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देश का बड़ा तबका गरीबी और अज्ञान के अंधेरे में क्यों ?

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(Special Story) कहते हैं कि भारत की बड़ी आबादी अभी भी गांवों में रहती है, और ये जानकारी ग्रामीण भारत से ही जुड़ी हुई है। एक नए सर्वे में चौकाने वाली बात सामने आई है। जिसके मुताबिक ग्रामीण भारत के 8वीं से 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले एक चौथाई छात्र  कक्षा 2 की किताबें भी ठीक से नहीं पढ़ पाते हैं। ASER ने साल 2023 के डाटा बेस पर अपनी सालाना 2024 की "बियॉन्ड बेसिक्स" नाम की रिपोर्ट पेश की है। आपको बता दें कि इस सर्वे रिपोर्ट में हर साल बताया जाता है कि भारत के ग्रामीण इलाके में स्कूल जाने वाले छात्र कितने योग्य हैं। इसके साथ ही उनके पढ़ाई लिखाई का स्तर क्या है। जहां एक तरफ इस रिपोर्ट के खुलासे, ये बता रहे हैं कि लगभग 90% युवाओं के घर में स्मार्टफोन हैं, और ये युवा इसका प्रयोग करना भी जानते हैं। वहीं दूसरी ओर ये भी खुलासा किया गया है कि अगर जल्द से जल्द शिक्षा की गुणवत्ता और निवेश को बढ़ाया न गया, और लोगों को रोजगार न मिला, तो देश का बड़ा तबका गरीबी और अज्ञानता के अंधेरे में गुम हो जायेगा। आइए विस्तार से जानते हैं इसका कारण और इसे दूर करने के उपाय...

सर्वे रिपोर्ट में क्या है- 

आपको बता दें कि प्रथम फाउंडेशन नाम की शिक्षा-केंद्रित गैर-लाभकारी संस्था, की  "बियॉन्ड बेसिक्स" नाम की Annual Status of Education Report-2023 पेश की गई है। जिसमें 26 राज्यों के 28 जिलों में सर्वे के जरिये आंकड़े कलेक्ट किये गए हैं। इस सर्वे में सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह के संस्थानों में नामांकित 14 से 18 वर्ष की आयु के 34745 युवाओं को शामिल किया गया है। सर्वे में युवाओं की गतिविधियों, योग्यता, डिजिटल योग्यता, जागरूकता और आकांक्षाओं से जुड़े प्रश्न शामिल किये गए थे। रिपोर्ट में खुलासा करते हुए बताया गया कि कोरोना जैसी महामारी के बाद भी बच्चों के स्कूल में नामांकन का अनुपात जहां बढ़ा है वहीं कुछ चौकाने वाले खुलासे भी किए गए हैं। 

एक चौथाई छात्र कक्षा 2 की हिंदी पढ़ने में असमर्थ-

इस रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया कि 14 से 18 साल की आयु के लगभग 25 फीसदी छात्र कक्षा 2 के स्तर की हिंदी भी आसानी से नहीं पढ़ पाते हैं। जबकि इसी आयु वर्ग के तकरीबन 42.7 फीसदी स्टू़डेंट्स अंग्रेजी के सेंटेस पढ़ने में असक्षम हैं। यही हाल गणितीय क्षमता में भी रहा। अंकगणित के ग्रेड-3 की समस्या को हल कर पाने वाले बच्चों का प्रतिशत भी 43.3 फीसदी है। 

बुनियादी गणित भी हल नहीं कर पाते ग्राणीण छात्र-

ASER की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण भारत में 14 से 18 साल के युवाओं की पढ़ने और गणित कौशल क्षमता की बात की जाए तो ग्रामीण भारत के 14 से 18 वर्ष की आयु के आधे से अधिक युवा साधारण विभाजन की समस्याओं तक को हल नहीं कर सकते हैं। जबकि ये कौशल आदर्श रूप से कक्षा 4 के छात्रों को सिखाया जाता है। 

केवल 57 प्रतिशत छात्र पढ़ पाते हैं अंग्रेजी वाक्य-

इसके साथ ही सर्वे रिपोर्ट से पता चलता है कि अंग्रेजी, छात्रों के लिए बड़ी चुनौती है। स्कूल में नामांकित छात्रों में से केवल 57.3 फीसदी छात्र ही अंग्रेजी में वाक्य पढ़ सकते हैं। जो लोग अंग्रेजी में वाक्य पढ़ते हैं, उनमें से 73.5 प्रतिशत ही उसका अर्थ बता सकते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि 14 से 16 आयु वर्ग में शामिल 1 चौथाई लोग अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा 2 की किताबें भी धाराप्रवाह ढंग से नहीं पढ सकते हैं।

