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मुजफ्फरनगर में दारा सिंह का चलेगा दांव या बालियान लगाएंगे हैट्रिक?

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(Special Story) 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए महासमर शुरू हो चुका है। जिसमें उत्तर प्रदेश अपनी अहम भूमिका निभाने वाला है। सबकी नजरें यूपी की 80 सीटों पर हैं। इन सीटों में कुछ सीटें ऐसी हैं जो बेहद चर्चित हैं ऐसी ही एक पश्चिमी यूपी की लोकसभा सीट है मुज्जफरनगर, जहां का मुकाबला साल 2013 में हुए दंगों के बाद से बेहद रोचक और सुर्खियों में रहा है। इस बार इस लोकसभा सीट पर एनडीए (बीजेपी व रालोद) और I.N.D.I.A. के साथ ही बसपा के उम्मीदवार के बीच मुकाबला बताया जा रहा है। आइए विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं इस सीट के सियासी समीकरण ...

मुजफ्फरनगर का इतिहास-

मुजफ्फरनगर के इतिहास की बात की जाए तो सरवट गांव को परगना के रूप में जाना जाता था। फिर मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने सरदार सय्यैद मुजफ्फर खान को इस क्षेत्र को जागीर के रूप में दे दिया था। मुजफ्फर खान ने साल 1633 में खेरा और सूज्डू को मिलाकर एक नए शहर की स्थापना की। उनके बेटे मुनवर लाशकर ने अपने पिता के नाम पर शहर का नाम रखा मुजफ्फरनगर। यह सहारनपुर डिवीजन का हिस्सा है। इस इलाके को 'भारत का सुगर बाउल' भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर गन्ने की खेती खूब होती है। इसके साथ ही मुजफ्फरनगर में काली नदी के पश्चिम में गांव मांडी (तहसील सड़) से मिले पुरातात्विक स्थल इसका आस्तित्व हड़प्पा सभ्यता से जोड़ते हैं। यह जिला महाभारत काल के दौरान गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था।  

मुजफ्फरनगर सीट पर की राजनैतिक स्थिति-

भारतीय जनता पार्टी के केंद्र में 2014 में आने के साथ ही यहां पर लगातार बीजेपी अजेय बनी हुई है। 2019 के संसदीय चुनाव में बीजेपी के संजीव कुमार बालियान ने प्रदेश के कद्दावर नेता और राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक अजित सिंह को कांटेदार मुकाबले में हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया था। बालियान ने 6,526 मतों के अंतर से यह मुकाबला जीता था। 2019 के चुनाव में जहां बालियान को 5,73,780 वोट मिले थे तो वहीं अजित सिंह को 5,67,254 वोट मिले थे। इससे पहले 2014 के संसदीय चुनाव में संजीव कुमार बालियान ने बीएसपी के उम्मीदवार को बेहद आसान मुकाबले में 4,01,150 मतों के अंतर से हराया था। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भले ही पिछले 10 साल से बीजेपी का कब्जा बना हुआ हो, लेकिन यहां की 5 विधानसभा सीटों  पर किसी भी एक दल का दबदबा नहीं रहा है। करीब 2 साल पहले 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जोर का झटका लगा था। इन 5 सीटों में से उसे महज एक ही सीट पर जीत हासिल हुई थी। जबकि राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी ने 2-2 सीटों पर जीत हासिल की थी।  विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन था और रिजल्ट में भी इसका असर दिखा। 

इस बार किसके बीच में टक्कर-

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने  इस बार भी अपने भरोसेमंद चेहरे और केंद्रीय मंत्री संजीव बलियान (Sanjeev Balyan) पर भरोसा जताते हुए उन्हें मैदान में उतारा है। वहीं I.N.D.I.A. गठबंधन से समाजवादी पार्टी (SP) के चुनाव चिन्ह पर मुजफ्फरनगर के कद्दावर नेताओं में शुमार हरेंद्र मलिक मैदान में हैं। तो वहीं  बीएसपी ने इस हॉट सीट से रियल एस्टेट कारोबारी दारा सिंह प्रजापति (Dara Singh Prajapati) को चुनावी मैदान में उतारा है। इस इस लोकसभा सीट पर इन्ही तोनों के बीच दमदार मुकाबला होने की उम्मीद जताई जा रही है। 

कौन हैं बीजेपी के उम्मीदवार संजीव बलियान-

बीजेपी ने 2014 और 2019 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए संजीव बालियान (Sanjeev Balyan) को तीसरी बार भी अपना प्रत्याशी घोषित किया है। संजीव बालियान का जन्म 23 जून 1972 को जनपद मुजफ्फरनगर के गांव कुटबी में हुआ था। संजीव बालियान को पढ़ाई के सयम से ही राजनीति में रुचि रही है। वह एक अच्छे छात्र नेता भी रहे हैं। संजीव बालियान ने चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हिसार से पशु चिकित्सा विज्ञान में BVSc और एनिमल हसबेंडरी, MVSc से डिग्री हासिल की है। 
वर्ष 2012 में बालियान ने राजनीति में कदम रखा। उन्हें  2013 में मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान जेल भी जाना पड़ा था और फिर 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा से मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से टिकट पाने में कामयाब रहे और लगभग साढ़े चार लाख वोटों से जीत हासिल की। बालियान को मई 2014 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में कृषि और खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। फिर, जुलाई 2016 में उन्हें मंत्री उमा भारती के अधीन रहे जल संसाधन, नदी विकास और गंगा  संरक्षण राज्य मंत्री बनाया गया। सितंबर 2017 में उनसे मंत्रालय वापस ले लिया गया था। 2019 में मोदी सरकार में फिर उन्हें राज्य मंत्री बनाया गया।

