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भारत के एकीकरण से लेकर कई शौर्य गाथाएं CRPF के नाम..

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(Special Story) दुनिया का कोई भी देश अपने आपको तब महफूज समझता है जब उसके देश की सुरक्षा का तंत्र मजबूत होता है। भारत की सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय सेना के कंधों पर है लेकिन देश की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के पास है। जरूरत पड़ने पर सीआरपीएफ ने बॉर्डर पर सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कई अहम लड़ाइयां लड़ी हैं। इतना ही नहीं जब भारत के एकीकरण में बाधा आई, तब सीआरपीएफ ने अपनी भूमिका को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाया था।

सीआरपीएफ की स्पाथना कब हुई ? इसकी स्थापना में सरदार पटेल का योगदान क्या था? और इसकी शौर्य गाथा से लेकर तमाम पहुलओं को विस्तार से जानेंगे

देश का सबसे बड़ा अर्धसैनिक बल 'केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल' सेना की तर्ज पर हर वर्ष 19 मार्च को 'सीआरपीएफ डे' मनाता है। अभी तक किसी भी अर्धसैनिक बल में 'डे' नहीं मनाया जाता है, इन केंद्रीय पुलिस बलों में 'स्थापना दिवस' मनाने की परंपरा रही है। हालांकि सीआरपीएफ मुख्यालय ने इसके पीछे तर्क दिया है कि सरदार पटेल ने 1950 में 19 मार्च के दिन ही सीआरपीएफ को झंडा यानी 'प्रेजीडेंट कलर्स' प्रदान किया था। सीआरपीएफ, देश का इकलौता ऐसा अर्धसैनिक बल है, जिसकी स्थापना आजादी से पहले 1939 में क्रॉउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस के तौर पर हुई थी। सीआरपीएफ के स्थापना दिवस को लेकर कई बार अलग-अलग तिथियां निर्धारित की जाती रही हैं। अब इसे 19 मार्च को मनाया जाता है।

CRPF की स्थापना में सरदार पटेल की भूमिका

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, 27 जुलाई 1939 को क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस के रूप में अस्तित्व में आया था। उसके बाद 28 दिसंबर 1949 को सीआरपीएफ अधिनियम के लागू होने पर इसे 'केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल' का दर्जा प्रदान किया गया। आजादी के बाद 28 दिसंबर, 1949 को संसद के एक अधिनियम द्वारा इस बल का नाम 'केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल' रखा गया था। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने नव स्वतंत्र राष्ट्र की बदलती जरूरतों के अनुसार इस बल के लिए एक बहु आयामी भूमिका की कल्पना की थी। इस तरह से सीआरपीएफ में 19 मार्च, 27 जुलाई व 28 दिसंबर में से किसी एक दिन स्थापना दिवस समारोह आयोजित किया जाता है। बल मुख्यालय के शीर्ष अधिकारियों और फील्ड फॉर्मेशन के आला अफसरों से बातचीत कर एवं बल की सभी यूनिटों से सुझाव लेकर 19 मार्च की तारीख तय कर दी गई है। इसे 'सीआरपीएफ डे' का नाम दिया गया है। 

जब CRPF ने पेश की वीरता और शौर्य की गाथा

भारत के एकीकरण में योगदान -

देश की आजादी के बाद जूनागढ़, कठियावाड़ जैसी रियासतों ने भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया था। ऐसी स्थिति में इन क्षेत्रों का भारत में विलय करने में सीआरपीएफ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके अलावा कच्‍छ, राजस्‍थान और सिंध सीमाओं में घुसपैठ और सीमा पार अपराधों की जांच के लिए इसकी टुकड़ियों को भेजा गया था।

चीनी हमले को किया नाकाम 

21 अक्टूबर 1959 को चीनी सैनिकों ने लद्दाख के हॉट स्प्रिंग पर हमला कर दिया था। उस समय वहां गश्त कर रही सीआरपीएफ की टुकड़ी ने उनके हमले को नाकाम कर दिया था। इस दौरान सीआरपीएफ के 10 जवान शहीद हो गए थे।  उनकी याद में हर साल 21 अक्टूबर को पुलिस स्‍मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।1962 के चीनी आक्रमण के दौरान एक बार फिर सीआरपीएफ ने अपनी बहादुरी की मिसाल पेश की। उन्होंने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सेना को सहायता प्रदान की।

भारत पाक युद्ध में भूमिका-

साल  1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी सीआरपीएफ ने भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया था।

मणिपुर और पंजाब में भी निभाई अहम भूमिका

70 के दशक में जब उग्रवादियों ने त्रिपुरा और मणिपुर में शांति को भंग किया था। इस दौरान सीआरपीएफ के जवानों की तैनाती की गई थी। साथ ही 80 के दशक में पंजाब में बढ़ती आतंकी घटनाओं को देखते हुए वहां भी सीआरपीएफ को तैनात किया गया था।

संसद पर आतंकी हमले को किया नाकाम

भारत के इतिहास में ये दिन बहुत दुखद रहा, जब 13 दिसंबर, 2001 को आतंकवादियों ने भारत के लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले संसद पर हमला किया। इस हमले का  मुंहतोड़ जबाव देते हुए सीआरपीएफ के बहादुर जवानों ने इस हमले को नाकाम कर दिया था। CRPF और आतंकवादियों के बीच  चली गोलीबारी में आतंकियों को मार गिराया गया था। हालांकि, एक महिला सिपाही शहीद हो गई थीं। जिन्हें 26 जनवरी, 2002 को अशोक चक्र प्रदान किया गया था।

CRPF ने विदेशी जमीन पर दिखाया शौर्य

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल ने विदेशी जमीन पर भी अपना शौर्य दिखाया है। सीआरपीएफ की 13 कंपनियों को आतंवादियों से लड़ने के लिए भारतीय शांति सेना के साथ श्रीलंका में भेजा गया था। इसमें महिलाओं की टुकड़ी को भी श्रीलंका भेजा गया था। इसके अलावा, सीआरपीएफ को संयुक्‍त राष्‍ट्र शांति सेना के एक अंग के रूप में हैती, नामीबिया, सोमालिया और मालदीव भी भेजा जा चुका है।

By Ankit verma 

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