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कहते हैं डॉक्टर को भगवान का दूसरा रुप माना जाता है, और वह अपने मरीजों के जीवन को बचाने के लिए अपने पूरे ज्ञान और विद्या का प्रयोग करता है। जिससे वह अपने मरीज की जान बचा सके। लेकिन अगर वहीं डॉक्टर मरीजों की जान से खेलने लगे तो क्या होगा। बता दे कि बीते दिनों अलग-अलग जगह से ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें या तो डॉक्टरों की लापरवाही से मरीजों की जान गई है या फिर अस्पतालों में कई ऐसे फर्जी डॉक्टर गले में आला लटकाएं मिलें हैं जिनकों डॉक्टर का डी भी नहीं पता था। ऐसे फर्जी डॉक्टर सरकार और प्रशासन को तो धोखा दे ही रहे हैं साथ ही मरीजों की जिंदगियों के साथ भी खिलवाड़ कर रहें हैं।
फर्जी डॉक्टर का हुआ पर्दाफाश-
अभी हाल ही में लखनऊ के एक सरकारी अस्पताल से एक ऐसा ही मामला सामने आया हैं जिसमें एक आरोपी अपने गले में आला लटकाएं घूम रहा था और खुद को न्यूरोलॉजिस्ट बता रहा था। दरअसल, लखनऊ के KGMU यानी किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के ट्रॉमा सेंटर में बुधवार को डॉक्टर के गेटअप में एक संदिग्ध युवक इमरजेंसी वार्ड में घूम रहा था। उसके पास SGPGI लखनऊ का आई कार्ड था, और गले में आला डालकर युवक मरीजों और तीमारदारों के अलावा कर्मियों पर भी डॉक्टरों जैसा रौब गांठ रहा था। इस बीच शक होने पर कुछ कर्मियों ने उसे रोककर पूछताछ की तो उसने बताया कि वह न्यूरो सर्जरी विभाग का रेजिडेंट हैं, लेकिन जब अधिकारियों को बुलाकर उसकी पहचान की गई तो पता चला की वह फर्जी डॉक्टर है। इसके बाद उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया।
बाराबंकी में झोलाछाप डॉक्टर के चलते गई जान -
वहीं बाराबंकी में एक झोलाछाप डेंटिस डाक्टर ने 52 वर्षीय व्यक्ति के एक साथ 3 दांत निकाल दिये। इसके बाद मरीज के शरीर में बुरी तरह इंफेक्शन फैल गया और 22 दिन बाद उसकी मौत हो गई। मामले का पता लगते ही मृतक के बेटे ने कथित डॉक्टर के खिलाफ केस दर्ज कराया और डाक्टर मौके से फरार चल रहा है। लेकिन इन सब में सबसे ज्यादा सोचने वाली बात यह है कि क्या इन पीड़ितों के मुकदमा दर्ज कराने से उनको उनके परिवार का मरा हुआ सदस्य वापस मिल पाएगा। क्या जिस घर में सिर्फ एक कमाने वाला हो और वह ऐसे हादसों का शिकार हो जाएं तो क्या उसके बच्चों का भविष्य संवर जाएगा। अगर किसी बूढ़े मां- बाप के सहारे के साथ ऐसा हादसा हो जाएं तो क्या उनके बुढ़ापे कोई सहारा बन पाएगा। ऐसे कई सवाल हैं जो आम लोगों के मन में उठते हैं लेकिन फिर भी वह लोग डॉक्टर पर भरोसा करके उनके पास इलाज के लिए जातें हैं।
क्या आपका डॉक्टर भी है झोलाछाप-
वहीं अगर इन हादसों को रोकने के लिए और लोगों की जिंदगी को खिलवाड़ से बचाने के लिए सरकार या प्रशासन से उम्मीद की जाएं तो वहां पर भी मजबूर लोगों के हाथ निराशा ही लगती है। कितनी बार इन अपराधों पर लगाम लगाने के लिए अस्पताल प्रशासन की तरफ से निर्देश दिए गए लेकिन सब ठंठे बस्तें में चलें गए। 2020 में इन्हीं बढ़ते मामलों के चलते शिक्षा विभाग की तरफ से अधिकारियों को निर्देश दिए गए थे, कि प्रदेश के चिकित्सा संस्थानों समेत सभी मेडिकल-डेंटल कॉलेजों में तैनात डॉक्टरों के प्रमाण पत्रों की जांच की जाएं।
आखिर कहां मिलेगा न्याय-
चिकित्सा शिक्षा विभाग के विशेष सचिव मार्कंडेय शाही ने 22 जून 2020 को सभी डॉक्टरों के प्रमाण पत्रों के जांच के आदेश दिए और 23 जून को केजीएमयू के कुल सचिव ने सभी विभागाध्यक्ष, चिकित्सासंकाय, दंत संकाय, नर्सिंग संकाय को प्रमाण पत्रों के जांच शुरु कर दी गई। इसके बाद प्रमाणपत्रों की जांच को लेकर सभी संस्थानों में हड़कंप मच गया। इसके बाद शासन ने तैनात सभी डॉक्टरों का विभागवार ब्योरा तलब कर दिया। इसमें विभाग का नाम, शिक्षक का नाम, वर्तमान पदनाम, मार्कशीट, सार्टिफकेट, डिग्री, एमसीआइ-डीआइसी सार्टिफिकेट, अनुभव प्रमाणपत्र, नियुक्ति पत्र, कार्यभार ग्रहण करने का चार्ज सार्टिफिकेट समेत अन्य दस्तावेज तलब कर दिए गए थे। केजीएमयू में कई डॉक्टरों के विभिन्न प्रमाणपत्र ने उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। इनमें से एक रिटायर हुए गठिया रोग विभाग के डॉक्टर का नाम भी उछला। इनके फर्जी पत्रों की शिकायत शासन से की गई। इसके बाद विभागाध्यक्ष ने नोड्यूज जारी कर दिया गया। लेकिन बाद में इस आदेश पर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई और यह आदेश भी ठंडे बस्ते में चला गया। जबकि इस आदेश को प्रभावी रुप से लागू होना चाहिए और जांच होनी चाहिए थी। जिससे फर्जी डॉक्टरों पर कार्रवाई हो सके और लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने वाले डॉक्टरों पर लगाम लगाई जा सके।
सीनियर प्रोड्यूसर
Published : 7 December, 2023, 4:28 pm
Author Info : राष्ट्रीय पत्रकारिता या मेनस्ट्रीम मीडिया में 15 साल से अधिक वर्षों का अनुभव। साइंस से ग्रेजुएशन के बाद पत्रकारिता की ओर रुख किया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया...