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परिवारवाद की धुर-विरोधी रही मायावती ने क्यों अपनाया वंशवाद?

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(Special Story) आपको याद होगा जब साल 2018 में पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में ऐलान करते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा था कि “भविष्य में पार्टी में किसी तरह के परिवारवाद का कोई आरोप न लगे, इसके लिए पार्टी संविधान में कई अहम संशोधन किए गए हैं। अब बसपा अध्यक्ष के जीते जी व ना रहने के बाद भी उसके परिवार के किसी भी नजदीकी सदस्य को पार्टी संगठन में किसी भी स्तर के पद पर नहीं रखा जाएगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष के परिवार के किसी भी नजदीकी सदस्य को न कोई चुनाव लड़ाया जाएगा और न ही उसे कोई राज्यसभा सांसद, एमएलसी या मंत्री आदि बनाया जाएगा।” लेकिन अब ऐसा क्या हुआ की मायावती को अपने बनाएं सिद्धांतों की बलि देते हुए वंशवाद की डोर थामनी पड़ी। इन्ही सब सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश थोड़ा विस्तार से करते हैं...

BSP सुप्रीमों ने किया ये बड़ा ऐलान-

बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने कल कुछ ऐसा ऐलान किया जिसके बाद राजनैतिक हलकों में इस बात की चर्चा जोरों से होने लगी कि मायावती को आखिर पार्टी सिद्धांतों को दरकिनार करके आखिर क्यों ये निर्णय लेना पड़ा। मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना राजनितिक उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद उन्होंने बड़ा राजनितिक निर्णय लिया है।  मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना सियासी उत्तराधिकारी घोषित कर यह संदेश दे दिया है कि उनके बाद पार्टी की कमान उनके परिवार के पास ही रहेगी। परिवारवाद वाली परंपरा को लेकर चलने वाली पार्टियों की लिस्ट में अब बीएसपी का नाम भी शामिल हो गया है। बसपा के इस फैसले के बाद ही कई तरह की विपक्षी प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रहीं हैं। इस घोषणा के बाद एक तरफ फिर राजनीति में परिवारवाद को लेकर बहस छिड़ चुकी है। 

किन उद्देश्यों के साथ हुआ था पार्टी का गठन-

बीएसपी पार्टी को बहुजन, जिनमें अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंखकों को समाज में उचित स्थान दिलाना के उद्देश्यों के साथ स्थापित किया गया था। पार्टी की स्थापना की इच्छा और प्रेरणा लम्बे समय तक दलित विचारक और संवैधानिक विद्वान भीमराव रामजी आंबेडकर की थी।  कांशीराम, जो एक दलित और एक सिविल सेवा कर्मचारी थे, आंबेडकर के कार्यों को पढ़ने और प्रत्यक्ष रूप से देखने के बाद, 1960 के दशक में दलित समर्थन सक्रियता के लिय प्रेरित हुए। उन्हें लोग प्यार से साहेब कहते थे, उनका जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। उन्हें आरक्षण के माध्यम से सरकारी नौकरी मिल गई थी। लेकिन एक राजनितिक कार्यकर्ता बनने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। 

बीएसपी की स्थापना और मायावती को दायित्व-

14 अप्रैल 1984 को हाई प्रोफाइल करिश्माई लोकप्रिय नेता कांशीराम ने ही राजनैतिक दल बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था। इस दिन को डॉ. बीआर आंबेडकर की जयंती के तौर पर मनाया जाता है। कांशीराम ने 15 दिसंबर 2001 को लखनऊ में एक रैली को संबोधित करते हुए मायावती को उत्तराधिकारी घोषित किया था। उस वक्त कांशीराम ने अपने किसी सगे संबंधी को अपना उत्तराधिकारी बनाने की जगह मायावती को उत्तराधिकारी के रूप में चुना। कांशीराम ने उस वक्त वंचित तबके की सियासत को वंशवाद या परिवारवाद से परे रखकर एक मिसाल पेश की थी। इसके बाद 18 सितम्बर 2003 को उन्हें बसपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। 


वैसे तो मायावती ने अपना पहला चुनाव साल 1984 में उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट से लड़ा था, लेकिन वह वहां हार गई थीं। फिर उन्होंने 1985 में बिजनौर और 1987 में हरिद्वार से चुनाव लड़ा, लेकिन वहां भी जीत न मिल सकी। कुछ वक्त बाद 1989 में मायावती को बिजनौर से जीत हासिल हुई, इसके बाद राजनीति में उनका वर्चस्व और बढ़ता गया। 

