बड़ी खबरें
देश भर में आज बड़ी धूमधाम से 75वां गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन भारत के संविधान को लागू करने के दिन को चिह्नित करता है, जो भारत को एक गणराज्य बनाता है। यह दिन हमारे देश के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। इस अवसर पर सभी लोग भारत के राष्ट्रीय ध्वज को फहराते हैं और इसके बाद राष्ट्रगान गाया जाता है। तिरंगा भारत की स्वतंत्रता और एकता का प्रतीक है। यह हमें हमारे देश के महान इतिहास और संस्कृति की याद दिलाता है।
ऐसी है भारत के राष्ट्रीय ध्वज की कहानी...
आपको बता दें कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगों से मिलकर बना है। केसरिया, हरा और सफेद। केसरिया रंग साहस और बलिदान का प्रतीक है। हरा रंग समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है। सफेद रंग शांति और सद्भाव का प्रतीक है। इसमें अशोक चक्र से ली गयी 24 तीलियां इस बात का प्रतीक है कि हमारा देश 24 घंटे देश की रक्षा एंव विकास के लिए तत्पर रहता है। लेकिन आपने कभी सोचा है कि आज जैसा हमारे देश का ध्वज हैं क्या आजादी से पहले भी ऐसा ही दिखता था। अगर आप नहीं जानते तो आज हम आपको बताएंगे कि हमारे राष्ट्रीय ध्वज में कितनी बार बदलाव किया गया है.....
पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906
आपको बता दें कि बीते 118 साल में भारत के राष्ट्रीय ध्वज में छह बार बदलाव किया गया है। भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कोलकाता में फहराया गया था। यह झंडा लाल, हरे और सफेद रंग का था। लाल रंग हिंदुओं का, हरा रंग मुसलमानों का और सफेद रंग अन्य धर्मों और शान्ति का प्रतीक था। इसमें ऊपर हरा, बीच में पीला और नीचे लाल रंग था। इसके साथ ही इस ध्वज में कमल के फूल और चांद-सूरज भी बने थे।
एक साल बाद 1907 में हुआ बदलाव
इसके बाद 1906 में प्रस्तावित भारत के पहले झंडे के बाद 1907 में भी एक नया झंडा प्रस्तावित किया गया। यह झंडा मैडम भीकाजी कामा और उनके कुछ क्रांतिकारी साथियों द्वारा पेरिस में फहराया गया था। इस झंडे में केसरिया, पीले और हरे रंग की तीन पट्टियां थी। बीच में वन्दे मातरम् लिखा था। वहीं, इसमें चांद और सूरज के साथ आठ सितारे भी बने थे।
डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने तीसरे झंडे का रखा प्रस्ताव
इसके करीब 10 साल बाद 1917 में डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने एक नए झंडे का प्रस्ताव रखा। इस झंडे में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर 7 सितारे बने हुए थे। वहीं, बाईं ओर ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
राष्ट्रपिता गांधी जी ने झण्डे में चरखे को शामिल किया
इसके चार साल बार 1921 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान, महात्मा गांधी को आंध्र प्रदेश के एक व्यक्ति ने एक हरे और लाल रंग का झंडा दिया था। गांधीजी को यह झंडा पसंद आया और उन्होंने इसमें कुछ बदलाव करते हुए सफेद रंग की एक पट्टी जुड़वाई। इसके अलावा देश के विकास को दर्शाने के लिए बीच में चलता हुआ चरखा भी दर्शाया गया।
1931 राष्ट्रीय ध्वज में पांचवी बार हुआ बदलाव
आजाद भारत की पहचान के लिए राष्ट्रीय ध्वज को एक बार फिर से बदला गया और 1921 में बने ध्वज में 10 साल बाद फिर से बदलाव करके 1931 में भारत को एक बार फिर नया राष्ट्रध्वज मिला। चौथे राष्ट्रध्वज की तरह ही पांचवे राष्ट्रीय ध्वज में भी चरखा महत्वपूर्ण रहा। हालांकि रंगों में इस बार बदलाव हुआ। चरखा के साथ ही केसरिया, सफेद और हरे रंग का संगम रहा। इंडियन नेशनल कांग्रेस (आईएनसी) ने औपचारिक रूप से इस ध्वज को अपनाया था।
1947 में चरखे की जगह सम्राट अशोक के धर्म चक्र को गया रिप्लेस
पांच बार राष्ट्रीय ध्वज में बदलाव के बाद 15 अगस्त 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो इस आजादी के साथ देश को एक नया झंडा भी मिला, जिसे तिरंगा के नाम से जाना जाने लगा। 1931 के इस झंडे के बीच में चरखे की जगह चक्र रखा गया, जो आज भी वही है। 22 जुलाई 1947 को राजेंद्र प्रसाद की अगुवाई में गठित कमेटी ने स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज को मान्यता दी। इस झंडे में तीन रंग थे। केसरिया, हरा और सफेद। बस चरखे की जगह पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को रिप्लेस किया गया था। इस तरह से स्वतंत्र भारत को उसका राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा मिला।
-अनीता
Baten UP Ki Desk
Published : 26 January, 2024, 3:42 pm
Author Info : Baten UP Ki