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(Special Story) लोकसभा चुनाव 2024 का आगाज हो चुका है। पहले चरण की आठ सीटों के लिए नामांकन भी दाखिल किए जा चुके हैं। इन आठ सीटों में एक सीट है पीलीभीत जिसका सियासी वजूद प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में है। उत्तराखंड के पहाड़ों से सटे इस जिले पर भाजपा का लंबे समय से कब्जा रहा है। पीलीभीत लोकसभा सीट प्रदेश के उन संसदीय सीटों में से एक है जहां पर गांधी-नेहरू परिवार का जलवा रहा है, हालांकि यहां पर इस परिवार का नाता बीजेपी के साथ है। इस सीट पर पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी चुनी जाती रहीं फिर उनके बेटे वरुण गांधी यहां से सांसद बने। इस लोकसभा का चुनावी गणित क्या है? इस सीट का इतिहास क्या रहा है? कैसा है पीलीभीत का राजनीतिक ताना-बाना? जैसे तमाम सवालों पर आइए विस्तार से जानते हैं।
इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने वरुण गांधी को पीलीभीत सीट से प्रत्याशी नहीं बनाया है, लेकिन उनकी मां मेनका गांधी को सुल्तानपुर सीट से प्रत्याशी बनाया है।
पीलीभीत की भौगोलिक स्थिति-
नेपाल की सीमा पर हिमालय के उप बेल्ट में स्थित पीलीभीत क्षेत्र रुहेलखंड क्षेत्र के अहम जिलों में शुमार है।हिमालय के बेहद करीब होने के बाद भी यहां की जमीन समतल है उत्तर की ओर से जिला उधमसिंह नगर और नेपाल का क्षेत्र पड़ता है तो दक्षिण में शाहजहांपुर जिला आता है और पश्चिम की ओर बरेली जिला है। पीलीभीत संसदीय सीट के तहत बहेड़ी, बरखेड़ा, बीसलपुर, पूरनपुर और पीलीभीत विधानसभा सीटें आती हैं।
मेनका गांधी ने बनाई मजबूत पकड़-
वरुण गांधी के पिता संजय गांधी के निधन के बाद उनकी मां मेनका गांधी ने पीलीभीत लोकसभा सीट को अपने मजबूत दुर्ग के तौर पर स्थापित किया। साल 1989 से मेनका गांधी पीलीभीत से चुनाव लड़ रही हैं, जबकि वरुण गांधी ने साल 2009 और 2019 यहां से जीत दर्ज की है। वरुण गांधी 2014 में सुल्तानपुर से सांसद चुने गए थे।
मेनका ने पीलीभीत को बनाया सियासी अखाड़ा-
* साल 1989 में जनता दल के टिकट पर पीलीभीत सीट से चुनावी मैदान में उतरीं तो तराई के लोगों ने मेनका को सिर-आंखों पर बैठाया। वो जीतकर संसद पहुंचीं, लेकिन 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में हार गईं।
* मेनका गांधी ने 1996 में जनता दल से चुनाव लड़कर हिसाब बराबर किया था। इसके बाद मेनका ने 1998 और 1999 में पीलीभीत सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीतीं। और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रहीं। साल 2004 में मेनका गांधी ने पीलीभीत लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की। जब उनके बेटे वरुण गांधी ने सियासत में आने का फैसला किया तो मेनका ने पीलीभीत सीट छोड़ दी।
वरुण गांधी की पीलीभीत में एंट्री-
साल 2009 में वरुण गांधी पीलीभीत लोकसभा सीट से सांसद चुने गए वहीं मेनका गांधी आंवला सीट से संसद पहुंची। 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने वरुण गांधी को सुल्तानपुर से और मेनका गांधी को पीलीभीत से टिकट दिया। और मां-बेटे दोनों ही इस चुनाव में सफल रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर से दोनों की सीट बदल दी गई जिसमें बीजेपी ने वरुण गांधी को पीलीभीत से तो मेनका गांधी को सुल्तानपुर से प्रत्याशी बनाया। इस बार भी दोनों जीतने में सफल रहे।
साल 2019 के लोकसभा परिणाम-
पीलीभीत लोकसभा सीट से भाजपा के वरुण गांधी 704549 वोटों के साथ चुनाव जीते। पीलीभीत लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार गुप्ता और सपा से हेम राज वर्मा को हार मिली है।
पीलीभीत सीट का संसदीय इतिहास
पीलीभीत लोकसभा सीट पर 1990 के बाद से बीजेपी का ज्यादातर कब्जा रहा है। 1952 के चुनाव में यहां से कांग्रेस ने जीत से शुरुआत की थी, लेकिन वह अब तक महज 4 बार ही चुनाव में जीत सकी है। इसके बाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर मोहन स्वरूप ने जीत की हैट्रिक लगाई। फिर वह कांग्रेस के टिकट पर 1971 का चुनाव लड़े और जीत हासिल की। 1977 में हुए चुनाव में पीलीभीत सीट पर खास परिणाम देखने को मिला था। इस चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर नवाब शमशुल हसन खान को जीत मिली थी। साल 1980 में हरीश कुमार गंगवार तो 1984 में कांग्रेस के भानुप्रताप सिंह सांसद बनने में कामयाब रहे थे। लेकिन 1989 के चुनाव के बाद में पीलीभीत सीट का इतिहास बदल गया।
पीलीभीत का राजनीतिक ताना-बाना
पीलीभीत लोकसभा की सीमाएं नेपाल और उत्तराखंड से जुड़ी है। लखीमपुर, शाहजहांपुर और बरेली इसके पड़ोसी जिले हैं। बहेड़ी क्षेत्र छोड़ के पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र की आबादी 25 लाख के आस पास है और वोट 18 लाख से ज्यादा है जातिगत आंकड़ों पर नजर डाले तो 5 लाख के आस पास मुस्लिम, किसान 3 से 4 लाख के बीच और कुर्मी वोट लगभग 2 लाख है।इस संसदीय सीट पर करीब 25 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है, ऐसे में यहां पर मुस्लिम वोटर्स का खासी अहमियत रही है। साथ ही यहां अनुसूचित जाति की करीब 17 फीसदी आबादी रहती है।
Baten UP Ki Desk
Published : 29 March, 2024, 5:07 pm
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