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केंद्र का किसानों को 4 फसलों पर MSP का प्रस्ताव, अब क्या करेंगे किसान?

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(Special Story) आज किसान आंदोलन का सांतवां दिन है। कई मांगों पर सहमति के बाद एमएसपी पर भी एक प्रस्ताव सरकार ने किसानों को दे दिया है। किसान आंदोलन में कई मांगें रखी गई हैं। इनमें से न्यूनतम समर्थन मूल्य और किसानों की ऋण माफी की मांगें अहम हैं।आपको बता दें कि सरकार की तरफ से किसानों से बात करने पहुंचे केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि सरकार मक्का, कपास, अरहर और उड़द पर MSP देने को तैयार है। अगले 5 साल तक चारों फसलों की खरीद सहकारी सभाओं के जरिए होगी। नैफेड और NCCF से 5 साल के लिए कॉन्ट्रैक्ट होगा। अब गेंद किसान संगठनों के पाले में है। हलांकि किसानों 2 दिन बाद इस पर अपना फैसला लेने की बात कही है...आइए विस्तार से जानते हैं इस आंदोलन की इनसाइड स्टोरी... 

कुछ और ही कहता है ये आंदोलन-

किसानों के आंदोलन का समय, तरीका और कुछ मांगें इसके राजनीति से प्रेरित होने की तरफ इशारा करती हैं। सबसे प्रमुख बात तो ये है कि इसमें सिर्फ पंजाब के किसान शामिल हैं।  इससे भी समझा जा सकता है कि आंदोलन करने वाले किसान संगठनों ने भारत बंद किया था। जिसका कोई असर देश के अन्य राज्यों में दिखाई नहीं दिया। विपक्ष के दल अपने फायदे के लिए इसमें अपना सहयोग दे रहे हैं। देशभर में बोर्ड की परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं। दिल्ली व सटे इलाकों में छात्र-छात्राएं और अभिभावक डरे हुए हैं। एक तरफ तो किसान संगठन इसे शांतिपूर्ण विरोध बताते हैं वहीं तलवारें लहराते हुए नजर आते हैं। किसान आंदोलन में खालिस्तान के नारे इसके उद्देश्य पर संदेह पैदा करते हैं। प्रदर्शनकारियों के ट्रक, बाइक और कारों की रफ्तार व तैयारी उनकी नीयत पर सवाल खड़ा करती है। प्रदर्शनकारियों के बयान इसे किसान आंदोलन से ज्यादा मोदी हटाओ आंदोलन की तरफ ले जा रहे हैं।

कुछ कारण ये हैं-

भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के प्रधान जगजीत सिंह डल्लेवाल प्रमुख चेहरा हैं। उनका एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है कि राम मंदिर बनने के बाद से मोदी जी का ग्राफ ऊपर चला गया है। इसे नीचे लाना है। पूछे जाने पर उन्होंने वीडियो को नकारा नहीं बल्कि कहा कि यह मेरा आधिकारिक बयान नहीं है।

आंदोलन में शामिल किसान नेता तेजवीर सिंह के वीडियो में भी वह इसे विपक्ष की लड़ाई बता रहे हैं। वह कहते नजर आ रहे हैं कि आंदोलन देश का राजनीतिक भूगोल बदल देगा।

राहुल गांधी का ट्वीट-

राहुल गांधी ने 11 फरवरी को केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए ट्वीट किया। फिर वह खामोश हो गए। फिर 13 फरवरी को उन्होंने ट्वीट किया कि वह न केवल इस आंदोलन का समर्थन करते हैं बल्कि एमएसपी की गारंटी देने का वादा भी करते हैं। जबकि 2014 तक केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी।

कांग्रेस नेता रमनदीप सिंह मान-
 
आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य ने कांग्रेस नेता रमनदीप सिंह मान और किसान नेताओं के बीच संबंध को कई ट्वीट के थ्रेड बनाकर सबके सामने पेश किया है। उनका आरोप है कि कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा और रमनदीप मिलकर आंदोलन की आग को भड़का रहे हैं। इसकी प्लानिंग नवंबर में कई महीने पहले शुरू हो गई थी। 

उपद्रवी हैं आंदोलन के लीडर-

पंजाब किसान मजदूर समिति के महासचिव सरवन सिंह पंढेर इस किसान आंदोलन के अगुवा हैं। वह 26 जनवरी 2021 को लालकिले में घुसकर उपद्रव मचाने वालों में प्रमुख रहे हैं। दूसरा संगठन भारतीय किसान यूनियन, एकता सिंधुपुर जगजीत सिंह डल्लेवाल का है। आंदोलन में पंजाब में पीएम मोदी का काफिला रोकने की जिम्मेदारी लेने वाला संगठन भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी संगठन भी शामिल हैं। जबकि 2020 वाले आंदोलन के मशहूर नाम गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा, युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव समेत कई लोग इस बार गायब हैं। 

