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आजकल 8 से 10 साल की बच्चियों में जल्दी पीरियड्स और प्यूबर्टी के लक्षण देखने को मिल रहे हैं, जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर गहरा असर डाल सकते हैं। जब शारीरिक बदलाव अत्यधिक जल्दी होते हैं, तो यह न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक तनाव और भावनात्मक असंतुलन भी उत्पन्न कर सकता है। इस मुद्दे पर गहरी समझ और सावधानी से काम करना आवश्यक है ताकि बच्चों का विकास सही तरीके से हो सके।
क्या है पीरियड्स आने की सही उम्र?
आमतौर पर लड़कियों में हार्मोन, शारीरिक संरचना और जीन की भूमिका के आधार पर पीरियड्स शुरू होने की उम्र तय होती है, और इस पर कोई एक तय उम्र निर्धारित नहीं की जा सकती। हालांकि, डॉक्टरों के अनुसार, 10 में से 8 लड़कियों को 10 से 15 साल की उम्र के बीच पहला पीरियड होता है। लेकिन हाल के वर्षों में, 6 से 9 साल की कम उम्र की बच्चियों में भी पीरियड्स शुरू होने के मामले तेजी से बढ़े हैं, जो चिंता का विषय बनता जा रहा है।
क्या होती है प्यूबर्टी?
प्यूबर्टी, जिसे हिंदी में किशोरावस्था की शुरुआत भी कहा जाता है, एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें लड़के और लड़कियों के शरीर में महत्वपूर्ण बदलाव होने लगते हैं। इस दौरान उनके प्रजनन अंग विकसित होने लगते हैं और शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक परिवर्तन देखे जाते हैं। आमतौर पर लड़कियों में प्यूबर्टी 8 से 13 साल और लड़कों में 9 से 14 साल की उम्र के बीच शुरू होती है। हाल के वर्षों में, लड़कियों में समय से पहले प्यूबर्टी के मामलों में वृद्धि देखने को मिली है, जिससे बच्चों के शरीर और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। इस प्रक्रिया के कारण बच्चियां अपनी उम्र से अधिक परिपक्व दिखने लगती हैं, जो कभी-कभी तनाव और सामाजिक दबाव का कारण भी बनता है।
तेजी से बढ़ रहे हैं मामले-
बच्चियों में कम उम्र में प्यूबर्टी शुरू होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जो स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बन गए हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि पहले, लड़कियों में शारीरिक बदलाव के शुरुआती संकेत दिखने के बाद आमतौर पर 18 महीने से 3 साल के भीतर पीरियड्स शुरू होते थे। लेकिन अब यह प्रक्रिया केवल तीन से चार महीने में पूरी हो रही है।
क्या हो सकते हैं संभावित कारण?
इसके संभावित कारणों में नाक और मुंह के जरिए कीटनाशकों का शरीर में प्रवेश, बढ़ता मोटापा, मोबाइल और टीवी का अत्यधिक उपयोग, और जेनेटिक डिसऑर्डर शामिल हैं। इसके अलावा, बच्चों के आहार में प्रोसेस्ड फूड, जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक्स का अधिक सेवन भी एक बड़ा कारक है। इनमें मौजूद केमिकल और प्रिजर्वेटिव्स हार्मोनल असंतुलन पैदा कर सकते हैं, जो प्यूबर्टी को समय से पहले ट्रिगर करने का काम करते हैं।
कैसे करें बचाव-
1. हार्मोनल असंतुलन के कारण: एनिमल फैट से बचें
शोधों में यह पाया गया है कि यदि 3 से 7 साल की उम्र के बच्चों को अधिक मात्रा में एनिमल फैट (जैसे मांस, घी, मक्खन) दिया जाए, तो इससे उनके शरीर में हार्मोनल असंतुलन उत्पन्न हो सकता है। इससे जल्द प्यूबर्टी के संकेत दिखने लगते हैं। बच्चों को पौधों से प्राप्त फैट्स जैसे ओलिव ऑयल, नट्स, और एवोकाडो का सेवन कराना अधिक फायदेमंद है। यह उन्हें पोषण भी प्रदान करता है और शरीर को जरूरी ऊर्जा भी मिलती है।
2. दूध और दूध उत्पादों में छुपे खतरे