18 साल के 30 प्रतिशत युवाओं का स्कूलों में नामांकन ही नहीं-

इस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 14 से 18 आयु वर्ग के 86.8 प्रतिशत बच्चे एक शैक्षणिक संस्थान में नामांकित हैं। 14 साल के 3.9 प्रतिशत छात्र स्कूलों में नामांकित नहीं हैं। जबकि 18 वर्षीय युवाओं के लिए ये आंकड़ा 32.6 प्रतिशत है। इसका मतलब  है कि 18 साल के 32.6 प्रतिशत युवा स्कूल में नामांकित नहीं हैं।

आइए शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले विश्वम् फाउंडेशन के संस्थापक यूपी त्रिपाठी से जानते हैं कि आखिर ग्रामीण छात्रों के ऐसे हालत क्यों हैं...

देखिए ASER जो लगातार हर साल अपना सर्वे करता है उसमें एक चीज तो क्लियर सामने आ रही है कि शिक्षा की गुणवत्ता ठीक नहीं हो पा रही है। हालांकि सरकार बड़े प्रयास कर रही है, लेकिन इसके बावजूद इसमें सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। इसमें कहीं न कहीं प्रति बच्चा और शिक्षका रेशियो भी मायने रखता है। इसमें दो चीजे अलग-अलग हैं। जिसमें एक तो छोटे क्लास के बच्चों के लिए जहां पर उनको पढ़ना लिखना नहीं आ रहा है। उससे भी ज्यादा चिंताजनक बात है जो 14-18 साल के बच्चों के बारे में है। उसमें जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ रही है वैसे-वैसे उनका ड्रॉपआउट रेशियो बढ़ रहा है। दूसरी बात जो मुझे लग रही है कि अब समय स्किल का है। ग्रामीण प्रवेश के बच्चों पर 14 साल के होने पर उनके ऊपर कमाई करने का दबाव ज्यादा रहता है। इसलिए इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। जैसे की बच्चों को 8वीं क्लास में ही ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे उसको  तुरंत रोजगार मिल जाए। मतलब रोजगारपरक शिक्षा हो, इससे क्या होगा कि उसका शिक्षा के प्रति रुझान भी बढ़ेगा और इससे बच्चों का ड्रॉपआउट रेशियो भी कम होगा। 

शैक्षिक असफलता के पीछे का कारण-

हमारे सामने ये सवाल उठता है कि इस तरह की शैक्षिक असफलता के पीछे कारण क्या है। दरअसल भारत में प्राथमिक शिक्षा को पिछले कई दशकों से लगातार अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी, कम नामांकन दर, लैंगिक असमानता, शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों के मोटिवेशन बनाए रखने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा रहा है। इसके अलावा शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत, नो-डिटेंशन पॉलिसी लाई गई। जिसके बाद से छात्रों के कक्षा 1 से 8 तक की प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक उन्हें न तो फेल किया जा सकता है और न ही स्कूल से निष्कासित किया जा सकता है। इस तरह से सभी छात्र पारंपरिक परीक्षाओं का सामना किए बिना अगली कक्षा में प्रगति करते रहें हैं। जिसके चलते कमजोर छात्र आगे की कक्षाओं में तो बढ़ते गए लेकिन उनके ज्ञान में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। 

गरीबी और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर-

भारत में, एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है। जिनके लिए आस-पास के क्षेत्रों में स्कूल न होने के कारण बच्चों की पढ़ाई माता-पिता के लिए बोझ हो जाती है। इस तरह से गरीबी और ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों की ख़राब स्थितियां कई सारी समस्यायों को जन्म देती हैं। इन सभी समस्याओं के समाधान की बात करें तो सबसे पहले बड़े लेवल पर रोजगार का गठन किया जाना चाहिए। जिससे आगे आने वाली पीढ़ियों को गरीबी या किसी एक कक्षा में फेल होने पर उन्हें स्कूल न छोड़ना पड़े। 

डिजिटल एजुकेशन को दिया जाए बढ़ावा-

गौरतलब है कि ASER रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि लगभग 90% युवाओं के घर में स्मार्टफोन हैं, और उतने ही युवा इसका प्रयोग करना जानते हैं। अब स्मार्टफोन से रिकॉर्डेड कक्षाओं और ऑनलाइन शिक्षा के लिए अवेरनेस फैलाई जाए तो साक्षरता दर बढ़ सकती है। इसके साथ-साथ पार्ट टाइम एजुकेशन की भी व्यवस्था शुरू की जानी चाहिए। जिससे बच्चे काम करने के बाद भी स्कूल जा सकें। गैर-साक्षरता की लगातार बढ़ती दर को रोकने के लिए साक्षरता कक्षाएं शुरू की जा सकती हैं। साथ ही इन कक्षाओं में प्रौढ़ शिक्षा की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। 

 

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