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कहां होता है सबसे ज्यादा नोटा का इस्तेमाल?

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(Special Story) मान लीजिए किआप लोकसभा चुनाव में मतदान कर रहे हैं और आपके निर्वाचन क्षेत्र में 3 उम्मीदवार हैं – इसमें एक भ्रष्ट नेता, एक अप्रभावी नेता और एक नया उम्मीदवार है जो आपके विचारों का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन आपको लगता है कि नए उम्मीदवार के पास जीतने का मौका नहीं है, और आप किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते हैं। इस समस्या का समाधान है ‘नोटा’ यानि ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’। यह उन मतदाताओं के लिए है जो किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते हैं। 

यूपी में बढ़ा का उपयोग-

उत्तर प्रदश में पिछले कई सालों में नोटा का उपयोग काफी बढ़ा है। आकड़ों  की बात की जाए तो साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में कुल मतदाता 13 करोड़ 88 लाख 10 हज़ार 557 थे, जिसमें से 5,92,331 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया था, जो प्रदेश के कुल मतदाता का 0.71 प्रतिशत था। 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो कुल वोटर 14 करोड़ 61 लाख 34 हज़ार 603 में से 7,25,097 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया जो कि कुल मतदान का 0.84 फ़ीसदी था। 

कब हुई नोटा की शुरुआत-

नोटा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी के समक्ष मतदाताओं को अपना असंतोष प्रकट करने का मौका देता है। इससे ज्यादा से ज्यादा लोग वोट देने आएंगे, भले ही वे किसी भी कैंडिडेट्स को पसंद न करते हों। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पी.सदाशिवम के नेतृत्व वाली एक बेंच ने कहा था कि ‘नेगेटिव वोटिंग से चुनाव के सिस्टम में बदलाव हो सकता है’। उन्होंने कहा था कि इससे राजनीतिक पार्टियां साफ छवि वाले उम्मीदवारों को चुनाव में खड़ा करने के लिए मजबूर होंगी।
नोटा का उपयोग पहली बार भारत में 2009 में किया गया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग से हर चुनावी बैलट पर इस विकल्प को उपलब्ध कराने को कहा था, लेकिन तब सरकार ने इसका विरोध किया था। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि हर मतदाता को 'नोटा' वोट डालने का अधिकार है। तब से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में नोटा का भी विकल्प दिया जाने लगा। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश विधानसभा चुनावों में चार राज्यों - छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और मध्य प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लिए था। और इसके बाद 2014 के चुनावों से NOTA की शुरुआत हो गई। 


हालांकि, चुनाव आयोग के अनुसार नोटा के वोटों की गिनती की जाती है लेकिन उन्हें अवैध वोट माना जाता है। इसलिए नोटा के वोट का चुनाव के परिणामों पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने कहा था, 'अगर 100 में से 99 वोट भी नोटा को पड़े हैं और किसी कैंडिडेट को एक वोट मिला तो उस कैंडिडेट को विजयी माना जाएगा। बाकी वोटों को अवैध करार दे दिया जाएगा।

इन देशों में भी नोटा लागू-

वर्तमान समय में नोटा का प्रयोग कोलंबिया, यूक्रेन, ब्राजील, बंगलादेश, फ़िनलैंड, स्पेन, स्वीडन, चिली, फ्रांस, बेल्जियम और यूनान समेत कई देशों में लागू है। वैसे देशभर में नोटा के पक्ष और विपक्ष में भी कई तरह की बातें होती रहती हैं। जो इसके पक्ष में तर्क देते हैं वे नोटा को मतदाताओं के लिए अधिक विकल्प के तौर पर देखते हैं। यह चुनावी प्रक्रिया में मतदाताओं को उम्मीदवार से असंतुष्टि जाहिर करने और नाराजगी व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। 

नोटा की जरूरत-

नोटा राजनीतिक दलों को बेहतर उम्मीदवार खड़े करने और चुनावी सुधारों को लागू करने के लिए प्रेरित कर सकता है। ऐसे में अगर नोटा वोटों की संख्या अधिक होती है, तो इससे पता चलता है कि मतदाता वर्तमान चुनावी व्यवस्था से नाखुश हैं। कई लोगों का यह मानना है कि नोटा मतदाताओं को चुनाव में भाग लेने से हतोत्साहित कर सकता है। नोटा का अधिक इस्तेमाल लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है। वे कहते हैं कि नोटा के विकल्प के चुनाव से राजनीतिक दल कोमजोर होंगे। इसके अलावा नोटा, वोटों का बटवारा कर सकता है जिससे कम लोकप्रिय उम्मीदवार जीत सकते है। ऐसे में यह गलत उम्मीदवार को सत्ता में ला सकता है। 

 

 

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