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भारत की स्वतंत्रता से पहले आज ही के दिन गोरखपुर में हुए चौरी चौरा कांड को 102 साल पूरे हो गए हैं। यह एक ऐसी घटना थी जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। यहां तक कि इस घटना के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वयं असहयोग आंदोलन वापस लेने का ऐलान कर दिया था। इसके बाद उन्होंने एक लेख में इस बात का जिक्र किया कि यदि वह असहयोग आंदोलन को वापस लेने का ऐलान न करते तो देश में चोरी चोरा की तरह और भी कई हिंसक घटनाएं हो सकती थी। अब आप सोच रहे होंगे कि चौरी चौरा घटना में ऐसा क्या हुआ था जिसने गांधी जी समेत पूरे देश को हिला कर रख दिया था और आखिर इस घटना को चौरी-चौरा के नाम से क्यों जानते हैं? तो आइए जानते हैं कि क्या था चौरी चौरा कांड....
गांधी जी का प्रथम जन आंदोलन
आपको बता दें कि अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्र कराने के लिए 4 सितंबर 1920 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ था। गांधीजी का मानना था कि अगर असहयोग आंदोलन के सिद्धांतों का सही से पालन किया गया तो एक साल के अंदर अंग्रेज भारत छोड़कर चले जाएंगे। आपको बता दें कि यह महात्मा गांधी के देखरेख में चलाया जाने वाला प्रथम जन आंदोलन था। इस आंदोलन का व्यापक जन आधार था। इसके तहत उन्होंने उन सभी वस्तुओं, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला किया था जिसके तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर शासन कर रहे थे। उन्होंने विदेशी वस्तुओं, अंग्रेज़ी क़ानून, शिक्षा और प्रतिनिधि सभाओं के बहिष्कार की बात कही थी और खिलाफत आंदोलन के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन बहुत हद तक कामयाब भी रहा था।
क्या है चौरी-चौरा की घटना
लेकिन 4 फरवरी 1922 को गोरखपुर में हुए चौरी चौरा कांड के बाद गांधी जी ने स्वयं वापस लेने का ऐलान कर दिया था। जिसके बाद गांधी जी समेत कई लोगों को जेल हो गई थी। दरअसल, महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान 4 फरवरी 1922 को कुछ लोगों की गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर जिले में स्थित चौरी-चौरा गांव के पुलिस थाने में आग लगा दी थी। इसमें 23 पुलिस वालों समेत तीन नागरिकों की भी मौत हो गई। बताया जाता है कि घटना से पहले लोगों को यह सूचना मिली थी कि चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाजार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है, उसके बाद गुस्साई भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हुई और थाने में आग लगा दी।
23 पुलिस वालों समेत 3 लोगों की हुई थी मौत
इस हिंसा के बाद महात्मा गांधी जी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था और महात्मा गांधी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल उनसे नाराज़ भी हो गया था। 16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने एक लेख 'चौरी चौरा अपराध' का जिक्र करते हुए लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएं हो सकती थी। उन्होंने इस घटना के लिए एक तरफ जहाँ पुलिस वालों को जिम्मेदार ठहराया क्योंकि उनके उकसाने पर ही भीड़ ने ऐसा कदम उठाया था तो दूसरी तरफ घटना में शामिल तमाम लोगों को अपने आपको पुलिस के हवाले करने को कहा क्योंकि उन्होंने अपराध किया था।
172 लोगों को सुनाई गई थी फांसी की सजा
इसके बाद काफी समय तक इस मामले को लेकर केस चला और 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई। साथ ही कई लोगों को काला पानी की भी सजा सुनाई गई। हालांकि, इसमें करीब 40 लोग बरी भी हुए थे। महात्मा गांधी इस घटना से बहुत आहत भी हुए थे। इसलिए उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। बताया जाता है कि क्रांतिकारियों को महात्मा गांधी का यह फैसला अच्छा नहीं लगा। यह भी कहा जाता है कि इस कांड की वजह से और आंदोलन वापस लेने की वजह से ही देश को आजादी मिलने में 25 साल की देरी हो गई।
-अनीता
Baten UP Ki Desk
Published : 4 February, 2024, 6:30 pm
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