मायावती जब पहली बार बनीं यूपी की मुख्यमंत्री-

1994 में वह राज्यसभा सदस्य के लिए चुनी गईं। 1995 में मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गईं। 39 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बनकर मायावती ने रिकॉर्ड बना दिया था। हालांकि यहां वह भाजपा के समर्थन से 3 जून 1995 से 18 अक्टूबर 1995 तक यानी महज 5 महीने तक मुख्यमंत्री पद पर रह पाई। इसके साथ ही वो दूसरी बार 21 मार्च 1997 से 20 सितंबर 1997 तक मुख्यमंत्री पद पर रहीं। तीसरी बार 3 मई 2002 से 26 अगस्त 2003 तक मुख्यमंत्री रहीं। इसके बाद 2007 में मायावती के नेतृत्व में बसपा की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी। मायावती ने 13 मई 2007 को सीएम पद की शपथ ली। हलांकि अभी तक बीएसपी में परिवारवाद जैसी कोई चीज सामने नहीं आई थी।  

एसपी और कांग्रेस में परिवारवाद की जड़ें गहरी-

मुलायम सिंह यादव की विरासत को आगे बढ़ाते हुए उनके बड़े बेटे अखिलेश यादव पार्टी की कमान संभाल रहे हैं। अखिलेश यादव वर्तमान में विधायक हैं। अखिलेश यादव 2011 से 2014 तक यूपी के सीएम भी रहे हैं। उनकी पत्नी डिंपल यादव मैनपुरी से सांसद हैं। इसके अलावा चाचा शिवपाल यादव, राम गोपाल यादव, चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव, अक्षय यादव, तेज प्रताप यादव, अभिषेक यादव सक्रिय राजनीति में हैं। वहीं, मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव वर्तमान में बीजेपी  सक्रिया हैं। 


कांग्रेस देश की आजादी के बाद कई सालों तक सत्ता में रही। पंडित जवाहर लाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद बेटी इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल के समय छोटे बेटे संजय गांधी पूरी बागडोर देखते थे। इंदिरा गांधी हत्या के बाद उनके बड़े बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। उसके बाद राजीव की पत्नी सोनिया गांधी ने पार्टी की बागडोर संभाली। और फिर अब राहुल और प्रियंका गांधी भी सक्रिया हैं। ये सिलसिला जारी है। 

अब बसपा भी उसी लाइन में खड़ी हुई-

बसपा भले ही अपने निर्णय को लेकर परिवारवाद की चर्चा में अभी शामिल हुई हो लेकिन इसके पहले से ही काफी समय से सपा और कांग्रेस पर परिवारवाद का ठप्पा  लगा हुआ है। दरअसल, आकाश आनंद मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। आकाश आनंद को 2017 के चुनाव में मायावती के साथ सहारनपुर में देखा गया था. पूर्व की बात करें तो अभी तक मायावती के परिवार से कोई भी सदस्य रैली और चुनावी जनसभाओं में नहीं दिखाई दिया था। आइए जानते हैं कि मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी की क्या राय है।

आकाश आनंद की जो सबसे बड़ी खूबी तो वही है कि वो उनके भतीजे हैं। और इसको अचानक नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि मायवाती के भाई आनंद कुमार काफी पहले से ही कामकाज संभाल रहे हैं। पार्टी फंड और पैसे के लेन-देन की व्यवस्था वही देख रहे हैं। तो ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि ये फैसला अचानक हुआ है। और आकाश आनंद भी जब से लंदन से पढ़ाई से लौटे हैं तब से उनको पार्टी में कोई न कोई जिम्मेदारी दी गई है। साल 2017 में उनको क्वार्डिनेटर बनाया गया था। इसके साथ ही तीन राज्यों के चुनाव में भी आकाश आनंद काम देख रहे थे। मायावती के अपना उत्ताराधिकारी घोषित करने की चर्चाएं पहले से चल रही थीं। लेकिन बीएसपी के लिए ये दुर्भाग्य की बात जरूर कहा जा सकता है। मायावती की राजनीति अब सिमटती जा रही है। यही सब कारण है कि उनको अपने उत्ताराधिकारी की घोषणा करनी पड़ी। हलांकि कांशीराम ने पार्टी का गठन बहुजन को समाज में अधिकार दिलाने और उनकी स्थिति को बेहतर करने के लिए की थी। लेकिन अपना आधार बचाने के लिए शायद मायावती को ये कदम उठाना पड़ा है।
 

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