोस्मोड्रोम से उड़ान भरी थी। कुछ ही मिनटों में यूरी गगारिन अंतरिक्ष में प्रवेश करने वाले पहले इंसान बन गए। गागारिन ने लगभग 17,500 मील प्रति घंटे की गति से एक बार पृथ्वी का चक्कर लगाया। लैंडिंग से ठीक चार मील पहले, उन्होंने खुद को अंतरिक्ष कैप्सूल से अलग कर लिया और पैराशूट का उपयोग करके सुरक्षित रूप से उतर गए। यह ऐतिहासिक उड़ान केवल एक घंटे 48 मिनट तक चली थी।
अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषणा-
7 अप्रैल, 2011 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने, पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान की 50वीं वर्षगांठ से कुछ दिन पहले, 12 अप्रैल को मानव अंतरिक्ष उड़ान के अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया। यूएनजीए द्वारा पारित प्रस्ताव ने इसे "अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक वर्ष मानव जाति के लिए अंतरिक्ष युग की शुरुआत का जश्न मनाने के लिए एक दिन" माना।
अंतरिक्ष की उड़ान भरने वाले भारतीय
आजादी के बाद से अब तक इसरो व भारतीय अंतरिक्षयात्रियों ने अंतरिक्ष का सफर शानदार तरीके से तय किया है। इस मामले में भारतीय मूल की महिला अंतरिक्ष यात्री आगे रही हैं। बीते कुछ वर्षों से इसरो अपने पहले मानव मिशन गगनयान को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में प्रयासरत है। साल 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की नींव रखी गयी। इसके 15 वर्ष बाद सोवियस संघ के सहयोग से वर्ष 1984 में राकेश शर्मा अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले भारतीय बने, तबसे अब तक चार भारतीय अंतरिक्ष के सफर पर जा चुके हैं। आइए जानते हैं अंतरिक्ष में अब तक गये भारतीय व भारतीय मूल के अंतरिक्षयात्रियों के बारे में..
राकेश शर्मा को देश का पहला अंतरिक्ष यात्री बनने का गौरव हासिल है। वह 3 अप्रैल 1984 को सोवियत संघ के अंतरिक्ष यान सोयूज टी-11 से अंतरिक्ष के लिए रवाना हुए थे. 7 दिन 21 घंटे और 40 मिनट स्पेस स्टेशन सेल्यूत-7 में बिताने के बाद वह धरती पर लौट आये थे। अंतरिक्ष यात्रा से पहले उन्होंने मास्को में दो वर्ष तक ट्रेनिंग की। मास्को के यूरी गागरिन अंतरिक्ष केंद्र में उनकी ट्रेनिंग हुई।
अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला के रूप में कल्पना चावला का अपने देश के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान है। 19 नवंबर 1997 को नासा द्वारा भेजे गये अंतरिक्ष मिशन में कल्पना चावला छह अंतरिक्ष यात्रियों के एक दल का हिस्सा थीं। अंतरिक्ष शटल कोलंबिया की उड़ान एसटीएस-97 से अंतरिक्ष की यात्रा करके कल्पना ने अपने नाम का डंका बजाया। 16 जनवरी 2003 को कल्पना चावला कोलंबिया के एसटीएस-107 के जरिये दूसरी अंतरिक्ष यात्रा पर निकलीं। लेकिन इस मिशन के दौरान दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण कल्पना चावला की मौत हो गई।
