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"एनकाउंटर" पर क्या कहता है भारतीय कानून

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उत्तर प्रदेश में उमेश पाल हत्याकांड मामले में मुख्य आरोपी अतीक अहमद के बेटे असद अहमद और शूटर गुलाम का चैप्टर क्लोज हो गया है। मामले में दोनों ही आरोपियों पर 5-5 लाख रुपए का इनाम घोषित किया गया था। फिलहाल यूपी एसटीएफ (Special Task Force) की टीम ने एनकाउंटर में दोनों को मार गिराया। 12 सदस्यों की इस एसटीएफ टीम का नेतृत्व डीएसपी नवेंदु सिंह नवीन और डीएसपी विमल कर रहें थे। नवेंदु सिंह की भर्ती यूपी पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर हुई थी। वे पिछले 8 साल से यूपी एसटीएफ की प्रयागराज यूनिट में काम कर रहें हैं और 4 साल से प्रयागराज एसटीएफ यूनिट के प्रभारी है। वहीँ यूपी एसटीएफ के लखनऊ स्थित मुख्यालय में डिप्टी एसपी पद पर तैनात हैं विमल कुमार सिंह। वे भी शुरुआत में यूपी पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती हुए थे। इस खबर के सामने आते ही एक बार फिर ‘एनकाउंटर’ शब्द चर्चा में आ गया है।

क्या है एनकाउंटर 

एनकाउंटर एक ऐसी स्थिति है जब पुलिस अधिकारियों को अपराधियों से निपटने के लिए कुछ ख़ास शक्तियां दी जाती है। अपराधी को कस्टडी में लेते समय कई बार अपराधी सरेंडर के लिए तैयार नहीं होता है। ऐसे में वह भागने के साथ बल का प्रयोग करते हैं। इसे रोकने के लिए ही एनकाउंटर किया जाता है।

किस स्थिति में होता है एनकाउंटर

भारत में एनकाउंटर दो स्थितियों में किया जाता है। जब कोई अपराधी पुलिस कस्टडी से भागता है तो पुलिस उसे रोकने का प्रयास करते हुए फायरिंग करती है। दूसरी स्थिति में अपराधी अगर वार करता है तो पुलिस पहले उसे रोकने का प्रयास करती है। अगर वह नहीं रुकता तो फायर करने का विकल्प चुना जाता है। एनकाउंटर की स्थिति में किसी हथियार का इस्तेमाल करने से पहले पुलिस उसे चेतावनी देती है। ऐसे में पुलिस हवाई फायरिंग करती है, उसके बाद पैरों में और फिर शरीर के किसी अन्य हिस्से में फायर करती है।

क्या कहता है कानून 

भारतीय कानून व्यवस्था में इंडियन पेनल कोड (IPC) और कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर (CRPC) या फिर भारत के संविधान में कहीं भी एनकाउंटर या ऐसी किसी परिस्थिति का ज़िक्र नहीं है। लेकिन पुलिस को देश में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कुछ पॉवर दी गई है। इस पॉवर के तहत, ऐसे किसी व्यक्ति जिसकी वजह से राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने में संकट हो, पुलिस के पास ऐसे व्यक्ति पर लगे आरोपों की पूरी जांच करने तक उसे कस्टडी में रखने का अधिकार है। 

क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन

  • सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार, अगर पुलिस को किसी भी तरह की खुफिया जानकारी मिलती है तो कोई भी एक्शन लेने से पहले पुलिस को उसे इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में दर्ज करना चाहिए।
  • अगर कोई व्यक्ति पुलिस कार्रवाई में मारा जाता है तो सबसे पहले कार्रवाई में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ आपराधिक एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। साथ ही उसे धारा 157 के तहत बिना देरी के अदालत भेज देना चाहिए।
  • एफआईआर दर्ज होने के बाद मामले की स्वतंत्र रूप से जांच होनी चाहिए। जांच सीआईडी (CID) या किसी अन्य पुलिस स्टेशन की टीम के वरिष्ठ अधिकारी की देखरेख में होनी चाहिए। जांच के दौरान अपराधी के साथ घटना का पूरा विवरण विस्तार से होना चाहिए।
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, हर हाल में पुलिस एनकाउंटर की मजिस्ट्रियल जांच होनी चाहिए, जिसकी रिपोर्ट धारा 190 के तहत मजिस्ट्रेट को भी भेजनी होती है।
  • एनकाउंटर के दौरान अगर कोई अपराधी घायल हो जाए तो उसे मेडिकल सुविधा मिलनी चाहिए। उसका बयान मजिस्ट्रेट या चिकित्सा अधिकारी द्वारा फिटनेस प्रमाण पत्र के साथ दर्ज होना चाहिए।
  • भारतीय दंड संहिता धारा 173 के तहत जांच पूरी होने के बाद इसकी रिपोर्ट कोर्ट को देनी चाहिए। इसके तहत घटना की जानकारी नेशनल ह्यूमन राईट कमीशन (NHRC) या राज्य मानवाधिकार को भेजी जानी चाहिए।

क्या कहता है मानवाधिकार आयोग

  • एनकाउंटर के हर पहलू को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र में आने वाले थाने को तत्काल प्रभाव से एफआईआर दर्ज करनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो इसके लिए संबंधित थाने का थानाधिकारी जिम्मेदार होगा।
  • आयोग का कहना है कि पुलिस मामले में खुद ही एक पक्ष है इसलिए मामले की पूरी जांच राज्य की स्वतंत्र जांच संस्था सीआईडी द्वारा की जानी चाहिए।
  • आयोग का कहना है कि मामले की मजिस्ट्रेट जांच तीन माह में पूरी हो जानी चाहिए। 
  • आयोग के निर्देशों के अनुसार, एनकाउंटर की जांच चार महीने में पूरी हो जानी चाहिए। अगर जांच में पुलिस पक्ष अपराधी पाया जाता है तो उन्हें अपराधी मानकर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए।

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