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क्या राष्ट्रगान का विरोध अपराध है? समझिए सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला...

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क्या कोई भारतीय नागरिक राष्ट्रगान गाने से इनकार कर सकता है? क्या यह कानूनन अपराध है या सिर्फ एक व्यक्ति की व्यक्तिगत आज़ादी? इन सवालों की गूंज उस वक्त सुनाई दी जब बरेली के किला थाना क्षेत्र में एक स्कूल संचालिका ने अपने पड़ोसी पर राष्ट्रगान का विरोध करने का आरोप लगाया।

स्कूल संचालिका शबीना का आरोप

शबीना नामक एक निजी स्कूल की संचालिका ने दावा किया कि उनके स्कूल से बजने वाले राष्ट्रगान का उनके पड़ोसी मुस्तफा मियां ने विरोध किया। मामला तूल पकड़ते ही पुलिस मौके पर पहुँची और जांच शुरू की।

सामने आई राष्ट्रगान विवाद की असलियत

पुलिस जांच में सामने आया कि राष्ट्रगान का यह विवाद दरअसल एक लंबे समय से चले आ रहे ज़मीन के विवाद का हिस्सा था। स्कूल संचालिका और पड़ोसी के बीच ज़मीन खरीद-बिक्री को लेकर पहले से ही तनाव चल रहा था, जिसे अब राष्ट्रगान के बहाने एक संवेदनशील मोड़ देने की कोशिश की गई।

क्या राष्ट्रगान का विरोध करना अपराध है?

भारत में राष्ट्रगान का जानबूझकर अपमान करना स्पष्ट रूप से Prevention of Insults to National Honour Act, 1971 के तहत दंडनीय अपराध है। इस कानून के तहत दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के 1986 के ऐतिहासिक फैसले (Bijoe Emmanuel vs State of Kerala) में यह साफ किया गया कि अगर कोई व्यक्ति धार्मिक या अन्य वैध कारणों से राष्ट्रगान नहीं गाता, लेकिन चुपचाप खड़ा रहता है, तो इसे अपराध नहीं माना जा सकता। इस फैसले ने ‘नियत’ को कानून का मूल आधार बताया।

क्या शोर की शिकायत राष्ट्रविरोध है?

यदि कोई व्यक्ति केवल स्कूल से आने वाले राष्ट्रगान के शोर की शिकायत करता है, तो यह Noise Pollution Rules के तहत हो सकता है, लेकिन इसे राष्ट्रगान का विरोध कहना गलत होगा — जब तक उसकी मंशा अपमान की न हो।

झूठा आरोप भी अपराध है-

अगर कोई जानबूझकर राष्ट्रगान के अपमान का झूठा आरोप लगाता है, तो वह भी भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 223 और 230(2) के तहत दंडनीय है।

क्या कहता है यह मामला?

इस प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि देशभक्ति के नाम पर निजी रंजिश को हवा देना न सिर्फ सामाजिक रूप से भ्रामक है, बल्कि कानूनी रूप से भी गंभीर परिणाम दे सकता है।राष्ट्रगान हमारी राष्ट्रीय एकता और सम्मान का प्रतीक है। इसका अपमान किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। लेकिन निजी झगड़ों को ‘देशभक्ति’ की आड़ देना, समाज में भ्रम और वैमनस्य फैलाने जैसा है।

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