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ठगी होने के बावजूद भी अब नहीं कह पाएंगे 420 ?

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(Special Story) समाज में किसी को धोखा देकर उसके रुपये पैसे हड़प लेना- उसको आर्थिक हानि पहुंचाने जैसी घटनाएं काफी समय से होती आई हैं। आपने अक्सर सुना होगा कि फलां व्यक्ति ने फलां व्यक्ति को ठग लिया। या फलां व्यक्ति बड़ा 420 है। लेकिन अब ऐसा कह पाना संभव नहीं होगा। ऐसा क्यों हम कह रहे हैं आइए विस्तार से जानते हैं... 

अंग्रेजों के जमाने के कानूनों से आजादी-

सोमवार यानी 25 दिसंबर का दिन भारतीय इतिहास में बहुत खास रहा। इस दिन देश में अंग्रेजों के जमाने के आपराधिक कानूनों से आजादी मिल गई। तीन संशोधन विधेयकों पर देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मुहर लगा दी। इन कानूनों की जगह नए कानून के लिए संसद ने पिछले सप्ताह ही तीनों विधेयकों को पारित किया गया था। तीनों नए कानून अब भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम कहे जाएंगे। जो क्रमश: भारतीय दंड संहिता (1860), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1898) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) की  जगह लेंगे।

अब क्यों नहीं कह पाएंगे 420-

जी हां एक-दम सही पढ़ा अब आप किसी ठग को भी 420 नहीं कह पाएंगे क्योंकि आईपीसी की धारा 420 ठगी के बारे में थी। लेकिन अब यह धारा ही बदल गई है। राष्ट्रपति ने भारतीय न्याय संहिता को मंजूरी दे दी है जिसके मुताबिक अब ठगी की धारा 420 के बजाए 316 हो गई। यानी अब ठगी करने वाले को 420 के बजाए 316 कहना होगा। इतना ही नहीं इसी तरह हत्या की धारा 302 हुआ करती थी। अब से यह भी भारतीय न्याय संहिता में धारा 101 होगी। कहीं भी कानून-व्यवस्था बिगड़ने पर अभी तक दफा 144 लगती थी। लेकिन अब से इसे दफा 187  कहा जाएगा। 

संसद में गृह मंत्री अमित शाह ने क्या कहा-

आपको बता दें कि संसद में तीनों विधेयकों पर चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि इनमें सजा देने की बजाय न्याय देने पर फोकस किया गया है। ये कानून केंद्र की तरफ से आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित किए जाने की तिथि से लागू हो जाएंगे। जो अब राष्ट्रपति की मुहर के बाद लागू हो गए हैं। अब भारत में लागू किसी भी कानून के तहत उत्तरदायी किसी भी व्यक्ति पर भारत से बाहर किए गए किसी भी अपराध के लिए इस कानून के प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाया जा सकेगा। पहली बार कानून में आतंकवाद को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। राजद्रोह को अपराध के रूप में खत्म कर दिया गया है। इसके स्थान पर देश के खिलाफ अपराध नामक एक नया खंड जोड़ा गया है।

इन तीनों कानूनों का उद्देश्य- 

इन तीनों कानूनों का उद्देश्य विभिन्न अपराधों और उनकी सजा की परिभाषा देकर देश में आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलना है। इनमें आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा दी गई है। राजद्रोह को अपराध के रूप में समाप्त किया  गया है और 'राज्य के खिलाफ अपराध' नामक एक नई धारा पेश की गई है। इन विधेयकों को पहली बार अगस्त में संसद के मानसून सत्र के दौरान पेश किया गया था। गृह मामलों की स्थायी समिति द्वारा कई सिफारिशें किए जाने के बाद सरकार ने विधेयकों को वापस लेने का फैसला किया था। जिसके बाद पिछले हफ्ते उनके फिर से तैयार किए गए संस्करण पेश किए गए थे। 

महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराधों पर और सख्त कानून-
 
आपको बता दें कि न्याय संहिता में महिलाओं और 18 साल से कम उम्र की बच्चियों के खिलाफ दुष्कर्म और अपराधों से निपटने के लिए नया अध्याय जोड़ा गया है। नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के अपराध पर उम्रकैद या फांसी की सजा का प्रावधान है। भारतीय दंड संहिता में 511 धाराएं थीं, लेकिन भारतीय न्याय संहिता में धाराएं 358 रह गई हैं। साथ ही बीस नए अपराध शामिल किए हैं, 33 अपराधों में सजा अवधि बढ़ाई है। 83 अपराधों में  जुर्माने की रकम भी बढ़ाई गई है। 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान है।  छह  अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान है।
दंड प्रक्रिया संहिता की 484 धाराओं के बदले भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं। 177 प्रावधान बदले हैं, नौ नई धाराएं और 39 उपधाराएं जोड़ी हैं।  35 में समय सीमा तय की गई है। नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 प्रावधान हैं। इससे पहले वाले कानून में 167 प्रावधान थे। नए कानून में 24 प्रावधान बदले हैं। 