किसान आंदोलन का अब दिखने लगा है असर-

किसान आंदोलन का असर अब आम जनजीवन पर दिखने लगा है। दिल्ली जाने वाले बॉर्डर सील होने से ट्रकों की आवाजाही बंद है। मार्केट में काफी सामान नहीं पहुंच पा रहा है। साथ ही शहर से बाहर भी नहीं जा पा रहा है। चैंबर आफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री की मानें तो दिल्ली के बाजारों में ग्राहक नहीं पहुंच रहे हैं। इसमें 75 प्रतिशत की गिरावट आई है। 15 हजार से ज्यादा वाहन माल लेकर दिल्ली के बाहर खड़े हैं। करीब 25 हजार से ज्यादा शहर में फंसे हुए हैं। रोज यहां सोनीपत, पानीपन, बहादुरगढ़, नारनौल, गुड़गांव, नोएडा, फरीदाबाद, गाजियाबाद से करीब 3 लाख ग्राहक आते हैं, पर किसान आंदोलन के चलते लोग बाहर निकलने से डर रहे हैं। शादियों का सीजन है, ऐसे में बैंक्वेट हॉल, होटल व इससे जुड़े सभी व्यापारी काफी निराश हैं। यहां तक कि इस सेक्टर के जरिए कमाई करने वाले मजदूर भी परेशान हैं। 


2020 में हुए आंदोनल के चलते सभी व्यापारी व उनसे जुड़े कामगार डरे हुए हैं। उस समय करीब एक साल तक सब कुछ ठप्प सा हो गया था। अभी तक ये लोग उस घाटे से उबर नहीं पाए हैं। ऐसे में दिल्ली समेत आस-पास के राज्यों में वस्तुओं की पहुंच कठिन हो चली है। साथ ही रेट बढ़ने का भी डर है। 

आंदोलन की विशेष बात-

इसमें पंजाब के किसानों के अतिरिक्त किसी और राज्यों के किसानों की सहभागिता नहीं दिख रही है। जबकि आंकड़े बताते हैं कि पंजाब के किसानों को केंद्र सरकार ने पिछले छह वर्षो में बड़ी मदद दी है। केंद्र सरकार ने इस अवधि में पंजाब के किसानों को लाखों टन उर्वरक रियायती दर पर उपलब्ध कराया है। इसके अलावा सीधी वित्तीय सहायता भी दी गई है। 

केंद्र से पंजाब के किसानों को मिली सहायता-

  • 62 लाख किसानों को 263 लाख टन उर्वरक रियायती दर पर मिला
  • कृषि अवसंरचना निधि योजना के तहत 9775 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई
  • पीएम किसान योजना के तहत अब तक लाभार्थियों को 4758 करोड़ वितरित किए जा चुके हैं।
  • छह वित्त वर्ष की अवधि में 1531.45 करोड़ की राशि जारी की गई है
  • किसानों को 137407 मशीनें दी गई हैं
  • राज्य में 25417 कस्टम हायरिंग केंद्र स्थापित किए गए हैं
  • पंजाब में 2740 करोड़ रुपए की ऋण राशि वितरित की गई है
  • पंजाब में बागवानी को बढ़ावा देने के लिए 340.55 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं
  •  फसली ऋण खातों की संख्या 37 लाख करोड़ हो गई है
  • पंजाब में डीएपी की खपत राष्टृीय औसत की तुलना में 10 गुना अधिक है
  • पंजाब में डीएपी की आलू के लिए प्रति एकड़ खपत 200 किलोग्राम है

पंजाब में उर्वरक का प्रयोग ज्यादा-

पंजाब राज्य में रासायनिक उर्वरक की खपत देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा कई गुना अधिक है। कृषि पर स्थाई समिति की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्षों से रासायनिक उर्वरकों के ज्यादा प्रयोग की वजह से मिट्टी की उत्पादकता में काफी कमी आई है। इंसानों के स्वास्थ्य पर खतरा भी बहुत बढ़ गया है। 