सुनीता विलियम्स अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के जरिये अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला हैं। सुनीता विलियम्स ने एक अंतरिक्ष यात्री के रूप में 195 दिनों तक अंतरिक्ष में रहने का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। सुनीता के पिता दीपक पांडया मूलत: गुजरात के अहमदाबाद की रहने वाले थे। सुनीता के पिता वर्ष 1958 में अहमदाबाद से अमेरिका के बोस्टन में जाकर वहीं बस गये थे। सुनीता के पिता अमेरिका में डॉक्टर थे। सुनीता का जन्म 19 सितंबर, 1965 को अमेरिका के ओहियो राज्य में यूक्लिड नगर (क्लीवलैंड) में हुआ था। सुनीता ने मैसाचुसेट्स से हाइ स्कूल पास करने के बाद वर्ष 1987 में संयुक्त राष्ट्र की नौसैनिक अकादमी से फिजिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद 1995 में फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में एमएस किया। वर्ष 2006 में सुनीता विलियम्स ने पहली बार अंतरिक्ष की उड़ान भरी।
दो अंतरिक्ष मिशनों का अनुभव रखने वाली सुनीता पहली महिला हैं, जिन्होंने 50 घंटे तक स्पेस वॉक करने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया है। यह वॉक स्पेस शटल के बाहरी स्पेस में था। सुनीता विभिन्न अभियानों में कुल 321 दिन 17 घंटे और 15 मिनट अंतरिक्ष में रहीं। सुनीता विलियम्स की उपलब्धियों को सम्मान देते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2008 में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
भारत में जन्मीं अंतरिक्ष यात्री सिरीशा बंदला वर्जिन गेलेक्टिक कंपनी के वीएसएस यूनिटी स्पेसशिप पर अंतरिक्ष गये छह व्यक्तियों के एक चालक दल का हिस्सा थीं। वर्जिन गेलेक्टिक एक ब्रिटिश-अमेरिकी स्पेसफ्लाइट कंपनी है। धरती से अंतरिक्ष तक और फिर वापसी का यह सफर 70 मिनट का रहा। हालांकि, सिरिशा की यह उड़ान कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के अंतरिक्ष मिशन से कुछ अलग थी।
मानव अंतरिक्ष उड़ान का अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2024 की थीम-
हर साल अंतर्राष्ट्रीय मानव अंतरिक्ष उड़ान दिवस’ का आयोजन एक निश्चित थीम के साथ किया जाता है। इस साल ये "वैज्ञानिक जिज्ञासा को प्रोत्साहित करें" थीम के साथ मनाया जा रहा है। यह व्यक्तियों और समुदायों से खोज और नवाचार के लिए जिज्ञासा को प्रेरक शक्ति के रूप में अपनाने का आग्रह करता है।
पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली पहली महिला-
यूरी गगारिन के अंतरिक्ष में यात्रा के ठीक दो साल बाद, सोवियत संघ ने 1963 में वेलेंटीना टेरेश्कोवा को अंतरिक्ष में भेजा। इस प्रकार वेलेंटीना टेरेश्कोवा पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली पहली महिला बन गई। इसके कुछ वर्ष वाद 1969 में, नील आर्मस्ट्रांग नामक एक अमेरिकी नागरिक चंद्रमा पर चलने वाले पहले व्यक्ति बने। जुलाई 1975 में, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने अंतरिक्ष में पहला अंतर्राष्ट्रीय मानव मिशन लॉन्च किया।इस तरह से केवल 15 वर्षों की अवधि में, मानव ने अंतरिक्ष अन्वेषण में अत्यधिक प्रगति की।
पहला मानव निर्मित उपग्रह स्पुतनिक-
इंसानों के अंतरिक्ष में जाने से कुछ वर्ष पूर्व 4 अक्टूबर, 1957 को पहला मानव निर्मित उपग्रह - स्पुतनिक I - बाहरी अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया था। इस घटना ने अंतरिक्ष अन्वेषण का रास्ता खोल दिया और मानव यात्राओं के लिए भी बीज बोए। 12 अप्रैल, 1961 को, गगारिन पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले पहले मानव बने। यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी जो मनुष्यों द्वारा आधुनिक तकनीक का उपयोग करके अंतरिक्ष का अध्ययन शुरू करने के कुछ ही वर्षों बाद हुई थी।
Baten UP Ki Desk
Published : 12 April, 2024, 2:21 pm
Author Info : Baten UP Ki