राजद्रोह नए अवतार में, 'लव जिहाद' पर कानून-

नए कानून में तकनीकी रूप से राजद्रोह को IPC से हटा दिया गया है। लेकिन भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को एक नए अपराध की कैटेगिरी में डाला गया है। पहले जो आतंकवादी कृत्य, गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) ACT जैसे विशेष कानूनों का हिस्सा थे, उन्हें अब भारतीय न्याय संहिता में शामिल किया गया है। इसके अलावा इस कानून में 'लव जिहाद' को भी दंडित किया गया है। इसी तरह, पॉकेटमारी जैसे छोटे संगठित अपराधों समेत संगठित अपराध से निपटने के लिए प्रावधान पेश किए गए हैं। जबकि पहले इस तरह के संगठित अपराधों से निपटने के लिए राज्यों के अपने-अपने कानून थे। पिछले साल से लगातार सुर्ख़ियों में रहे मॉब लिंचिंग को आजीवन कारावास के साथ भारतीय न्याय संहिता में रखा गया है। इस तरह से जब पांच या उससे ज्यादा लोग मिलकर जाति या समुदाय के नाम पर किसी की हत्या करेंगे तो इन सभी सदस्यों को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी।
इसके अलावा शादी का झूठा वादा करके सेक्स करने को विशेष अपराध के रूप में पेश किया गया है। 15 दिन की पुलिस रिमांड को अब अपराध की गंभीरता के मद्देनजर 60 से 90 दिन तक बढ़ाये जाने का प्रावधान किया गया है। छोटे अपराधों के लिए सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा को शामिल किया गया है। साथ ही जांच-पड़ताल में अब फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने को अनिवार्य कर दिया गया है। सूचना प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देते हुए इन्वेस्टीगेशन और बरामदगी की रिकॉर्डिंग करने के अलावा सभी पूछताछ और सुनवाई को ऑनलाइन मोड में करने का भी नियम लाया गया है। 

अब नहीं होगी, तारीख पर तारीख-

सबसे खास बात ये कि तारीख पर तारीख वाली न्यायिक प्रक्रिया को बदल दिया गया है। जिसमें FIR, इन्क्वायरी, रिपोर्ट सबमिशन और सुनवाई, के लिए समय-सीमा तय कर दी गई है। इस तरह से सुनवाई के 45 दिनों के अंदर फैसला देना और शिकायत के 3 दिन के अंदर FIR दर्ज करवाना होगा। इसी तरह से जांच रिपोर्ट जिला मजिस्ट्रेट को सौंपने के बाद 24 घंटे के अंदर अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना होगा। मेडिकल रिपोर्ट को 7 दिनों के भीतर सीधे पुलिस स्टेशन और कोर्ट में भेजने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा प्ली बार्गेनिंग में आरोपियों को बरी होने के लिए याचिका दायर करने के लिए 7 दिन का समय दिया गया है। इस मामले में सुनवाई के लिए अधिकतम 120 दिन लिए जा सकते हैं जबकि पहले प्ली बार्गेनिंग के लिए कोई समय सीमा नहीं थी। मुकदमे के दौरान 30 दिनों के भीतर सभी दस्तावेज़ प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया है। अब अगर आरोपी 90 दिनों के भीतर अदालत में पेश नहीं होता है, तो मुकदमा उसकी अनुपस्थिति में ही आगे बढ़ाया जायेगा। इसके अलावा पहले की तरह गैर सरकारी संगठन या नागरिक समाज समूह मौत की सजा पाए दोषी की ओर से दया याचिका नहीं दायर कर पाएंगे बल्कि केवल दोषी ही अपने लिए याचिका दायर कर सकेगा। 

आम आदमी पर इस बदलाव का असर-

आइये अब जानते हैं कि आम आदमी पर इस बदलाव से क्या असर पड़ेगा। दरअसल कानून विशेषज्ञों के मुताबिक ये एक्ट पुलिस को जवाबदेह न ठहराते हुए उन्हें और ज्यादा शक्ति देने वाले हैं। इसके अलावा एक गिरफ्तार व्यक्ति के बायोमेट्रिक्स को कलेक्ट करना भी राइट टू प्राइवेसी के अगेंस्ट है। साथ ही संगठनों को दया याचिका दायर करने से मनाही, न्यायिक बोझ को बढ़ाने वाला साबित होगा। इसके अलावा धोखे से सेक्स और लवजिहाद जैसे मुद्दे पर निर्दोष लोगों के फंसने की बड़ी सम्भावना जताई जा रही है। इन मुद्दों के चलते इन कानूनों की आलोचना भी हो रही है। साथ इस बात पर भी लगातार आपत्ति जताई जा रही है कि न्याय प्रणाली से जुड़ा यह अहम् बदलाव 146 सांसदों के निलंबन के दौरान हुआ है। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर का कहना है कि इन कानूनों पर अधिक बहस की जरूरत थी।
लोगों पर पड़ने वाले पॉजिटिव असर की बात करें तो कानूनी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग को अच्छी पहल बताया जा रहा है साथ इसे मजबूती से एक्सीक्यूट करवाने की भी बात की जा रही है। समय सीमा निर्धारित करने को भी बेहतर पहल के तौर देखा जा रहा है। हालाँकि अभी इस पर लगातार जानकारों की राय आ रही है।

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