बड़ी खबरें

लोकसभा-राज्यसभा में भारी हंगामा, दूसरी बार स्थगित हुई दोनों सदनों की कार्यवाही एक दिन पहले लोकसभा में हंगामे और नेताओं के रवैये को बिरला ने बताया अशोभनीय; सांसदों को दी मर्यादा बनाए रखने की नसीहत 10 घंटे पहले आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने भावुक पोस्ट में सहयोगियों का आभार जताया, आज हो रहे पदमुक्त 10 घंटे पहले ट्रंप की टीम में एक और भारतीय, हरमीत ढिल्लों को नियुक्त किया नागरिक अधिकार मामले की सहायक अटॉर्नी जनरल 10 घंटे पहले राज्यसभा में जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव; विपक्ष ने दिया नोटिस, टीएमसी ने किया वॉकआउट 10 घंटे पहले

संभल की जामा मस्जिद विवाद: इतिहास और राजनीति के बीच उलझा सच!

Blog Image

संभल, जो 16वीं सदी में मुग़ल साम्राज्य का एक प्रमुख प्रशासनिक केंद्र था, आज धार्मिक और राजनीतिक विवादों की वजह से चर्चा में है। यह विवाद तब गहराया, जब संभल की जामा मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया गया। दावा किया गया कि यह मस्जिद किसी प्राचीन मंदिर की नींव पर बनाई गई है। इस विवाद के केंद्र में ऐतिहासिक दस्तावेज़ ‘आइन-ए-अकबरी’ का नाम बार-बार सामने आ रहा है, जिसमें संभल की प्रशासनिक और सांस्कृतिक स्थिति का उल्लेख है।

क्या है विवाद की पृष्ठभूमि?

संभल की जामा मस्जिद को लेकर यह दावा किया जा रहा है कि यह एक प्राचीन मंदिर को तोड़कर बनाई गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ‘आइन-ए-अकबरी’ में दिए गए विवरण इस ओर इशारा करते हैं कि मस्जिद के निर्माण से पहले यहां एक हरिमंडल मंदिर था। वहीं, मस्जिद प्रबंधन ने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का हवाला देते हुए इन दावों को खारिज करने की मांग की है।

‘आइन-ए-अकबरी’ और संभल का उल्लेख-

अबुल फजल द्वारा लिखित ‘आइन-ए-अकबरी’ अकबरनामा का तीसरा भाग है। यह अकबर के शासनकाल की प्रशासनिक, सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं का दस्तावेज़ है। इसमें प्रांतों के विभाजन, कर व्यवस्था, और सामाजिक परंपराओं का विस्तार से वर्णन है। संभल का उल्लेख पेज नंबर 281 पर मिलता है, जहां इसे मुग़ल साम्राज्य के एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र के रूप में दर्ज किया गया है। इस शहर को व्यापार और कृषि के लिए भी जाना जाता था। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि इस किताब में हरिमंडल मंदिर का भी उल्लेख है। हालांकि, इस बात के स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं कि इस स्थल पर मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी।

कानूनी और सामाजिक पहलू-

इस विवाद ने समाज को दो भागों में बांट दिया है। मस्जिद प्रबंधन ने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का हवाला दिया है, जिसके अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले पूजा स्थलों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर, याचिकाकर्ता मस्जिद में पूजा-अर्चना की अनुमति देने की मांग कर रहे हैं।

संवेदनशीलता और बढ़ती हिंसा-

मौजूदा सर्वेक्षण के दौरान हुए पथराव और हिंसा ने इस मामले को और अधिक संवेदनशील बना दिया है। पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा, जिसमें कई लोग घायल हुए और कुछ की जानें भी चली गईं। इस स्थिति ने विवाद को केवल कानून और इतिहास तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे समाज को बांटने की कड़ी बना दिया है।

समाज और राजनीति के लिए सवाल-

इस विवाद ने कई सवाल खड़े किए हैं:

  • क्या यह इतिहास का सच है या राजनीति की चाल?
  • क्या ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का उपयोग समाज को जोड़ने के लिए किया जाएगा या तोड़ने के लिए?
  • क्या यह विवाद ऐतिहासिक सच्चाई पर आधारित है या धार्मिक राजनीति का हिस्सा है?

अदालत का फैसला और आगे की राह-

संभल की जामा मस्जिद का विवाद अब कानूनी दायरे में है। अदालत का फैसला यह तय करेगा कि इस विवाद का समाधान कैसे होगा। हालांकि, यह देखना महत्वपूर्ण है कि इस तरह के विवाद समाज में आपसी सौहार्द्र को प्रभावित न करें। इतिहास को राजनीति और धार्मिक विवादों से जोड़कर प्रस्तुत करना समाज के लिए घातक हो सकता है। ऐसे मामलों में संवेदनशीलता और सच्चाई की तलाश ही समाज को जोड़ने का कार्य कर सकती है। अदालत के निर्णय के साथ-साथ समाज को भी इन विवादों का हल शांति और एकता के साथ खोजना होगा।

अन्य ख़बरें

संबंधित खबरें