नारीवाद का इतिहास एक लंबे संघर्ष का प्रतीक है, जिसकी शुरुआत 1837 में चार्ल्स फूरियर द्वारा गढ़े गए "फेमिनिज्म" शब्द से होती है। उस समय, महिलाओं की स्थिति अत्यंत खराब थी, और नारीवाद का मुख्य उद्देश्य उन्हें अधिकार और स्वतंत्रता दिलाना था। लेकिन आज के समय में, नारीवाद के कई जटिल पहलू सामने आ रहे हैं, जो इसे एक नई दिशा में ले जा रहे हैं।
नारीवाद के धड़े: विचारधारा में विभाजन-
समय के साथ नारीवाद के कई धड़े उभरे हैं, जैसे कट्टरपंथी नारीवाद, मार्क्सवादी नारीवाद और उदारवादी नारीवाद। प्रत्येक धड़े ने समाज में अपनी एक पहचान बनाई है। लेकिन क्या आज का नारीवाद अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है? कुछ आलोचकों का मानना है कि वर्तमान नारीवाद, विशेष रूप से कुछ रूपों में, पुरुषों के खिलाफ एक आंदोलन में परिवर्तित हो गया है।
ग्लोरिया स्टाइनम की दृष्टि: नारीवाद का असली मतलब-
सिमोन द ब्यूवार के बाद, ग्लोरिया स्टाइनम एक प्रमुख नारीवादी चेहरा बनकर उभरीं। उन्होंने "Ms. Magazine" के माध्यम से महिलाओं के अधिकारों की आवाज उठाई। लेकिन क्या उन्होंने कभी यह कहा कि नारीवाद का मतलब अपनी गृहस्थी को नष्ट करना है? वास्तव में, जब उन्हें किसी अनकंफर्टेबल स्थिति का सामना करना पड़ा, तो उन्होंने चुपचाप उस जगह से दूरी बना ली। यह दर्शाता है कि नारीवाद का सही मतलब क्या होना चाहिए।
नारीवाद का विकृत रूप: एक नई बहस
आज, कुछ नारीवादियों द्वारा दिए जाने वाले तर्क जैसे कि गृह कार्य के लिए महिलाओं को वेतन मिलना चाहिए, एक नई बहस का विषय बन गए हैं। जब देश की अधिकांश आबादी महंगाई के दौर से गुजर रही है, तो क्या यह तर्क व्यावहारिक है? क्या इस तरह के तर्क वास्तव में नारीवाद के लक्ष्यों की सेवा करते हैं या यह सिर्फ एक मानसिकता है जो सामाजिक दायित्वों को नकारती है?
संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता-
नारीवाद का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना और समानता की दिशा में आगे बढ़ाना है, लेकिन इसके विकृत रूपों पर विचार करने की आवश्यकता है। आज का नारीवाद एक नई दिशा की मांग कर रहा है, जिसमें न केवल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जाए, बल्कि समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चला जाए।
क्या हम एक संतुलित और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण विकसित कर सकते हैं, जो नारीवाद के मूल्यों का सम्मान करे, जबकि पुरुषों की भूमिका और प्रयासों को भी नज़रअंदाज़ न करे? यह सवाल आज के नारीवाद की सबसे बड़ी चुनौती है