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क्या है खाद्य सुरक्षा कानून 2006 जिसके प्रयोग से योगी सरकार ने 2024 में देश प्रदेश में मचा रखा है हंगामा?

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इन दिनों यूपी में नेमप्लेट को लेकर खासा हंगामा मचा हुआ है क्योंकि खाने-पीने की दुकानों के सामने नाम और पहचान लिखने का आदेश दिया गया। इस आदेश के आते ही राजनीति गरम हो गई। लेकिन यह कोई नया कानून नहीं है बल्कि इसकी नींव तो बहुत पहले पड़ चुकी थी। दिलचस्प बात तो यह है कि योगी सरकार के जिस आदेश को लेकर विपक्ष हमलावर है वह उसका सूत्रधार ही नहीं है बल्कि यह कानून तो कांग्रेस के जमाने का है। आखिर क्या है ये कानून और योगी सरकार का क्या आदेश था? कब पारित हुआ जैसे तमाम सवाल आइए विस्तार से जानते हैं।  

किस आदेश के बाद मचा घमासान-

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा को लेकर बीते गुरुवार को कांवड़ रूट की सभी दुकानों पर नेम प्लेट लगाने का आदेश दिया था। आदेश में कहा गया था कि कांवड़ मार्गों पर खाद्य पदार्थों की दुकानों पर ‘नेमप्लेट’ लगानी होगी। दुकानों पर मालिक का नाम और पता लिखना अनिवार्य होगा। दरअसल, यह फरमान पहले मुजफ्फरनगर के लिए जारी किया था, लेकिन गुरुवार को सीएम योगी ने इसे पूरे प्रदेश के लिए लागू कर दिया। इसके बाद इस पर घमासान मच गया। अब आइए जानते हैं कि नेमप्लेट को लेकर क्या कानून है?

क्या है खाद्य सुरक्षा कानून?

दुकानों पर नाम लिखने का नियम नया नहीं है। खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के मुताबिक, होटलों, रेस्टोरेंट, ढाबों और ठेलों समेत भी सभी भोजनालयों के मालिकों के लिए अपना नाम, फर्म का नाम और लाइसेंस नंबर लिखना अनिवार्य है। ‘जागो ग्राहक जागो’ योजना के तहत नोटिस बोर्ड पर मूल्य सूची भी लगाना जरूरी है। अधिनियम कहता है कि अगर दुकानदार के पास फूड लाइसेंस नहीं है और वह सामान बेच रहा है तो उस पर दस लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

किसकी सरकार में बना था कानून?

नेम प्लेट को लेकर यूपीए की सरकार में कानून बना था। खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के मुताबिक, होटलों, रेस्टोरेंट, ढाबों और ठेलों समेत भी सभी भोजनालयों के मालिकों के लिए अपना नाम, फर्म का नाम और लाइसेंस नंबर लिखना अनिवार्य है। ‘जागो ग्राहक जागो’ योजना के तहत नोटिस बोर्ड पर मूल्य सूची भी लगाना जरूरी है।

इस कानून के समय यूपी में किसकी थी सरकार-

इस आदेश के आने के बाद विपक्षी नेता भले ही सीएम योगी के आदेश पर सपा चीफ अखिलेश यादव और कांग्रेस जमकर निशाना साध रहे हों लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने 2006 में ही इस नियम को लागू किया था। बता दें कि जिस आदेश पर बवाल है वो मुलायम सिंह की सरकार में ही लागू हो गया था। केंद्र में यूपीए की सरकार के समय ये बिल पास हुआ। उत्तर प्रदेश सरकार के 2006 के बिल में दुकानों के बाहर तख्ती पर सभी दुकानदारों, रेस्टोरेंट, ढाबा संचालकों को अपना नाम , पता और लाइसेंस नंबर लिखने की बात कही गई थी। उस समय ग्राहकों की बेहतरी के लिए सामानों की लिस्ट भी सार्वजनिक करने की बात कही गई थी।

विपक्षी पार्टियां कर रही हैं विरोध-

कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने एकजुट होकर इस नियम का पुरजोर विरोध किया है। एक सुर में सभी ने कहा है कि पहले भी कांवड़ यात्राएं होती आई हैं, लेकिन इस तरह का नियम लाकर राज्य सरकार वर्ग विशेष को निशाना बना रही है। विपक्ष ही नहीं भाजपा के सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकदल, जनता दल यूनाइटेड और लोजपा (आर) ने राज्य सरकार के फैसले को गैर-जरूरी बताया है।

इस आदेश पर विपक्षी नेताओं के बयान-

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा का बयान-

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने दुकानदारों के नाम लिखने के आदेश को लोकतंत्र पर हमला बताते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट किया. प्रियंका ने लिखा, 'हमारा संविधान हर नागरिक को गारंटी देता है कि उसके साथ जाति, धर्म, भाषा या किसी अन्य आधार पर भेदभाव नहीं होगा। उत्तर प्रदेश में ठेलों, खोमचों और दुकानों पर उनके मालिकों के नाम का बोर्ड लगाने का विभाजनकारी आदेश हमारे संविधान, हमारे लोकतंत्र और हमारी साझी विरासत पर हमला है।'

जनता दल यूनाइटेड के नेता का बयान-

जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेता केसी त्यागी ने कहा, 'कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाने-पीने की दुकानों पर मालिकों का नाम प्रदर्शित करने के मुजफ्फरनगर पुलिस के आदेश को वापस लिया जाना चाहिए क्योंकि इससे सांप्रदायिक तनाव फैल सकता है।' केसी त्यागी बोले 'धर्म और जाति के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।'

क्या है विशेषज्ञों का मानना?

संविधान और कानून की निगाह से देखा जाए तो विशेषज्ञों का मानना है कि शांति और कानून-व्यवस्था को कायम रखने के लिए सरकार ऐसे नियामक उपाय कर सकती है। जबकि इसके राजनीतिक मायने अलग निकाले जा रहे हैं, जिसमें एक धड़ा समाज को बांटने, मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाए जाने का हवाला भी दे रहा है। विपक्ष भी इस कानून की खिलाफत में मुखर है, जबकि बीजेपी शासित सूबे की सरकार का कांवड़ यात्रा के दौरान पुख्ता इंतजाम से जोड़ते हुए निवारक कदम करार दे रही है।

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