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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 69 हजार शिक्षक भर्ती परीक्षा को लेकर अभ्यर्थियों का भारी आक्रोश देखने को मिल रहा है। आज यानी सोमवार हजारों की संख्या में शिक्षक अभ्यर्थी डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। नाराज अभ्यर्थियों ने "योगी जी न्याय करो... केशव चाचा न्याय करो" के नारे लगाते हुए सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास किया। प्रदर्शन के कारण पुलिस बल की भारी तैनाती की गई है, जिससे स्थिति नियंत्रण में रखी जा सके। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उनके खिलाफ बल प्रयोग भी किया है।

हाईकोर्ट के आदेश का हो पालन: अभ्यर्थी

अभ्यर्थियों की मुख्य मांग इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का शीघ्र पालन करने की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 13 अगस्त 2024 को 69000 शिक्षक भर्ती की पूरी सूची को रद्द कर दिया था और बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 तथा आरक्षण नियमावली 1994 का पालन करते हुए तीन महीने के भीतर नई सूची तैयार करने का आदेश दिया था। सरकार की ओर से इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने से अभ्यर्थियों में गहरी नाराजगी है।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई अर्जी

हाईकोर्ट के आदेश के बाद, चयनित अभ्यर्थी रवि सक्सेना ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस मामले में मूल चयन सूची तैयार करने के निर्देश दिए हैं। अगर सरकार इस सूची को तैयार करती है, तो 19000 से अधिक गलत तरीके से चयनित अभ्यर्थी बाहर हो सकते हैं। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष 19000 सीटों पर आरक्षण घोटाले का मामला भी चल रहा है, जिसमें सरकार पर जानबूझकर मामले को टालने का आरोप है।

आरक्षण नियमावली का उल्लंघन

अभ्यर्थियों का आरोप है कि 69000 शिक्षक भर्ती में ओबीसी वर्ग को 27% और एससी वर्ग को 21% आरक्षण नहीं दिया गया। ओबीसी को केवल 3.86% और एससी को 16.2% आरक्षण मिला। इस भर्ती में आरक्षण नियमावली 1994 और बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 का घोर उल्लंघन हुआ है। सरकार ने 19000 सीटों पर आरक्षण घोटाला करके ऐसे अभ्यर्थियों का चयन कर लिया है, जो इस प्रक्रिया में शामिल नहीं होने चाहिए थे। इससे ओबीसी और एससी वर्ग के योग्य अभ्यर्थियों को अन्याय का सामना करना पड़ा है, जो पिछले चार वर्षों से धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।

क्या है मामले की पृष्ठभूमि?

इस पूरे विवाद की जड़ें पिछली अखिलेश सरकार के कार्यकाल से जुड़ी हुई हैं। उस समय 1 लाख 37 हजार शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के रूप में समायोजित कर दिया गया था, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इन पदों पर नई भर्ती का आदेश दिया, जिसके तहत योगी सरकार ने 2018 में 68500 पदों पर भर्ती की। इसके बाद 69000 सहायक शिक्षक भर्ती का दूसरा चरण शुरू हुआ, जो विवादों में घिर गया।

कहां से हुई विवाद की शुरुआत?

69000 सहायक शिक्षक भर्ती की परीक्षा 6 जनवरी 2019 को आयोजित की गई थी, जिसमें अनारक्षित वर्ग की कटऑफ 67.11% और ओबीसी की कटऑफ 66.73% तय की गई। इस भर्ती के तहत करीब 68 हजार अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी गई, लेकिन इसी दौरान आरक्षण नियमों के उल्लंघन का आरोप लगा। अभ्यर्थियों का कहना है कि बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 के अनुसार, अगर ओबीसी वर्ग का कोई अभ्यर्थी अनारक्षित श्रेणी के कटऑफ से अधिक अंक प्राप्त करता है, तो उसे अनारक्षित श्रेणी में नियुक्ति मिलनी चाहिए थी, न कि ओबीसी कोटे से। इससे ओबीसी वर्ग के लिए निर्धारित 27% आरक्षण में कटौती हुई और उन्हें केवल 3.86% सीटें दी गईं। सरकार ने दावा किया कि करीब 31 हजार ओबीसी अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी गई, लेकिन अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि इनमें से अधिकांश अनारक्षित कोटे में आने चाहिए थे।

आंदोलन को और तेज करने की चेतावनी

अभ्यर्थियों ने सरकार से इस मामले का त्वरित समाधान निकालने और नियुक्ति की प्रक्रिया को शीघ्र शुरू करने की मांग की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं, तो वे अपने आंदोलन को और तीव्र करेंगे। मौके पर भारी पुलिस बल की तैनाती की गई है, ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे। अभ्यर्थियों का कहना है कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलेगा, उनका संघर्ष जारी रहेगा।

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