बाजार में मिलने वाले कई प्रकार के दूध और दूध उत्पादों में हार्मोनल इंजेक्शन का प्रयोग किया जाता है, खासकर जानवरों को अधिक दूध देने के लिए। ये हार्मोन बच्चे के शरीर में मिलकर जल्दी प्यूबर्टी का कारण बन सकते हैं। बच्चों को अच्छे और प्राकृतिक स्रोतों से दूध और दूध उत्पाद जैसे ऑर्गेनिक दूध, दही, और घी देना चाहिए और इनकी खपत पर नियंत्रण रखना जरूरी है।
3. शुगर और मीठे खाद्य पदार्थों का सेवन कम करें
बच्चों में शुगर और मीठे खाद्य पदार्थों का अत्यधिक सेवन से शरीर में ग्लूकोज का असंतुलन उत्पन्न हो सकता है, जो मोटापे, डायबिटीज और हार्मोनल असंतुलन का कारण बन सकता है। शुगर का अधिक सेवन जल्दी प्यूबर्टी के जोखिम को बढ़ा सकता है। इसलिए, बच्चों को मीठे और प्रोसेस्ड फूड से दूर रखें और ताजे फल, नट्स, और साबुत अनाज पर ध्यान केंद्रित करें।
4. जंक फूड: सेहत के दुश्मन
जंक फूड जैसे चिप्स, बर्गर, पिज़्ज़ा, और फ्रेंच फ्राई में उच्च मात्रा में वसा, चीनी और सोडियम होते हैं, जो न केवल बच्चों के वजन को बढ़ाते हैं, बल्कि उनके हार्मोनल संतुलन को भी प्रभावित करते हैं। बच्चों को पोषण से भरपूर संतुलित आहार देने की आदत डालें, जिसमें ताजे फल, हरी सब्जियां और साबुत अनाज शामिल हों।
5. शारीरिक गतिविधियों का महत्व
आजकल के बच्चों का ज्यादातर समय स्क्रीन पर बीतता है, जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए हानिकारक है। शारीरिक गतिविधियाँ जैसे खेल, दौड़, योग, और अन्य एक्सरसाइज बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होती हैं। कम से कम 45-60 मिनट की दैनिक शारीरिक गतिविधियाँ बच्चों के हार्मोनल संतुलन को बनाए रखने में मदद करती हैं और जल्दी प्यूबर्टी के लक्षणों को नियंत्रित करती हैं।
6. स्क्रीन टाइम और कंटेंट की निगरानी करें
टीवी, मोबाइल, और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने से बच्चों पर मानसिक दबाव बढ़ सकता है। एडमिट कंटेंट, हिंसा या यौन विषयों से जुड़ी सामग्री से बच्चों का संपर्क न होने दें। शैक्षिक और मनोरंजन से जुड़ा कंटेंट उन्हें देखने के लिए प्रोत्साहित करें, जिससे उनका मानसिक विकास सही दिशा में हो सके।
7. हाइजीन की महत्वता
जब बच्चियों में जल्दी प्यूबर्टी के लक्षण दिखने लगे, तो उन्हें हाइजीन के महत्व के बारे में जागरूक करना बहुत जरूरी है। सही व्यक्तिगत स्वच्छता न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखती है, बल्कि यह मानसिक रूप से भी उन्हें तैयार करती है। इससे संक्रमण और अन्य शारीरिक समस्याओं का खतरा कम होता है, और बच्चियों को अपने शरीर को समझने और उसे स्वीकार करने में मदद मिलती है।
8. मानसिक स्थिति पर ध्यान दें
शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास पर भी ध्यान देना जरूरी है। प्यूबर्टी के दौरान मानसिक तनाव, भावनात्मक अस्थिरता और आत्म-संकोच बढ़ सकता है। बच्चों को मानसिक रूप से तैयार करना, उन्हें अपनी भावनाओं को समझने और व्यक्त करने के तरीके सिखाना आवश्यक है। साथ ही, माता-पिता और अभिभावकों का समर्थन और प्रोत्साहन उनके आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
बच्चों का समग्र विकास-
बच्चियों में जल्दी प्यूबर्टी और हार्मोनल असंतुलन को रोकने के लिए संतुलित आहार, शारीरिक गतिविधियाँ और मानसिक देखभाल पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। इससे न केवल उनका शारीरिक विकास सही समय पर होता है, बल्कि वे मानसिक और भावनात्मक रूप से भी सशक्त बनती हैं। यदि अभिभावक इन पहलुओं का ध्यान रखते हैं, तो वे बच्चों के समग्र और संतुलित विकास को सुनिश्चित कर सकते हैं, और उन्हें स्वस्थ जीवन की दिशा में मार्गदर्शन कर सकते हैं।
Baten UP Ki Desk
Published : 12 December, 2024, 7:37 pm
Author Info : Baten UP Ki