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डिप्थीरिया जैसी घातक बीमारी ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कहर बरपाया है। इसे आम बोल-चाल में लोग गलाघोंटू भी कहते हैं। आज़मगढ़ में पहले ही इस बीमारी से सात बच्चों की मौत हो चुकी थी, और अब उन्नाव के एक छोटे से गाँव में तीन और बच्चों की जान चली गई है। इस घटना से स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है और लोगों में चिंता बढ़ गई है।
क्या है डिप्थीरिया?
डिप्थीरिया एक गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण है, जो कोरिनेबैक्टीरियम डिप्थीरिया (Corynebacterium diphtheriae) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह बैक्टीरिया गले में एक ग्रे रंग का पर्दा बना देता है, जिससे सांस लेना कठिन हो जाता है। इस बीमारी का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैल सकता है, खासकर तब जब संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है। संक्रमित व्यक्ति के घावों को छूने से भी यह संक्रमण फैल सकता है, ठीक वैसे ही जैसे चिकनपॉक्स फैलता है।
डिप्थीरिया के लक्षण-
डिप्थीरिया के कुछ मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:
1. गले में दर्द और खिच-खिच
2. सांस लेने में कठिनाई
3. गले में ग्रे रंग का पर्दा
4. गर्दन में सूजन
क्या है डिप्थीरिया का उपचार?
डिप्थीरिया के उपचार के लिए डॉक्टर निम्नलिखित उपाय सुझाते हैं:
1. डिप्थीरिया एंटीटॉक्सिन:
यह एक विशेष दवा है जो बैक्टीरिया के जहर को निष्क्रिय करती है।
2. एंटीबायोटिक्स:
यह बैक्टीरिया के बढ़ने को रोकती है।
3. विशेष देखभाल:
मरीज को डॉक्टरों की निगरानी में रखा जाता है ताकि अन्य समस्याओं से बचा जा सके।
क्या हैं WHO के सुझाव?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने डिप्थीरिया के इलाज को लेकर कुछ सुझाव दिए हैं:
1. मैक्रोलाइड एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल प्राथमिकता से करना चाहिए, न कि पेनिसिलिन का।
2. DAT (डिप्थीरिया एंटीटॉक्सिन) देने से पहले सेंसिटिविटी टेस्ट की आवश्यकता नहीं है।
3. मरीज की स्थिति और लक्षणों के आधार पर DAT की डोज़ दी जानी चाहिए।
ये हैं इसके बचाव के उपाय-
डिप्थीरिया से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
वैक्सीनेशन:
अपने बच्चों का टीकाकरण समय पर करवाना सबसे महत्वपूर्ण है।
स्वच्छता:
खाने से पहले और बाद में हाथ धोते रहना चाहिए।
आइसोलेशन:
अगर किसी को डिप्थीरिया है, तो उसे अन्य लोगों से अलग रखना चाहिए।
डिप्थीरिया: खतरनाक बीमारी, टीकाकरण से करें बचाव
डिप्थीरिया एक गंभीर बीमारी है, जो समय पर सही इलाज न मिलने पर 50 प्रतिशत मामलों में जानलेवा साबित हो सकती है। इस बीमारी से बचाव के लिए भारत सहित कई देशों में डीपीटी (DPT) वैक्सीन दी जाती है। डीपीटी का मतलब है डिप्थीरिया (D), पर्टुसिस (P), और टेटनस (T)।
भारत में डिप्थीरिया की रोकथाम के लिए बच्चों को जन्म के 6 सप्ताह बाद पहली खुराक दी जाती है। इसके बाद, डॉक्टर द्वारा दिए गए टीकाकरण कार्यक्रम का सख्ती से पालन करना आवश्यक है। इस कार्यक्रम के तहत पांच खुराकें दी जाती हैं, जिनकी जानकारी निम्नलिखित है:
पहली खुराक: बच्चे के जन्म के 6 सप्ताह बाद
दूसरी खुराक: पहली खुराक के 4 सप्ताह बाद
तीसरी खुराक: दूसरी खुराक के 4 सप्ताह बाद
चौथी खुराक: 16-24 महीने की आयु में
पांचवीं खुराक: 4-6 साल की आयु में
इन खुराकों के बाद, नियमित रूप से डॉक्टर की सलाह लेना और आवश्यकतानुसार बूस्टर डोज़ लगवाना भी महत्वपूर्ण है। इससे बच्चे को डिप्थीरिया जैसी गंभीर बीमारी से सुरक्षित रखा जा सकता है। इसलिए, समय पर टीकाकरण करवाएं और अपने बच्चे की सेहत को सुरक्षित रखें।
डिप्थीरिया से जागरुक रहने की जरूरत-
डिप्थीरिया जैसी गंभीर बीमारी के बढ़ते मामलों ने एक बार फिर हमें स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने की आवश्यकता का अहसास कराया है। बचाव ही सबसे अच्छा उपाय है, इसलिए सतर्क रहें और अपने परिवार को सुरक्षित रखें।
Baten UP Ki Desk
Published : 23 August, 2024, 2:06 pm
Author Info : Baten UP Ki