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मतदान लोगों का अधिकार लेकिन उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर कैसे करें मतदान?

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देशभर में लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। कहते हैं कि देश की सत्ता में उत्तर प्रदेश का बड़ा योगदान रहता है। हो भी क्यों न उत्तर प्रदेश ने अभी तक देश को 9 प्रधानमंत्री दिए हैं। देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यूपी की वाराणसी सीट से सांसद हैं। इसलिए यूपी की 80 सीटों पर हर पार्टी की नज़र है। सभी पार्टियां यूपी की सीटों पर जीत हासिल कर केंद्र की सत्ता तक पहुंचना चाहती हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब यहां के सभी वोटर अपने मतदान का प्रयोग करें। यूपी के तराई इलाकों में रहने वाले मतदाता जो अप्रवासी मजदूर हैं उनकी लोकसभा में मतदान को लेकर अलग समस्या है। वो मतदान तो करना चाहते हैं लेकिन घर से दूर रहकर रोजी-रोटी कमाने गए इन मजदूरों को वोटिंग के लिए घर आने में आर्थिक तंगी आढ़े आ रही है। इसलिए वो चाहकर भी ऐसा करने में मजबूर हैं। 

क्या इतने फीसदी लोग नहीं कर पाएंगे मतदान-

उत्तर प्रदेश के तराई और पूर्वांचल जिलों के गांवों में प्रवासी मजदूर काम के लिए घर छोड़ कर पड़ोसी राज्यों में जाते हैं। त्योहारी सीजन के लिए मार्च में उनकी वापसी होती है। इसके बाद फिर से यह लोग धीरे-धीरे अपने काम की जगहों पर लौटते हैं। अप्रैल और जून 2024 के बीच यूपी में 7 चरणों के तहत मतदान होना है। ऐसे में माना जा रहा है कि राज्य के मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा महत्वपूर्ण चुनावी प्रक्रिया के दौरान अनुपस्थित रहेगा। 2019 के लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो उसमें उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर कुल 146.1 मिलियन मतदाता थे, जिनमें से कुल 86.5 मिलियन (59.21 फीसदी ) मतदाताओं ने वोट डाला था। इस बार 2024 चुनाव में 98 करोड़ मतदाता वोट डालने वाले हैं जिसमें 47 करोड़ महिला और पुरुष मतदाताओं 49 करोड़ हैं। एक अनुमान के मुताबिक इनमें से 3.5 से 4 मिलियन मतदाता प्रवासी श्रमिक हैं, जो मुख्य रूप से तराई और पूर्वांचल जैसे क्षेत्रों में रहते हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी अनुपस्थिति से मतदान प्रतिशत पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। उत्तर प्रदेश के प्रवासियों के लिए घर से दूर रहने का यह प्रमुख समय है। वे केवल धान रोपाई के मौसम में घर वापस लौटते हैं।

कम वेतन और आर्थिक तंगी है वजह-
    
ऐसा नहीं है कि प्रवासी मजदूर अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं वह भी सबकी तरह वोट डालना चाहते हैं लेकिन उनके सामने आर्थिक मजबूरी है घर से कई किलोमीटर दूर रहकर वो चाहकर भी जल्दी घर वापस नहीं हो पाते हैं क्योंकि घर आने-जाने में उनका काफी पैसा लग जाता है। इसके साथ ही उतने दिनों की उनको छुट्टी लेनी पड़ेगी जिसका पैसा भी नहीं मिलेगा। ऐसे में अधिकतर प्रवासी मजदूर चाहकर भी मतदान में शामिल नहीं हो पाते हैं। 

मैं देना चाहता हूं वोट-

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के राम औतार जो प्रवासी मजदूर के तौर पर राज्य से बाहर काम करने जाते हैं उनका कहना है कि -“हर कोई वोट देना चाहता है। मैं वास्तव में वोट देने के लिए उत्सुक हूं, यह मेरा मौलिक अधिकार है, लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से मुझे नहीं लगता कि मैं इस बार भी मैं ऐसा कर पाऊंगा। 2019 के चुनाव में मैं चाह कर ऐसा नहीं कर पाया था। ये अकेले नहीं हैं ऐसे तमाम लोग हैं जिनकी यह समस्या है। 

 

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