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(Special Story) उत्तर प्रदेश अपने आप में कई मामलों में खास है। यहां के लोग अपनी अलग पहचान रखने में पीछे नहीं हटते हैं। जब यहाँ बात भौकाल और हनक की आती है तो यहाँ के लोगो के मन में सबसे पहले महंगी गाड़ियों का काफिला और दमदार हथियार ही आते हैं। यूपी में हथियार रखना भौकाल दिखाने का एक बड़ा माध्यम है। आम तौर पर यूपी के लोग हथियार रखने के शौक़ीन माने जाते हैं। ख़ुशी के मौके पर हर्ष फायरिंग हो या फिर कहीं रौब जमाने की बात हो, बिना हथियारों का प्रदर्शन किए नहीं चूकते, लेकिन ये सब हम आपको क्यों बता रहे हैं इसके पीछे की वजह है एक फैसला जिसमे कहा गया है कि आत्मरक्षा में पिस्टल से फायर लाइसेंस की शर्त का उल्लंघन नहीं है। आइए विस्तार से जानते हैं कि पूरा मामला क्या है।
आत्मरक्षा में पिस्टल से फायर लाइसेंस की शर्त का उल्लंघन नहीं-
कुछ दिनों पहले इलहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक केस की सुनवाई के दौरान आदेश देते हुए कहा की आत्मरक्षा में पिस्टल से फायर लाइसेंस की शर्त का उल्लंघन नहीं है। न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने यह आदेश सुनील दत्त त्रिपाठी की याचिका पर दिया। याची सुनील दत्त त्रिपाठी के खिलाफ लखनऊ के गाजीपुर थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी। इसमें उसपर आरोप था कि उसने साथियों के साथ मिलकर वादी और अन्य लोगों को जान से मारने की नीयत से पिस्टल से गोली चलाई। हालांकि, इस कथित फायरिंग में किसी को गोली नहीं लगी। पुलिस ने तफ्तीश के बाद याची व अन्य के खिलाफ अन्य धाराओं के साथ ही शस्त्र अधिनियम की धारा 30 के तहत भी आरोपपत्र न्यायलय में दाखिल किया था। जमानत पर छूटने के बाद याची ने अपनी लाइसेंसी अमेरिकन ग्लॉक पिस्टल व चार कारतूसों को अवमुक्त करने की अर्जी निचली अदालत में दाखिल की थी, जो खारिज हो गई। इसके बाद याची ने हाईकोर्ट में निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की। जिसके बाद केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि शस्त्र अधिनियम की धारा 30, लाइसेंस की शर्तों के उल्लंघन को अपराध घोषित करती है। इस मामले में लाइसेंस की किस शर्त का उल्लंघन हुआ, इसे निचली अदालत ने स्पष्ट नहीं किया। कोर्ट ने याचिका मंजूर कर याची की पिस्टल व कारतूस तुरंत अवमुक्त करने का आदेश देकर निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया।
देश में बंदूक या हथियार रखने से जुड़े नियम-
भारत में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले हथियारों के लाईसेंस से संबंधित कानून न के बराबर थे। भारतीय शस्त्र अधिनियम, 1878 के तहत भारत में पहली बार हथियारों के निर्माण, बिक्री और नियंत्रण के लिए कानून बनाये गये थे। गांधी जी द्वारा 1918 में इस अधिनियम का विरोध भी किया गया था। हथियारों से जुड़े कानूनों की मौजूदा समय में बात करें तो एक अधिनियम है जो हथियारों की परिभाषा से लेकर उनके रख रखाव और निर्माण के लिए बनाया गया था। जिसका नाम है शस्त्र अधिनियम, 1959 है। इस अधिनियम का उद्देश्य भारत में हथियारों और गोला-बारूद के अधिग्रहण, कब्ज़े, निर्माण, बिक्री, आयात, निर्यात और परिवहन से संबंधित सभी पहलुओं को शामिल करना है। हालांकि खिलाडियों और निशानेबाजों के लिए कुछ अलग नियम है लेकिन आज हम सिर्फ बंदूक से जुड़े नियमों के बारे में ही चर्चा कर रहे हैं। अधिनियम 1959 के अंतर्गत ही भारत में बंदूक के लाइसेंस से जुड़े नीयम भी शामिल है। इसके अनुसार भारत में बंदूक का लाइसेंस प्राप्त करने के लिये न्यूनतम आयु सीमा 21 वर्ष है।
इसी के साथ ही आवेदन करने से पांच वर्ष पूर्व आवेदक को हिंसा या नैतिकता से जुड़े किसी भी अपराध का दोषी नहीं ठहराया गया हो, साथ ही आवेदक की मानसिक स्थिति भी ठीक होनी चाहिए। हर वो व्यक्ति जिसके पास वैध कारण हो और जान का खतरा हो और कानून के मुताबिक पात्र हो वो आत्मरक्षा हेतु लाइसेंस के लिए अपने जिले के जिलाधिकारी कार्यालय में जाकर आवेदन कर सकता है। एक आवेदन प्राप्त होने पर निकटतम पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को जांच के बाद आवेदक के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये कहा जाता है। लेकिन आपको लाइसेंस मिलेगा या नहीं यह बात आपके आवेदन में लाइसेंस लेने के लिए बताए गए कारण और संबंधित जिले के जिलाधिकारी के विवेक पर निर्भर करेगा। आपको बता दें की इस अधिनियम के अंतर्गत वे हथियार जो कोई भी हानिकारक तरल या गैस छोड़ते हैं, या ऐसे हथियार जिन्हें चलाने के लिये ट्रिगर दबाने की आवश्यकता होती है वे इसकी श्रेणी में आते है।
