बड़ी खबरें

आईपीएस अधिकारी पराग जैन होंगे नए रॉ प्रमुख, 'ऑपरेशन सिंदूर' में निभाई थी अहम भूमिका 6 घंटे पहले भगवान जगन्नाथ का रथ पहुंचा गुंडीचा मंदिर, नौ दिवसीय वार्षिक प्रवास करेंगे शुरू 6 घंटे पहले आचार्य विद्यानंद जी महाराज का शताब्दी समारोह; पीएम मोदी को 'धर्म चक्रवर्ती' की उपाधि से नवाजा गया 6 घंटे पहले Bihar Election : 26 जिलों के 42 नगरपालिकाओं में निकाय चुनाव संपन्न, पहली बार 70 फीसदी लोगों ने की ई वोटिंग 2 घंटे पहले

रंगभरी एकादशी से होली पर्व की शुरुआत, भगवान विष्णु के साथ होती है किसकी पूजा?

Blog Image

(Special Story) आज रंगभरी एकादशी है। आज से ही होली के पर्व की शुरुआत हो जाती है। भगवान शिव की नगरी काशी में इस दिन का विशेष महत्व है। फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। वैसे तो एकदशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है लेकिन क्या आप जानते हैं कि रंगभरी एकादशी को विष्णु भगवान के साथ ही किसकी पूजा की जाती है और इस एकदशी का क्या महत्व है। आइए आपको विस्तार से बताते हैं.....

क्यों मनाई जाती है रंगभरी एकादशी- 

फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर रंगभरी एकादशी का पर्व मनाया जाता है। इसे आमलकएकादशी, आंवला एकादशी और आमलका एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी होने की वजह से ये भगवान विष्णु को तो समर्पित है ही साथ ही इस दिन शिव जी और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव मां पार्वती को पहली बार काशी में लेकर आए थे। इसलिए यह एकादशी काशी के लोगों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। रंगभरी एकादशी के पावन पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती को रंग और गुलाल अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही विधि विधान से पूजा की जाती है। पूजा के बाद बाबा विश्वनाथ मां गौरी के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं। वहीं भक्त भी इस दौरान शिव-गौरी का स्वागत रंग और गुलाल से करते हैं। 

रंगभरी एकादशी 2024 तिथि-

हिंदू पंचांग के अनुसार रंगभरी एकादशी तिथि की शुरुआत इस साल 20 मार्च यानि आज रात 12 बजकर 21 मिनट से हो रही है। इसका समापन 21 मार्च को सुबह 02 बजकर 22 मिनट पर होगा। ऐसे में 20 मार्च को ही रंगभरी एकादशी मनाई जाएगी। 

रंगभरी एकादशी का महत्व-

पौराणिक मान्यताओं के मुताबकि बाबा विश्वनाथ रंगभरी एकादशी के दिन देवी पार्वती का गौना कराकर पहली बार काशी लेकर आए थे। तब काशीवासियों ने शिव जी और माता पार्वती का स्वागत रंग और गुलाल से किया था। यही वजह है कि हर साल रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाती है। 

इस तरह मनाई जाती है रंगभरी एकादशी-

रंगभरी एकादशी के दिन काशी में इसका अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है। बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती की पूरे नगर में सवारी निकाली जाती है। साथ ही लाल गुलाल और फूलों से उनका स्वागत होता है। 

शिव परिवार का विशेष श्रृंगार-

रंगभरी एकादशी पर शिवजी और मां पार्वती की भी आराधना की जाती है। रंगभरी एकादशी के दिन काशी विश्वनाथ श्रृंगार दिवस के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर में बाबा विश्वनाथ व पूरे शिव परिवार जिसमें माता पार्वती, गणेजी और कार्तिकेय भगवान का विशेष रूप से श्रृंगार किया जाता है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर में विराजमान बाबा विश्वनाथ के चरणों में पूरी श्रद्धा से अबीरगुलाल चढ़ाया जाता है। इसके अलावा भगवान को हल्दी, तेल चढ़ाए जाते हैं. शाम के समय भगवान शिव की रजत की प्रतिमा को पालकी में बैठाकर भव्य तरीके से रथयात्रा भी निकाली जाती है। काशी के हर एक शिव मंदिरों में अबीर-गुलाल चढ़ाया जाता है।गंगा घाट पर मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद दिया जाता है इसके लिए इस दिन काशी में लाखों भक्त पहुंचते हैं।

रंगभरी एकादशी पर आंवले के वृक्ष की पूजा-

इस एकादशी पर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। इसके साथ ही आंवले का विशेष तरीके से प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे उत्तम स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसीलिए इस एकादशी को "आमलकी एकादशी" भी कहा जाता है। रंगभरी एकादशी पर सुबह आंवले के वृक्ष में जल चढ़ाएं। वृक्ष पर पुष्प, धूप, नैवेद्य अर्पित करें। वृक्ष के निकट एक दीपक भी जलाएं। वृक्ष की सत्ताइस बार या नौ बार परिक्रमा करें। सौभाग्य और स्वास्थ्य प्राप्ति की प्रार्थना करें। इसके साथ ही इस दिन अगर आंवले का वृक्ष लगाएं तो और भी उत्तम होगा। 

 

अन्य ख़बरें

संबंधित खबरें