कौन हैं सपा के उम्मीदवार हरेंद्र मलिक -

हरेंद्र मलिक जनपद मुजफ्फरनगर के कद्दावर नेताओं में गिने जाते हैं। उनके पास विधानसभा और लोकसभा के 9 चुनाव खुद लड़ने और 4 चुनाव अपने बेटे पंकज मलिक को लड़ाने का तजुर्बा है। हरेंद्र मलिक (Harendra Malik) खतौली और बागरा विधानसभा से कई बार विधायक बनें जिसके बाद 1996 में किसान कामगार पार्टी जो अब राष्ट्रीय लोकदल के नाम से जानी जाती है, से चुनाव हारे। वर्ष 1998, 1999, 2009 में मुजफ्फरनगर से तो साल 2019 में कैराना लोकसभा सीट से सांसद का चुनाव हारे और फिर 2002 में हरेंद्र मलिक को हरियाणा की इनेलो पार्टी से राज्यसभा सदस्य बनाया गया। अब 2024 में मुजफ्फरनगर लोकसभा से सपा व कांग्रेस के I.N.D.I.A. गठबंधन से चुनाव मैदान में हैं।

कौन हैं बसपा प्रत्याशी दारा सिंह प्रजापति-

प्रजापति समाज के नेता दारा सिंह प्रजापति (Dara Singh Prajapati) ने उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से बसपा प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल किया है। मेरठ में रक्षापुरम कालोनी निवासी दारा सिंह प्रजापति की उम्र 55 साल हैं। पत्नी कमलेश, बेटी नेहा प्रजापति और एक बेटा ऋषभ प्रजापति हैं। इनके खिलाफ कमिश्नरी कार्यालय में मेरठ धरने के दौरान भड़काऊ भाषण देने और विकास प्राधिकरण मेरठ की ध्वस्तीकरण कार्यवाही को रोकने संबंधित मामले दर्ज हैं। इसके साथ ही पिछले दिनों प्रजापति समाज को सामाजिक हक दिलाने के लिए हरिद्वार से गाजियाबाद तक एक स्वाभिमान यात्रा निकाली गयी थी जिस पर गाजियाबाद में लाठीचार्ज हुआ था। इस दौरान भी दारा सिंह चर्चाओं में आए थे। 

मुस्लिम आबादी के बावजूद नहीं कोई प्रत्याशी-

हैरत की बात ये है कि मुजफ्फरनगर लोकसभा पर 18 लाख की आबादी में से 6 लाख मुस्लिम वोटर हैं इसके बावजूद भी किसी पार्टी ने यहां पर अपना मुस्लिम कैंडीडेट मैदान में नहीं उतारा है। इसके साथ ही किसी मुस्लिम प्रत्याशी ने निर्दलीय नामांकन भी नहीं किया है। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर इस बार सपा, बसपा और भाजपा सहित 11 प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें एक भी मुस्लिम नहीं है। ये हालात तब हैं, जब 1967 के बाद से मुजफ्फरनगर सीट पर कई मुस्लिम नेता सांसद चुने जा चुके हैं। इनमें लताफत अली खां, मुफ्ती मोहम्मद सईद और कादिर राना सरीखे मुस्लिम नेता शामिल हैं।  हालांकि 2013 में हुए सांद्रायिक दंगे के बाद से जिले की सियासत में जमीन-आसमान का अंतर आया है। 

दंगे के बाद मुस्लिम राजनीति में आई गिरावट-

मुजफ्फरनगर जिले में 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगे के बाद मुस्लिम राजनीति में काफी बदलाव देखा गया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कादिर राना मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ थे लेकिन वह हार गए। 2017 विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम विधानसभा चुनाव नहीं जीता था। यही हाल 2022 में भी रहा। वर्ष 2022 के चुनाव में सपा-रालोद गठबंधन ने जिले की छह में से एक भी सीट पर मुस्लिम को टिकट नहीं दिया था। इस बार भी ना ही किसी पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया और ना ही कोई मुस्लिम उम्मीदवार निर्दलीय ही मैदान में आया।

18 लाख मतदाता करेंगे किस्मत का फैसला-

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के वोटरों की अंतिम सूची जिला प्रशासन ने आयोग को भेज दी है जिसके मुताबिक लोकसभा सीट पर 18 लाख 16 हजार 284 मतदाता हैं। इनमें 144 थर्ड जेंडर मतदाता हैं। इन मतदाताओं में 968265 पुरुष और 847875 महिला मतदाता हैं। सबसे ज्यादा वोट बुढ़ाना विधानसभा क्षेत्र में तीन लाख 96 हजार 966 हैं। इनमें पुरुष मतदाता दो लाख 12 हजार 807 हैं। महिला मतदाता एक लाख 84 हजार 152 हैं। सबसे कम वोट खतौली विधानसभा क्षेत्र में तीन लाख 31 हजार 34 हैं। सात थर्ड जेंडर मतदाता हैं। इनमें पुरुष मतदाता एक लाख 75 हजार 314 हैं और महिला मतदाता एक लाख 55 हजार 699 है। यहां 21 वोट थर्ड जेंडर के हैं। सभी पांचों विधानसभा क्षेत्रों में पुरुष मतदाताओं की संख्या महिला मतदाताओं की संख्या से अधिक है।
मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में 140 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। इन मतदान केंद्रों पर 319 मतदेय स्थल हैं।
विधानसभावार मतदाताओं की संख्या-



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