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यूपी के इन शहरों में होती है अनोखी होली..

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(special Story) रंगों का त्योहार होली इस वर्ष 24 और 25 मार्च को मनाया जा रहा है। पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन रंगों के साथ होली खेली जाएगी। इस दिन पूरे देश में धूमधाम और हर्षोल्लास से होली खेली जाती है। होली के त्योहार की विभिन्न जगहों पर अलग-अलग परंपरा और प्रथाएं हैं। कहीं फूलों की होली खेली जाती है तो कहीं चिता भस्‍म की होली वहीं एक लट्ठमार होली भी काफी मशहूर है। उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों में अनोखे तरीके से होली खेली जाती है जैसे - कहीं जूतम-पैजार होती है, कहीं होली में रामलीला होती है, तो कहीं आठ दिन होली खत्म ही नहीं होती, कहीं होली में मस्जिदों को ढक दिया जाता है, तो कहीं दरगाह में होली खेली जाती है। आइए विस्तार से जानते हैं जानते है यह होलियां यूपी में कहाँ-कहाँ खेली जाती है। 

बरेली में होली पर रामलीला-

बरेली में साल 1861 से यानि 162 साल से होली पर रामलीला की परंपरा चली आ रही है। उस समय अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह चल रहा था। मुकाबले के लिए बरेली के लोगों ने श्रीराम सेना बनाई। बाद में बड़ी बमनपुरी इलाके में रामलीला का मंचन शुरू हुआ। अंग्रेजों ने रामलीला को रोकने के कई प्रयास किए मगर सफल नहीं हो पाए। तभी से ये रामलीला वाली परंपरा लगातार चली आ रही है।  फाल्गुन पूर्णिमा के दिन राम बारात की झांकी निकाली जाती है। इस झांकी में सैकड़ों ट्रालियों में ड्रम रखे जाते हैं और उन ड्रमों में रंग रखे जाते है। इन ट्रालियों पर हजारों हुरियारे होते हैं, जो एक-दूसरे पर पिचकारियों से रंग रंगों की बौछार करते हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग भी फूलों से राम बारात का स्वागत करते हैं। बारात में रंग और पानी की व्यवस्था की जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होती है। साल 2008 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने इस रामलीला को वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया था।

कानपुर की होली-

कानपुर का हटिया बाजार जो अंग्रेजी हुकूमत के दौर में कारोबार का केंद्र हुआ करता था। हटिया के गुलाबचंद सेठ उस समय के बड़े व्यापारी थे। हर वर्ष की तरह उस वर्ष 1942 में भी उन्होंने होली पर एक विशाल आयोजन किया। जब होरियार लोग होली खेल रहे थे तो अंग्रेज आए और उन्होंने होरियारों के होली खेलने के आयोजन को बंद करने को कहा। वहीं होरियार लोगों ने अंग्रेजो की बात नहीं सुनी। तब  और अंग्रेजों ने गुलाबचंद सेठ को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी का विरोध करने पर कुछ और लोग भी अरेस्ट हो गए। ये बात कानपुर में आग की तरह फैल गई। गिरफ्तारियों को लेकर जन आक्रोश भड़क गया और  गिरफ्तारी के विरोध में पूरे कानपुर में जमकर होली खेली गई, होली के दिन ही नहीं बल्कि पुरे हफ्ते होली खेली गई। हफ्तेभर होली खेलने के चलते न दुकानें खुली न मिलों में लेबर पहुंचे। इन्हें रोकने की तमाम कोशिशें हुईं। चूंकि उस वक्त कानपुर अंग्रेजों के कारोबार का बड़ा केंद्र होता था, तो विरोध के चलते अंग्रेजों को भारी नुकसान हो रहा था। बात इंग्लैंड में बैठे अंग्रेजी हुकूमत की सिरमौर रानी विक्टोरिया तक पहुंची, उन्होंने कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया। आठ दिन बाद अनुराधा नक्षत्र यानी गंगा मेला के दिन सारे कैदियों को रिहा किया गया। तब से ही कानपूर के लोग इस हफ्ते को त्योहर के रूप में मानते है। 

शाहजहांपुर की जूतम पैजार होली-

यहां की जूतामार होली खेलने की परंपरा दशकों पुरानी है। इस परंपरा का किस्सा भी अंग्रेजों से जुड़ा है। होली के पांच दिन पहले ही शाहजहांपुर की मस्जिदों को तिरपाल से ढक दिया जाता है। ढकना इसलिए जरूरी है, ताकि रंग से मस्जिद की दीवारें खराब न हों। इस दौरान पूरे शाहजहाँपुर में जुलूस निकलते हैं।  जुलूस निकला जाता है लाट साहब का। आखिर ये लाट साहब कौन है? दरअसल अंग्रेजों के सबसे बड़े अफसर के नाम के आगे लॉर्ड लिखा जाता था, देशी भाषा में या फूटही अंग्रेजी में लोग उन्हें लाट साहब कहते थे। शाहजहांपुर के जुलूस में किसी शख्स को लाट साहब बना कर भैंसा गाड़ी या गधे पर बैठाया जाता है। और लाट साहब को जमकर शराब पिलाई जाती है और फिर उसे काले रंग से रंग कर, जूते की माला पहनाई जाती है। प्रतीक के तौर पर जूते और झाड़ू मारते हुए लाट साहब के जुलूस को पूरे शहर में घुमाया जाता है।

 

बाराबंकी की देवा शरीफ दरगाह की होली-

हाजी वारिस अली शाह कहते थे, 'जो रब है वो राम है', लेकिन कुछ लोग होली को एक खास धर्म का जामा दे देते हैं। मगर हर जगह ऐसा नहीं है, बाराबंकी स्थित देवा शरीफ की दरगाह पर मनाई जाने वाली होली ही देख लीजिए। इस दिन यहां देश के हर कोने से ही नहीं बल्कि पाकिस्तान से भी लोग होली मनाने के लिए जुटते हैं। हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर होली गंगा जमुनी तहजीब के साथ आपसी भाई चारे की एक बड़ी मिसाल पेश करती है। करीब पिछले सौ साल से ज्यादा समय से यहां होली के दिन रंग गुलाल खेलने की परंपरा चली आ रही है। संत वारिस अली शाह अपने हिंदू शिष्यों के साथ यहां होली के दिन होली खेल कर सूफी परंपरा का इजहार किया करते थे। तभी से यहाँ हर साल होली खेली जाती है। 

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