आसान शब्दों में समझें क्या हैं किसानों की मांगें-

  • एमएसपी यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें के अनुसार कानून बनाया जाए
  • किसानों के कर्ज पूरी तरह से माफ किए जाएं
  • देशभर में भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 फिर से लागू किया जाए।
  • इसके लिए किसानों से लिखित सहमति सुनिश्चित की जाए। कलेक्टर दर से चार गुना अधिक मुआवजा दिया जाए।
  • लखीमपुर खीरी कांड के अपराधियों को सजा दिलाई जाए।
  • विश्व व्यापार संगठन से बाहर निकलकर सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर प्रतिबंध लगे।
  • किसानों और खेतिहर मजदूरों को पेंशन दी जाए।
  •  मनरेगा के तहत हर वर्ष 200 दिन का रोजगार और दैनिक मजदूरी 700 रुपए की जाए।
  • दिल्ली आंदोलन में मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा व परिवार के एक सदस्य को नौकरी।
  •  इलेक्ट्रिसिटी संशोधन बिल को रद्द किया जाए।
  • नकली बीज, कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों पर सख्त जुर्माना और कानून।
  •  मिर्च और हल्दी जैसे मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग बने।
  • जल जंगल, जमीन पर आदिवासियों के अधिकार सुनिश्चित हों।

अब आपको यह भी जानना अहम है कि आखिर किन फसलों पर एमएसपी तय होती है और कौन तय करता है।

कैसे तय होती है एमएसपी-

केंद्र सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार पर हर साल खरीफ और रबी सीजन से पहले 24 फसलों के लिए एमएसपी अधिसूचित करती है। इनमें अनाज, मोटे अनाज और दालें जैसे खाद्यान्न शामिल हैं। इसमें से 14 खरीफ फसलों के अंतर्गत धान, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द, मूंगफली, सूरजमुखी के बीज, सोयाबीन, तिल, नाइजरसीड (रामतिल), कपास आती हैं। वहीं रबी फसलों जैसे गेहूं, जौ, चना, मसूर, सरसों, कुसुम, टोरिया और अन्य फसलें, कोपरा, भूसी रहित नारियल और जूट शामिल हैं। किसानों की फसलों को उचित कीमत दिए जाने के मकसद से सरकार की ओर से कृषि लागत और मूल्य आयोग यानी सीएसीपी का गठन किया गया है। इसी संस्था के द्वारा की जाने वाली सिफारिशों के आधार पर सरकार हर साल फसलों पर न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य की घोषणा करती है। पहली बार 1966-67 में एमएसपी दर लागू की गई थी।

आर्थिक लिहाज से उत्तम नहीं एमएसपी-

इसे ऐसे समझें। उत्तर भारत में गेहूं की पैदावार ज्यादा है। ये फसल एमएसपी आधारित है। प्रचुर मात्रा में उत्पादन होने के बावजूद दक्षिण और पश्चिम राज्यों के बड़े व्यवसायी यहां से गेहूं नहीं खरीदते। वे विदेशों से सस्ता और उत्तम क्वालिटी का गेहूं खरीद लेते हैं। फसल वर्ष 2020-21 गेहूं का एमएसपी 1975 रुपये थी, जबकि कई देशों के निर्यातक सिर्फ 2450 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं भारतीय बंदरगाह तक पहुंचाने के लिए तैयार हैं। इसके लिए सरकार को सीमा शुल्क के सहारे उनके आयात को रोका गया। मिलों को भी एमएसपी वाला अनाज खरीदना पड़ता है। परिणामस्वरूप जेब आम उपभोक्ता की ढीली होती है।

इससे दो बड़े खतरे पैदा हो जाते हैं-

  • पहला यह कि निर्यात में अवरोध और आम उपभोक्ता भी पिसे।
  • दूसरी खतरनाक स्थिति ये बनती है कि बाजार आयातित कृषि उत्पादों से पट जाता है।
  • सोचिए कि पहले से ही खाद्यान्न प्रचुर देश के लिए इन दोनों में से कोई भी स्थिति अपेक्षित नहीं है।मोटी-मोटी बात समझने का प्रयत्न करते हैं। कृषि प्रधान और खाद्यान्न प्रचुर देश भारत से निर्यात होने वाली कृषि वस्तुओं में फल-फूल, सब्जियां, मसाले, चाय, कॉफी, तंबाकू, नारियल, मेवा प्रमुखता से शामिल हैं। इनमें से किसी के लिए भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं है। जबकि एमएसपी का लगभग 90 फीसद हिस्सा लेने वाले धान और गेहूं अपनी कीमतों के चलते निर्यात बाजार से बाहर हैं। एक और रोचक बात - विदेश में भारत की बासमती की मांग ज्यादा है, लेकिन यह एमएसपी से बाहर है। ये आंकड़े बताते हैं कि कृषि उत्पादों की निर्यात मांग बढ़ाने के लिए सेक्टर में कानूनी सुधार देश की जरूरत है। इसलिए भारत जैसे देश में मांग आधारित खेती की सलाह दी जाती रही है।

 

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