एक व्यक्ति कितनी बंदूकें खरीद सकता है-
अगर हथियारों की खरीद फरोख्त की बात की जाए तो किसी भी संस्था को ऐसी बंदूक को बेचने या स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं है, जिस पर निर्माता का नाम, निर्माता का नंबर या कोई अन्य दृश्यमान मुहर या पहचान चिह्न नहीं लगी हो। वर्ष 2019 में इस अधिनियम में संसोधन भी किए गए थे। जिसके बाद एक व्यक्ति द्वारा खरीद की जा सकने वाली बंदूकों की संख्या को 3 से घटाकर 2 कर दी गई थी। लाइसेंस की वैधता को 3 वर्ष से बढ़ाकर 5 वर्ष कर दिया गया था। इसी के साथ ही बिना लाइसेंस के बंदूकों की एक श्रेणी को दूसरी श्रेणी में बदलने पर भी रोक लगाई गई। संसोधित अधिनियम के अनुसार गैर कानूनी निर्माण, बिक्री और हस्तांतरण के लिये कम-से-कम सात साल की कैद की सज़ा दी जा सकती है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
यूपी में क्यों बढ़ रहा है गन कल्चर-
यूपी के बढ़ते गन कल्चर की बात की जाए तो एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल वैध हथियारों में 35 फीसदी से अधिक हथियार अकेले यूपी में है। यूपी में करीब 14 लाख लोगो के पास लाइसेंसी हथियार है। जबकि देश भर में यह संख्या करीब 40 लाख से अधिक है। यूपी के बाद दूसरे नंबर पर जम्मू कश्मीर है। बात अगर यूपी की की जाए तो यूपी में सबसे अधिक हथियार लखनऊ में और सबसे कम भदोही में है।
उत्तर प्रदेश का गन कल्चर-
जैसे जैसे वक्त बदल रहा है यूपी में बंदूक रखना स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। फिर चाहे पुरुष हो या फिर महिलाए कोई इसमें पीछे नहीं है। यूपी में करीब 21 हजार से अधिक महिलाओं ने शस्त्र लाइसेंस ले रखे है। उत्तरप्रदेश में बढ़ते गन कल्चर को बढ़ावा देने में बुंदेलखंड और चंबल का इलाका काफी चर्चित है। यहाँ ददुआ और फूलन देवी जैसे बड़े डकैत अपने हथियारों के चलते हमेशा से ही चर्चा में थे। आज के समय में भी कई ऐसे लोग है जो हथियारों को लेकर अक्सर चर्चा में रहते है।
गन कल्चर के दौर में बढ़ी अवैध हथियारों की मांग-
यूपी के इस बढ़ते गन कल्चर के दौर में अवैध हथियारों की मांग और इनका निर्माण भी काफी तेजी से बढ़ रहा है। यूपी के पूर्वांचल इलाको से लेकर राजधानी लखनऊ तक बिहार की मुंगेर के अवैध असलहो का व्यापार अपनी चरम सीमा पर है ऐसा मैं नहीं कह रहा पुलिस द्वारा असलहो की अवैध फैक्ट्रियों पर लगातार चल रही कार्यवाही इस बात की गवाह है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में कट्टा,अद्धी, छह फयरा और तमंचों की अवैध रूप से बहुत डिमांड रहती है। कई बार यूपी में जब किसी मर्डर के खुलासे की बात होती है तो उसमे पुलिस स्वयं कहती नजर आती है की घटना में अवैध असलहे का इस्तेमाल किया गया था। लगातार चल रही दबिश और खुलासों के बाद भी यह कारोबार धड्ड्ले से चल रहा है।
यूपी के गन कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट का स्वत: संज्ञान-
आपको बता दें कि फरवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में गैर लाइसेंसी हथियार के रखने और इस्तेमाल के बढ़ते मामलों पर स्वत: संज्ञान लिया था। कोर्ट ने कहा कि इस तरह का ट्रेंड खतरनाक है। कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा है कि अभी तक गैरकानूनी हथियार रखने और इसके इस्तेमाल के आरोप में आर्म्स एक्ट के तहत कितने मामले दर्ज किये गए है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी पूछा था कि यूपी सरकार गन कल्चर की इस बीमारी को जड़ से हटाने के लिए क्या कोशिश कर रही है।
सीनियर प्रोड्यूसर
Published : 8 January, 2024, 7:35 pm
Author Info : राष्ट्रीय पत्रकारिता या मेनस्ट्रीम मीडिया में 15 साल से अधिक वर्षों का अनुभव। साइंस से ग्रेजुएशन के बाद पत्रकारिता की ओर रुख किया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया...